Parchhai
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कितना खौफनाक रहा होगा वो मंज़र,
जब हो रही थी ये ज़मीन बन्ज़र!
उन मासूमों की चीखों से भर गया होगा वो जहान,
बनाया था जिसमें उन्होंंने अपना आशियां !
बिन खून के ही लाल हो गया था वो आसमां,
मौत ने बेरहमी से रौंदा उन मासूमों का जहांं!
कितने लाचार रहे होंंगे वो तब ,
सब रास्ते हो गये थे जब उनके लिये बन्द!
सोचा होगा कोई आये, जो ले जाए यहांं से दूर,
हो ना जहाँ आग में जुनून!
कर ना कुछ भी पाये फिर वो और तोड़ दिया वहीं दम,
कितनी भयानक मौत थी वो जिसे शब्दों में बयां ना कर पाये हम!
खोजने नया जीवन पहुंचे चंद्र, मंगल पर हम,
अरे इसे तो बचा लो पहले जिस पर पैदा हुए हम!!
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं। इनसे संस्थान का कोई लेना-देना नहीं है।
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