Menu
blogid : 27310 postid : 8

किसान

Parchhai
Parchhai
  • 4 Posts
  • 1 Comment

देखा है मैने तपती धूप में किसी को जलता
पाया है मैने ठंडी ज़मीन पर किसी को नंगे पांव चलता

 

 

फटे हाथ लहू चलता पाव से,
फिर भी ना रुकता वो किस्मत के घाव से

 

 

तंग हाली में रहकर भी उफ्फ तक ना करता है
वो खुद के लिये नही औरों के लिये मेहनत करता है

 

 

फिर भी ना जाने क्यूं वो उस सम्मान को तरसता
अपने हक़ के लिये उसे फिर क्यूं लड़ना पड़ता है

 

 

कुछ बेचारे कर्ज के मारे झूल जाते है फंदों से
शोषण करने वाले बैठे रह जाते है अन्धों से

 

 

ना जाने कब उन्हें वो अधिकार मिल पायेगा
बिन मांगे जब उसे फसल का सही दाम मिल पायेगा

 

 

तब सही मायने में एक सुखद संसार बन पायेगा
जब अन्न्दाता किसी के आगे हाथ नहींं फैलायेगा।

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं, इनसे संस्‍थान का कोई लेना-देना नहीं है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh