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जीत

saritkriti
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जीत



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धुआँधार   खेलकर ,

रणबांकुरों ने रण मे  ।

रौंध डाला विरोधी के अभिमान को ।

फन उठाकर खड़ा रहता है जो हरपल ,

रौंध डाला उस फन के शान को ।

बार बार डसना है फिदरत  जिसका ,

अब भी तो संभल जाओ ।

देखकर सामने वाले कि ताकत ,

अब तो पीछे हट जाओ ।

क्यों करते हो जोरा – जोरी ,

समेट लो अपने हाथों –  पैरों  को ।

हम मे दम है जिसके हर दम में दम है ।

समझ ले इसके मान को ।

शांति मार्ग से तु भी जी ले ,

हमको भी जी लेने दे ।

काट के सिर को क्या सुखी रहोगे ,

सुख तो है सौहार्द में ।

प्यार से जी ले प्यार से रह ले ,

छोड़ दे झुठी शान को ।

अपना तो कर्म और धर्म यही है ,

शांति और सौहार्द का । ,

अगर जो देखा बुरी नजर से ,

उनका हाल बुरा कर देते हैं ।

ज्ञात न हो औकात जो उसको ,

औकात याद दिला देते हैं ।

सरिता प्रसाद
5-06-2017

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