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पैसठ का प्रतिकार (कविता)

FOR AN POET SKY IS LIMIT
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यह कविता 1965 भारत पाक युद्ध की घटना का वर्णन करती है । जब पाक ने हमारे मृदु रुख का फायदा उठाया और कश्मीर पर वार कर दिया। हालांकि, हम वह युद्ध जीत गए पर हमारे कई जवान शहीद हो गए ।

भूला नहीं है देश का एक भी कतरा वो सवेरा
जिस रोज़ था तुमने हिन्द की भूमि को घेरा
इस बार बनेगा तुम्हारा मुल्क नरसंहार

लेने वाला है हिन्द तुमसे पैसठ का अब प्रतिकार ॥

 

कश्मीर में घुस कर किया था
तुमने भारत के वफादारों पर वर
अब उनके प्रजनन लेंगे तुमसे
पैसठ का प्रतिकार ॥

मृदुता के बांधो से हो चूका है
जालसाज़ी का सलिल अब पर
लेने वाला है हिन्द तुमसे पैसठ
का अब प्रतिकार ॥

चाहे जो हो जाए
नहीं ठानेगा कोई रार
जब तक ले न ले तुमसे
पैसठं का अब प्रतिकार ॥

कानो में तुम्हारे दलालो के
गूंजेगी एक ही ललकार
खुद के कुकर्मो की रची
तान दी है अपने गले पर ही  तलवार
लेने वाला है हिन्द तुमसे पैसठ
का अब प्रतिकार ॥

 

-सार्थक बनर्जी

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