FOR AN POET SKY IS LIMIT
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मैं हिन्द की आवाज़ हूँ
और आज बोल रहा हूँ
और आप सब के सामने
अपने मन के चाँद खोल रहा हूँ
मैं हिन्द की आवाज़ हूँ
इसलिए आज बूल रहा हूँ ॥
मैं मन में ही अपने अश्रु
घोल रहा हूँ
मैं हिन्द की आवाज़ हूँ
इसलिए आज बोल रहा हूँ ॥
मैं अपने और अपने मातहत
का अस्तित्व तोल रहा हूँ
मैं हिन्द की आवाज़ हूँ
और आज बोल रहा हूँ ॥
मैं खुद बखुद मुसीबत
मोल रहा हूँ
मैं हिन्द की आवाज़
हूँ और आज बोल रहा हूँ ॥
मैं अपने वजूद को
बचाने डोल रहा हूँ
मैं हिन्द की आवाज़ हूँ
और आज बोल रहा हूँ ॥
– सार्थक बनर्जी
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