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कब तक तुम मुझको रोकोगे

FOR AN POET SKY IS LIMIT
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कब तक तुम मुझको रोकोगे . कब तक तुम मुझको रोकोगे
बर्बादी की अग्नि में कब तक तुम सपने झोकोगे
कब तक तुम मुझको रोकोगे . कब तक तुम मुझको रोकोगे||

लाचारी की उमस में खुशियों के बहते झोको को
देखेंगे कैसे रोकोगे
कब तक तुम मुझको रोकोगे . कब तक तुम मुझको रोकोगे||

अंत्योदय के जलज की मल में सौम्यता देख चौकोगे
कब तक तुम मुझको रोकोगे . कब तक तुम मुझको रोकोगे||

बेईमानी के पेड़ों को उठकर तुम अपने हाथों से
देखेंगे कैसे रोपोगे
कब तक तुम मुझको रोकोगे . कब तक तुम मुझको रोकोगे||

सच्चाई के उजियारो को रोक पाखंड के अंधकारो को
देखेंगे कैसे सोपोगे
कब तक तुम मुझको रोकोगे . कब तक तुम मुझको रोकोगे||

– सार्थक बनर्जी

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