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ट्रैफिक चालान पर 90% सब्सिडी दी जाए

सतीश मित्तल- विचार
सतीश मित्तल- विचार
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The New Motor Vehicles (Amendment) Act ,19 , 1 Sep.19  से  लागू हो जाने के बाद से देश में ट्रैफिक चालान की भारी भरकम  कंपाउंड (मिश्रित) जुर्माने की राशि को लेकर चारों ओर हाहाकार मचा है।  ₹- 15000/ की स्कूटी – ₹ -23000/-चालान  राशि ,  ट्रैक्टर पर ₹-59000/- जुर्माना, भारी राशि  जुर्माने पर  नाराज होकर बाइक सवार द्वारा बाइक जलाना। ट्रैफिक पुलिस-आम जनता के बीच तू-तू, मै-मै की खबरें  T.V., सोशल मीडिया पर आम है। ऐसा लगता है जैसे जो जोश 370, 35A को लेकर चढ़ा है, उसे  नए मोटर व्हीकल एक्ट के  भारी, कंपाउंड जुर्माने ने एक ही  झटके में उतार दिया है।

 

लोग ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर को लेकर नाराज हैं। जिन्होंने 2029 में लागू होने वाले जुर्माने को 2019 में लागू कर दिया। जुर्माने की राशि की तुलना जापान, इंग्लैंड, अमेरिका से होते देख लोग कह रहे हैं कि वहां के जीवन स्तर व् भारत के जीवन स्तर में जमीन-आसमान का अंतर है। तुलना बराबर के आंकड़ों से होनी चाहिए। रही बात जनता की सुरक्षा की, लोगों में ट्रैफिक  नियमों की जागरूकता से इसे दूर किया जा सकता है।

 

आइये भूतकाल में हुए एक निर्णय से इसे समझने का प्रयास  करें। 1975 में  इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी के  “ड्रीम-प्रोजेक्ट- नसबंदी”  को जोरों से चलाया गया।  राशन के लिए नसबंदी, I.T.I.  में एडमिशन के लिए नसबंदी, ट्रांसफर के लिए नसबंदी। ऐसा लगता था जैसे नसबंदी न हुई कोई रिश्वत हो गई, जिसे कराते ही सभी काम हो जाते थे।  उस समय इस तरह की जोर जबरदस्ती से लोगों में नाराजगी फ़ैल गयी और नतीजा सरकार तो गई ही, इंदिरा जी अपने गढ़ में ही हार गयींं।

 

भारी भरकम जुर्माने, ट्रैफिक पुलिस-आम-जनता में  भारी भरकम चालान की रकम को लेकर आये दिन होने वाली हाथापाई,  चालान  राशि  पुलिस के विवेक पर निर्भर होने के कारण  भ्रष्‍टाचार को बढ़ावा  देने के लिए एक खिड़की खुलती नजर आ रही है, को देखकर यही लगता है कि लोगों में केंद्र सरकार के प्रति इस निर्णय को लेकर रोष है,  जो सबके साथ, सबके विकास  व् सबके  विश्वास में  कहीं न कहीं दरार  पैदा करने का काम  कर रहा है।

 

अभी देश में सड़कों का उचित रखरखाव नहीं,  प्रकाश की उचित व्यवस्था नहीं,  उचित इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है।  पोलुशन सेंटर्स पर भीड़ व् सर्वर डाउन की समस्या से आम जनता  परेशान है।  भारी चालान राशि के डर से लोगों की रोजी-रोटी पर असर पड़ रहा है। जिन लोगों का भारी भरकम  चालान कटा है। उस परिवार की स्थिति को भी मीडिया में उजागर कर इस बात को आसानी से सिद्ध किया जा सकता है। वर्तमान में  फोर स्ट्रोक टू  व्हीलर के लिए  प्रदूषण सर्टिफिकेट की अवधि मात्र  3 माह है, जो काफी कम है, जिसे  6 माह तक  किये जाने की आवश्यकता है।

 

खैर लगता है, अब इन तर्कों, सुझावों का कोई मतलब नहीं रह गया है। जुर्माने की राशि में राहत देने का काम राज्य सरकारों को करने की आवश्यकता है। यह शक्ति अधिनियम में है। वेस्ट बंगाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पंजाब राज्य जैसी सरकारों ने जनहित में इस क़ानून का नोटिफिकेशन लागू नहीं किया है।

 

भारत में लोगों के वर्तमान निम्न जीवन स्तर, लोगों की कम क्रय-शक्ति ( Purchasing  Power ), संसाधनों की भारी कमी  को देखते हुए (जिसकी तुलना  अमेरिका, जापान, इंग्लैंड  व्  तेल के धनी अरब देशों के संसाधनों से करना बेमानी है), केंद्र/राज्य सरकारों को ट्रैफिक के भारी भरकम जुर्माने की  वर्तमान दर  90% कम  करनी चाहिए या उस पर  90%  सब्सिडी का प्रावधान किया जाना चाहिए।  ऐसा करने से सांप भी मर जाएगा, लाठी  भी न टूटेगी। केंद्र सरकार सबके साथ, सबके विकाश  व् सबके विश्वास के पथ पर चल सकेगी।

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