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गंदगी भारत छोड़ो – परिवर्तन की एक कहानी

India 21st Century
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21वीं सदी के नये प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्‍द्र मोदी ने जिस प्रकार से स्‍वच्‍छता के मिशन को एक जन आन्‍दोलन बनाया उससे एक बात तो अवश्‍य साफ हो जाता है कि कोई भी मिशन तबतक सफल नही हो सकता जबतक कि उसमे व्‍यापक रूप से जन भागीदारी न हो । लोगों मे अपनी स्‍वच्‍छता के प्रति जिम्‍मेदारी का एहसास हो इसके लिये सरकार को कठोर अंकुश लगाने की आवश्‍यकता है जैसे कि चीन मे कड़ी पेनाल्‍टी लगाई जाती है । आज हमारे शहरों मे लोग कुड़े को घर से बाहर निकालकर सड़क पर फेंक देते है और जब हवा चलती है ताे पुन: वही कुड़ा हवा के झोंके के साथ आसपास के घरों, दुकानों और उनके भी घर मे वापस चला आता है, बावजूद इसके इस कार्य को लगातार दोहराया जाता है । वहीं हम लोग यह मान बैठे है कि क़ड़ा हटाने या सफाई का काम सरकार या नगर निगम का है फिर हम क्‍यों करें, हमें तो सरकार ने गंदगी फैलाने की छुट तो दे ही रखी है ।

आज जहॉ प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी गॉधी के अधुरे कार्यों को आगे बढ़ाने की बात कर रहे है वहीं कुछ लोग राजनिती करने मे लगे हुये है, इस इमस्‍याओं को गंभीरता से देखना होगा, मोदी जी या उनके मंत्रीयों के एक दिन झाडु लगा देने से क्‍या देश की सफाई हो जायेगी, जबकि बाकि दिन तो सफाई कुछ चन्‍द सफाई कर्मी ही करेगें जिनकी संख्‍या बहुत ही कम है, तो सवाल पैदा होता है कि सफाई कौन करेगा । इसके साथ ही हमे कुड़े के निस्‍तारण की व्‍यवस्‍था बनानी होगी जिससे कुड़ा ही कम पैदा हो और कुड़े का उपयोग खाद बनाने और अन्‍य उपयोग मे लिया जा सके । दिल्‍ली, मुम्‍बई, कोलकाता, हैदराबाद, बैंगलुरू जैसे शहरों मे कुड़े के विशालकाय पहाड़ देखने को मिल जायेगें । इनकी संख्‍या घटने के बजाय दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है ।
भारत मे 50 फीसदी से अधिक लोग खुले मे शौच करते है जबकि ग्रामीण क्षेत्र मे यह संख्‍या 70 फीसदी से अधिक हो जाता है । वही चीन मे मात्र एक फीसदी, बांग्‍लादेश मे चार फीसदी लोग खुले मे शौच करते है, खुले मे शौच करने के कारण कुपोषण और अनेक प्रकार बिमारियॉ फैलती है, अनेक लोग मौत का शिकार भी हो जाते है । भारत मे खुले मे शौच करना हमारी आदत बन गयी है, हमे भारतवासीयों के जीवन शैली मे परिवर्तन के उपायों पर विचार करना पडेगा तब जाकर यह समस्‍या कम हो सकती है । केवल शौचालय बना देने से ही खुले मे शौच जाने की समस्‍या का समाधान नही होगा इसके लिये लोगो की मानसिकता को भी बदलना होगा । गॉवों मे शौचालय के अभाव मे सुबह और शाम को गॉव की महिलायें सड़कों, कच्‍चे रास्‍तों आदि पर खुले मे ही शौच करती है जिसमे अच्‍छे परिवारों की भी महिलाये होती है । इस प्रकार हम यह कह सकतें है कि शौचालय निर्माण केवल आर्थिक कमजाेरी के कारण ही नही वल्कि जागरूकता और अज्ञानता के कारण भी नही हो पाता है । खुले मे सड़को पर शौच जाने के कारण पुरा सड़क गंदगी से पट जाता है और उस रास्‍ते से जाना दुभर हो जाता है ।

सफाई का हाल दलित और मुस्लिम बाहुल्‍य इलाकों मे और भी दयनीय है इसके लिये शिक्षा और रोजगार एक बड़ा कारण है । गॉवों मे पशुओं के मलमुत्र भी खुले मे ही पसरे रहते है, हमे इसके लिये व्‍यापक कार्यक्रम और जबाबदेही तय करनी पड़ेगी जब जाकर कहीं कुछ परिवर्तन देखने को मिले । 15 अगस्‍त को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र माेदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना और सांसद निधि को स्‍कूलों मे शौचालय बनाने पर जोर दिया जो एक स्‍वागत योग्‍य कदम है वही समस्‍या और भी विकट है कि जब शौचालय वाले स्‍कूलों का सर्वे किया गया तो पाया गया कि अधिकतर शौचालय बनने के बाद भी बन्‍द है, या उनका रख रखाव सही नही है इस प्रकार अगर स्‍कलों मे शौचालय बन भी जाय तो उनकों चालु रखने के लिये क्‍या प्रयास होगें यह देखने योग्‍य है ।
शहरों मे रेल के पटरियों के किनारे, पार्कों के किनारे, सीवरों के किनारे, पुलों के निचें, खाली प्‍लाटों मे लोग खुले मे शौच करते है और पुरा क्षेत्र गंदगी से पट जाता है, हैरान करने वाली बात यह है कि पुरूष और स्‍त्री एक ही जगह पर खुले मे शौच करते है लेकिन उनके दिनचर्या पर कोई फर्क नही पड़ता है । वही रेलवे का हालत भी कुछ ऐसा ही है बड़े जक्‍शनों को छोड़ दिया जाय तो सवारी गाड़ी रूकने वाली सभी छोटे स्‍टेशनों पर शौचालय बन्‍द ही मिलते है, अगर 5 शौचालय बनें हैं तो तीन या चार शौचालय बन्‍द ही मिलेगें, पीने के लिये पानी का भी कोई खास इन्‍तजाम नही होता है । जबकि साफ पानी और शौचालय प्रत्‍येक यात्री का अधिकार है क्‍योकि वह इन्‍ही सुविधाओं के नाम पर रेलवे को पैसा देता है । देश का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क की यह हालत है तो गॉवों मे सफाई के कैसे हम ठीक कर पायेगें यह तो फिलहाल सवाल ही है ।
देश के शहरों में प्रतिबर्ष लगभग सात करोड़ टन कचरा पैदा होता है जिसमे 6000 टन से अधिक प्‍लास्टिक कचरा होता है, प्‍लास्टिक कचरे का पहाड़ सभी महानगरों मे बन रहा है । 2047 तक 1400 वर्ग किमी जमीन कचरे से पट जायेगा । 78 प्रतिशत पानी बिना साफ किये सीधे नदियो मे डाला जा रहा है, इसके परीणाम स्‍वरूप देश के कई राज्‍यों मे दीमागी बुखार से लाखों बच्‍चों की जान जा रही है जिसका कारण साफ पानी और गंदगी है यह बात अमेरिका के सीडीसी और एनआईवी पुने की शोध मे कहा गया है ।
महात्‍मा गॉधी जब अफ्रीका से स्‍वदेश लौटे तो उन्‍होने लोगों के घरों मे जाकर शौचालयों का निरीक्षण और उनकी सफाई का कार्य प्रारम्‍भ किया जिससे गॉधी जी को अनेक हकीकतों का सामना करना पड़ा जैसे की कुछ लोगों के प्रयोग मे आने वाले शौचालय भी गंदगी से पटे रहते थे, कुछ के शौचालय गंदगी के कारण बन्‍द ही हो गये थे, इस प्रकार अगर हम इमानदारी से अपने घर से सफाई और जागरूता प्रारम्‍भ करें तो मोदी जी और देश के इस मिशन को जरूर सफलता मिल सकती है ।

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