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राजकुमार हिरानी के निर्देशन और आमिर खान की फिल्म पीके के लिए बर्ष 2014 विवादों से घिरा हुआ और हिट रहा । एक तरफ पीके को लेकर विवाद बढ़ते ही जा रहे हैं, दूसरी तरफ यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एक के बाद एक रिकॉर्ड बनाए जा रही है। पीके ने साल खत्म होते-होते 250 करोड़ का जादुई आंकड़ा भी पार कर लिया। वहीं फिल्म ‘पीके’ को लेकर जारी विवाद के बीच अभिनेता सलमान खान आमिर खान समर्थन में उतर आए हैं। इस फिल्म को लेकर अनेक हिन्दुवादी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन कर इसको सफल बनाने में पुरी मदद की । कहीं कहीं तो कुछ मुस्लिम संगठन भी विरोध करते नजर आये । आखिर ऐसी क्या बात है इस फिल्म में जिसको लेकर विरोध हो रहा है । अगर आपने अभीतक नहीं देखा हो तो आप भी पहले इस फिल्म को देख लें । फिलहाल तो मुम्बई सरकार ने पुलिस को फिल्म देखकर आगे की कार्यवाही का आदेश दिया है ।
कुछ दिनों से हिन्दु संगठनों द्वारा कभी ”लव जेहाद” तो कभी ”धर्मांन्तरण”, ”घर वापसी” तो अब ‘पीके’ फिल्म को लेकर विवाद को जन्म दिया जा रहा है और आरएसएस जैसा संगठन इसको सह दे रहा है । केन्द्र में भाजपा की सरकार मूक दर्शक बनकर पुरे मामले पर चुप्पी साधे बैठी है । वैसे भाजपा के लिए यह अच्छा दौर चल रहा है क्योंकि झारखण्ड और जम्मू कश्मीर में उसकी सफलता ने भाजपा के लिए किसी करिश्में से कम नही है । लेकिन जहॉ इस देश में हिन्दु बहुसंख्यक होने के बावजूद सभी धर्मो के लोग आपस में मिलकर रहते हैं, इस प्रकार के कृत्य ठीक नही कहे जा सकते । भाजपा की सफलता ने आरएसएस की सुस्त पड़ी शाखाओं को संजीवनी दे दी है । नरेन्द्र मोदी बार बार विकास औस सभी को साथ लेकर चलने की बात कह रहें है लेकिन उनके पार्टी के ही अधिकतर सांसद किसी न किसी रूप में साम्प्रदायिक वयान देते रहतें हैं । इस समय इन हिन्दुवादी संगठनों को पीके का नया मुद्दा मिल गया है जिसको लेकर राजनीति गर्म हो रही है ।
अब सवाल यह है कि आखिर सभी को हिन्दु बनाकर या मुस्लिम बना देने से समस्या का समधान हो जायेगा । जिस शहर, गॉव, या देश में किसी एक ही धर्म या जाति के लोग निवास कर रहे है आखिर वहॉ असुरक्षा, अशान्ति, भुखमरी और अनेक समस्याए क्यों हैं । जिस जगह सभी हिन्दु है फिर वहॉ अपराध क्यों हो रहा है, वहॉ गरीबी क्यों है और इसके जिए ये धार्मिक संगठन क्यों जिम्मेदारी नही लेतें । अगर किसी भी जाति के लोगों की ठेकेदारी करनी है तो हमेशा और सभी कार्यो के लिए ठेकेदारी लेने चाहिए चाहे शिक्षा का मामला हो, चाहे गरीबी का मामला हो या चाहे उनके सुरक्षा या स्वास्थ्य का मामला हो । गरीब और लाचार लोगों से चन्दा लेने वाले ये धार्मिक संगठन उन लोगों को ही मन्दिर या मस्जिद या चर्च में प्रवेश पर रोक लगा देतें है, उस समय उनका धर्म कहॉ चला जाता है । आज भी बहुत से मन्दिरों में दलितों के प्रवेश पर रोक है क्या वे हिन्दु नहीं है, यही उनके मन्दिर प्रवेश पर रोक है तो वे फिर किसी और धर्म या सम्प्रदाय को स्वीकार क्यों न करें । वैसे भी धर्म परिवर्तन से केवल उसकी उपासना की पद्धति बदलती है उसका खुन, गरीबी की हालत, सामाजिक दशा, शिक्षा और राजनीतिक सोच में परिवर्त नही होता है । क्या आज हिन्दुओ, मुसलमानों, सिखों और ईसाईयों में आपसी संघर्ष नही है, आखिर पाकिस्तान में मुसलमानों की हत्या क्यों की जाती है, अमेरिका या यूरोप में ईसाईयों की हत्या क्यों हो रही है, हिन्दु एक दुसरे हिन्दु की हत्या क्यों कर रहा है । मेरा मानना है कि धर्म एक माध्यम जरूर है लकिन केवल इससे मानवता का कल्याण नही होने वाला, वल्कि इसके लिए आपसी सौहार्द सबसे आवश्यक है ।
पीके में यही कहा गया है कि इश्वर तो है लेकिन ये धर्म के ठेकेदार हमें आपस में भ्रमित कर उससे दुर कर देतें है । उसमें मानव सेवा पर जोर दिया गया है । गीता में भी कर्म और मानव सेवा को ही प्रधान बताया गया है । हमारे किसी भी हिन्दु धर्म ग्रन्थ में हिन्दु या गैर हिन्दु का जिक्र नही मिलता है, इन सभी में मानवता के कल्याण पर जोर दिया गया है जबकि ये ठेकेदार हमें बार बार आपस में लड़ाने का प्रयत्न करतें है । हम सभी आज 1 जनवरी को नया बर्ष मनातें हैं जो कि ईसाई धर्म से सम्बिन्धित है, किसी ने इसका बहिस्कार क्यों नही किया । हमारा अंग्रेजी कैलेण्डर भी ईसाई समुदाय की ही देन है फिर हम उसे क्यों नही छोड़कर हिन्दी कैलेण्डर का प्रयोग कर रहें है, हमारे घरों को रोशन करने वाले बल्ब, हमारे हाथों में स्मार्ट फोन से लेकर सभी उसी पश्चिम की देन है फिर हम उसका परित्याग क्यों नही करतें है, क्या उसे स्वीकार करने के लिए किसी ने दबाव दिया था ।
सभी धर्मो मे कहा गया है कि ईश्वर एक है फिर ये संघर्ष क्यों, चाहे हम किसी की पुजा करें । जब सब ही यही कहतें है कि हम एक ही ईश्वर की सन्तान हैं तो हम सभी तो भाई-भाई ही हुए । हमारा खुन एक, बनावट एक, दिमाग एक, आवश्यकता एक तो ईश्वर कैसे अलग हो सकता है । यह ही तो विज्ञान भी कहता है । हमें इस पर गंभीरता से विचार कर आत्मचिन्तन कर कदम उठाने की जरूरत है ।
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