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जलवायु परिवर्तन से मची तबाही

India 21st Century
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आज पूरे भारत में बेमौसम बरसात ने भारी तबाही मचायी है, किसानों की फसले तबाह हो गयी हैं । किसानों के मौतों से लेकर सरकार के तरफ से मुआवजा देने तक सियासत हो रही है । अधिकारीगण जहॉ किसानों के मौत की बजह उनकी फसल की तबाही को नही मान रहे है तो वहीं किसानों को मुआवजों के नाम पर कहीं 50 रूपये तो कहीं 150 रूपये दिये जा रहे है । सरकार भी खुब घडि़याली ऑसू बहा रही है, केन्‍द्र से लेकर राज्‍य तक के नेताओं दौरे भी हो रहे हैं । सरकार यह दिखाने की कोशिस कर रही है कि वह किसानों के साथ खड़ी है लेकिन आखिर किसानों के साथ धोखा कौन कर रहा है । यह तो रही इस बेमौसाम बरसात के बारे में और उस पर मुआवजे की जंग ।
अब बात उस कारण एवं निवारण की जिसके कारण बार-बार प्रकृति कहर बरपा रही है । कई विशेषज्ञों ने लिखा भी कि जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है, इसको लेकर दुनियाभर में खुब मंथन भी चल रहा है लेकिन समस्‍या घटने के बजाय लगातार बढ़ रही है । किसानों को पता भी नही कि यह बेमौसम बरसात उसी जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ । किसान अपनी पुरानी पद्धति एवं समयानुसार आज भी खेती कर रहे है उन्‍हे यह कोई बताने वाला नही है कि जब मौसम में परिवर्तन हुआ है तो उन्‍हे फसल चक्र में भी परिवर्तन करना पड़ेगा और नये मौसम के अनुसार फसल की बुआई करनी चाहिए । कृषि शोध के नाम पर प्रतिबर्ष करोड़ो रूपये खर्च हो रहे हे आखिर यह विषय शोध में क्‍यों नही आया, यदि आया तो सही समय पर समाधान क्‍यों नही निकाला जा रहा है जिससे नुकसान कम किया जा सके ।
वर्तमान सरकार विकास के नाम पर पर्यावरण की अनदेखी कर औद्योगिकरण करना चाह रही है, पर्यावरण नियमों में ढ़ील दी जा रही है । नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल के फैसलों को अमल में नही लाया जा रहा है । अभी कुछ समय पहले एक सेमिनार में यह तथ्‍य सामने आया कि अगर जल्‍दी इस समस्‍या का समाधान नही निकाला गया तो दुनिया नष्‍ट हो जायेगी । दुसरी बात गलती विकसित देश करें भुगते गरीब एवं कमजोर देश । उसी प्रकार प्रकृति का दोहन सबसे अधिक समृद्ध लोग करतें है और भुगत रहे है किसान और गरीब । प्राकृतिक संसाधनों पर देश के हर एक नागरिक को अधिकार होता है लेकिन उसका उपयोग सरकार एवं पुजीपति लोग अधिक कर रहे है और नुकसान आम भोली भाली जनता को उठाना पड़ रहा है । एक बार मुझे याद है कि अमेरिका में सभी देशों की बैठक हुयी उसमें यह निर्णय लिया गया कि विकसित देश सबसे अधिक प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर रहे है, जबकि पुरे विश्‍व के संसाधन पर सभी देश के लोगों का हक है लिहाजा विकसित देश क्षतिपुर्ति के रूप में गरीब देशों को हर्जाना देगें और इसकी निगरानी संयुक्‍त राष्‍ट करेगा । इसी प्रकार देश के भीतर भी हमें नियम बनाना पड़ेगा कि जो जितना प्राकृतिक संसाधन का उपयोग करेगा उसे उसी अनुपात में देश के आम एवं गरीब लोगों को हर्जाना देना पड़ेगा ।
अभी हाल ही में ग्रीन ट्रिब्‍यूनल ने दिल्‍ली में वायु प्रदुषण को लेकर चेतावनी जारी किया है, एनजीटी का कहना है कि अगर बहुत जल्‍द प्रदुषण पर अंकुश नही लगाया गया तो दिल्‍ली में रहना मुश्किल हो जायेगा । दिल्‍ली के प्रदुषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार चेताया है लेकिन हमारी सरकारें सुनने को तैयार नही हैं । हालात जब नियंत्रण से बाहर हो जायेगी तब यही सरकारें घडि़याली ऑसू बहायेगी और मुआवजा दिया जायेगा, और उसमें भी भ्रष्‍टाचार करके किसानों और गरीबों का पैसा पुन: उसी समृद्ध बर्ग के पास चला जायेगा । अब समय आ गया है कि हम मानवता के रक्षा के लिए इसपर गंभीरता से सोचें और इसका उपाय करें ।

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