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नेपाल की त्रासदी, भारत को सबक

India 21st Century
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25 अप्रैल, 2015 को नेपाल और भारत में आये भुकम्‍प ने जहॉ तबाही मचायी वहीं लोगों के जन जीवन को अस्‍त व्‍यस्‍त कर दिया है । लोग आज भी खौफ में जी रहे हैं, रात को अपने घरों में जाने को तैयार नही हैं, खुले में टेन्‍ट डालकर रात बीता रहे हैं । इसी दौरान अफवाहों का बाजार भी गर्म है, कोई चॉद उल्‍टा दिखाई देने की बात कर रहा है तो कोई कह रहा है कि पीने का पानी जहर हो गया है, और भी अनेक अफवाहें उड़ाई जा रहीं हैं । सेना के जवान राहत और बचाव कार्यो में लगे हैं, स्‍वयं सेवी संगठन भी अपनी सेवा दे रहे हैं, मिडिया पल पल की खबर और इससे जुड़ी जानकारी लोगों तक पहॅुचा रही है । गोरखपुर और आसपास के कालेजों में राहत शिविर बनाये गये हैं लेकिन बावजूद इसके अभी भी स्थिति बेकाबू है । नेपाल पुरी तरह बर्बाद हो गया है, वहीं नेपाल से सटा भारत का बिहार भी काफी प्रभावित हुआ है । 25 अप्रैल से लगातार झटके आ रहे है, प0 बंगाल में एक और भुकम्‍प आने की सूचना मिली जिसकी तीब्रता 5 के असपास थी ।
कई विश्‍वविद्यालय और आईआईटी शोध कर रही हैं कि आगे क्‍या होगा । अगर भारत में इसी प्रकार का भुकम्‍प आया तो क्‍या दशा होगी । बताया गया कि दिल्‍ली जैसे शहर 6 या उससे आसपास की तीब्रता वाले भुकम्‍प को नही झेल पायेगें और लगभग 80 प्रतिशत बर्बादी होगी । यह भी संभावना जताई जा रही है कि 50 बर्षो के अन्‍दर 9 से १० तीब्रता वाला भुकम्‍प आना तय है और ऐसी दशा में आधा भारत तबाह हो जायेगा । अगर केन्‍द्र मैदानी भागों में रहा तो नदियों के मार्ग बदलने का भी खतरा है और ऐसी हालत में कई शहर जलमग्‍न हो जायेगें । इण्डियन प्‍लेट लगातार यूरेशियन प्‍लेट के नीचे खिसक रही है जिससे अपार उर्जा निकल रही है और उसका उत्‍सर्जन भुकम्‍प का कारण ।
आखिर यह सब क्‍यों हो रहा है, क्‍या प्रकृति अपने बिगड़े संतुलन को बना रही है । क्‍या जलवायु परिवर्तन इसका कारण है, यह सभी सवाल उठ रहे है लेकिन सही जबाब नही मिल रहा है । लेकिन भारत सरकार भी लगातार पर्यावरण की अनदेखी कर विश्‍व बैंक के इशारे पर औद्योगिकरण को बढ़ावा दे रही है जबकि चट्टानों को विस्‍फोट के माध्‍यम से तोड़कर रास्‍ता बनाया जा रहा है । जंगल खत्‍म हो रहे हैं, पानी दुषित हो रहा है । सरकार नदियों पर बड़े बड़े बॉध बनाकर उनका जल अवरूद्ध कर रही है । किसान बर्बाद हो रहे हैं । प्रकृति की बात करना मजाक हो गया है किसी को प्रकृति शब्‍द से कोई मतलब नही है । मुनाफा कमाने के लिए हम अपने अस्तित्‍व को खतरे में डाल रहें हैं ।
हमारे गॉवों में पहले जहॉ चारों तरफ बागीचे हुआ करते थे आज वहॉ मकान बनाये गये हैं और पेड़ गायब । पहले जहॉ गॉव और शहरों में तालाब या बड़े-2 जलाशय होते थे आज 2/3 जलाशय लुप्‍त हो गये है जो हैं भी वे अपने मरने का दिन गिन रहे हैं । बैज्ञानिकों ने कई बार चेतावनी भी दी है कि अगर हमने जल्‍दी नही चेता तो दुनिया खत्‍म हो जायेगी । हम शायद चेतने को तैयार नही हैं और लगातार प्रकृति का अन्‍धाधुन्‍ध दोहन कर रहे है । क्‍या अभी भी हम सब मिलकर इस तबाही और विनाश को रोकने का प्रयास नही कर सकते ।

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