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वर्तमान भारतीय गॉवों की दशा

India 21st Century
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महात्मा गॉधी ने कहा था कि भारत गॉवों में बसता है और गॉधी जी के विचारों को आगे लेकर चल रहे हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गॉवों को केन्द्र मे रखकर सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरूआत की। वे लगातार अपने संबोधनों में गॉवों का जिक्र करतें है। आज भी 80 प्रतिशत से अधिक लोग गॉव में रह रहे है लेकिन गॉवों में मूलभूत सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नही है, न तो पर्याप्त बिजली है, न तो साफ पेयजल, न तो अच्छी सड़कें, न तो स्वास्थ्य सुविधायें, न तो नालीयॉ, न तो गुणवत्तायुक्त शिक्षा और न ही सुरक्षा है।

मै पेशे से कम्प्यूटर इंजीनियर हुॅ। मैने पढ़ाई के बाद कुछ दिनतक बहुराष्टीय कम्पनी में नौकरी की और तीन बर्ष पूर्व अपने क्षेत्र के गॉवों के विकास को लेकर कार्य शुरू किया और नौकरी छोड़ गॉव वापस आ गया। इस दौरान देशभर बड़े-बड़े संस्थाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ कार्य करने का अवसर मिला। कार्य के दौरान बेहद चैकाने वाले तथ्य सामने आते है 30 स्कूलों का सर्वे किया गया, और पाया कि किसी भी स्कूल में अध्यापक पढ़ातें नही मिले, कहीं कहीं छोड़कर अधिकतर शौचालय बन्द एवं गंदगी से भरे मिले, पेयजल की सुविधा भी पर्याप्त नही मिली और छात्र इधर उधर घुमते पायें गये जबकि जनपद में प्राथमिक शिक्षा के नाम पर लगभग 300 करोड़ रूपये प्रतिबर्श खर्च होते है। गॉवों में 80 प्रतिषत शौचालय नही है और जो बने भी है उनके उपर ताला लगा हुआ है, लोग खुले में षौच जाते हैं जिससे गॉव के आसपास की सभी मार्ग गंदगी से पटे रहते हैं।

पेयजल के लिए कुछ हैण्डपम्प तो हैं लेकिन अधिकतर खराब पड़े है। कुछ तो पीला पानी देते है। गॉवों में जल संरक्षण के लिये तालाब या पोखरे पर अधिकतर दबंग लोगों द्वारा कब्जा कर लिया गया है, जो है भी वे बेहद गन्दे है और महामारी को दावत दे रहे है। जबकि इनके संरक्षण को लेकर सरकार के कई कार्यक्रम चल रहे है। नालीयॉ टुटी एवं जाम है, जल निकासी की कोई व्यवस्था नही है। सम्पर्क मार्ग जर्जर एवं गन्दगी से पटे है। अवैध शराब धड़ल्ले से बिकती है। गॉवों में विकास के नाम पर प्रतिबर्ष करोड़ों रूपये मिलतें हैं लेकिन समस्या जस की तस है।

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी समस्याओं का निजात ग्रामसभा के पास है लेकिन ग्रामसभा या पंचायत कभी बैठती ही नही और जन समस्याओं को लेकर संजीदा नही है। स्थानीय अधिकारियों को अवगत कराने के पश्चानत भी कोई सुनवाई नही हाती। लोग अपने आप को असहाय महसूस कर रहे है, आखिर अपनी समस्या लेकर किसके पास जायें। बिना रिश्व त का कोई काम नही होता। किसी की कोई जबाबदेही नही है। मतदाता पॉच बर्ष में केवल एक बार वोट लेने मात्र का साधन बनकर रह गया है। लोगों में भी जागरूकता की कमी है। हम लोग लगातार इस आशा में प्रयास कर रहे है कि शायद किसी बदलाव की शुरूआत हो और लोग आगे आये। जबतक समाज का प्रत्येक बर्ग इसके लिए आवाज बुलन्द नही करेगा तबतक परिवर्तन की उम्मीद दिखाई देती।

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