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आज विश्व व्यापी आतंकवाद समस्त विश्व की शांति पर प्रश्नचिन्ह लगा चुका है.जिस प्रकार से मुस्लिम धर्म की कट्टरता की आड़ में विश्वव्यापी आतंकवाद को प्रायोजित किया जा रहा है. इससे पूरे विश्व की जनता तो उद्वेलित है ही, मुस्लिम समाज की विश्वसनीयता और स्वीकार्यता पर भी प्रभाव पड़ा है. समस्त मुस्लिम समाज को विशेष तौर पर अमेरिका और पश्चिमी देशों में शक की निगाह से देखा जाने लगा है.फ़्रांस में गत दिनों हुए हमले के पश्चात् वहां के राष्ट्रपति ने सीधे सीधे इसे मुस्लिम आतंकवाद की संज्ञा दी है.
क्या समस्त मुस्लिम समाज को आतंकवाद का समर्थक या आतंकवाद का घटक मान लेना न्यायोचित होगा? क्या जिस प्रकार से मुस्लिम धर्म को आधार बनाकर आतंकवाद की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है, मुस्लिम समाज के विकास के लिए फलदायी साबित हो सकेगा ? क्या मुस्लिम समाज को आतंकवाद के विरुद्ध अपनी आवाज उठाने का वक्त आ गया है,ताकि उनकी भावी पीढ़ियां सुरक्षित और सम्माननीय जीवन जी सकें?.ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके बारे में सोचना प्रत्येक बुद्धिजीवी,और संवेदन शील मुस्लिम के लिए आवश्यक हो गया है.ताकि उनके मुस्लिम समाज को एक सार्थक दिशा मिल सके और यह समाज भी दुनिया के सभी वर्गों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर प्रगति पथ पर निरंतर अग्रसर होता रहे.
बुद्धि जीवी किसी भी वर्ग या धर्म का व्यक्ति हो उसे यह समझना होगा की कोई भी धर्म मूल रूप से हिंसा का समर्थन नहीं करता.दुनिया में धर्म का उद्भव इन्सान को संसार में अपनी औकात में रहने के लिए किया गया था, ताकि वह दुनिया में जब तक रहे सुख और शांति के साथ जीवन यापन कर सके,और अन्य इंसानों के साथ भी सद्व्यवहार करे. अतः कोई भी धर्म यह नहीं कहता की वह किसी अन्य धर्म के अनुयायी से उसके जीने का अधिकार छीन ले.यदि कोई अपने धर्म की दुहाई देकर इस प्रकार का दुष्प्रचार करता है, तो वह धर्म का पालक नहीं बल्कि इंसानियत का दुश्मन है.उन्हें न तो स्वयं शांति से जीना आता है और न ही वे दुनिया को प्रगति करते देखने से खुश होते हैं.अपने कुटिल इरादों को अंजाम देने के लिए धर्म के सहारे भोले भाले युवाओं को भ्रमित करते हैं और उन्हें पथभ्रष्ट करते हैं.
जो भी आतंकवाद विश्व भर में अपने पंख फैला रहा है उसे समस्त मुसलमान समाज द्वारा प्रायोजित कहना मुस्लिम समाज के साथ अन्याय होगा. अगर ऐसा होता तो किसी भी आतंकी गतिविधि में कोई भी मुसलमान मौत का शिकार नहीं होता.स्वयं पाकिस्तान में आर्मी के बच्चो पर हुआ हमला इस बात का गवाह है,क्या वे सब गैर मुस्लिम बच्चे थे? गत रमजान के दिनों में मुस्लिम देशों में हुए आतंकी हमले यह भी सिद्ध करते हैं की आतंकियों का किसी धर्म से वास्ता नहीं है वे सिर्फ धर्म की आड़ लेकर अपने कार्यों को अंजाम देते रहते हैं.धर्म का वास्ता देकर आतंकियों की फौज खड़ी करते है.
यह बात बहुत कम लोगों को ही पता है की मुस्लिम समाज में एक पंथ है जिसे वहाबी पंथ के नाम से जाना जाता है,यह पंथ सर्वाधिक कट्टरवाद को पोषित करता है.वह कुरान और शरियत जैसे धार्मिक ग्रंथों में वर्णित आदेशों को कडाई से पालन को ही अपना धर्म समझता है. इस कट्टरता के माध्यम से अपने तुच्छ इरादों को पूर्ण करना चाहते हैं और समस्त दुनिया पर अपना बर्चस्व बनाना चाहते हैं. उसके लिये आधुनिक समाज या आधुनिकतावाद कोई मायने नहीं है,यह पंथ आधुनिकतावाद को सिरे से ख़ारिज करता है. वह कुरान या शरियत में लिखित कायदे कानूनों को अधिक कट्टरता के साथ पालन करने को उत्सुक रहता है.और दुनिया भर में फैले आतंकवाद की जड़ में यही पंथ है.ओसामा बिन लादेन हो या बगदादी अथवा कश्मीर में मारा गया बुरहान बानी सभी इसी समुदाय से आते हैं.दुनिया भर के अनेकों आतंकी संगठन जैसे लश्कर-ए-तोएबा,अल-कायदा,हिजबुल मुजाहिद्दीन,आई.एस.आई.एस.इत्यादि वहाबी पंथ के अनुयायी हैं. वे आम मुस्लमान के भी हितैषी नहीं हैं.वे सिर्फ वहाबी समाज(विचार धारा) के पक्षधर हैं. परन्तु पूरे मुस्लिम समाज को भ्रमित अवश्य करते हैं,उसे धर्म संकट में डालते हैं.आम गरीब बेरोजगार मुसलमानं नवयुवक को धर्म की दुहाई देते हुए मानसिक रूप से अपने पक्ष में कर लेते हैं.इस्लाम की मान्यताओं का वास्ता देते हुए आत्मघाती लडाका बना देते हैं, उन्हें जन्नत के स्वप्न दिखा कर आत्मघाती आतंकी बनने के लिए प्रेरित करते हैं,उन्हें आर्थिक सहयोग देकर उनको वर्तमान पारिवारिक समस्या से मुक्त करने का प्रलोभन देते हैं.और भविष्य में उनके गैरहाजिरी में उनके परिवार का भरण पोषण करने का वादा भी करते हैं.
इस्लाम धर्म की कथाकथित मान्यता
“इस्लाम धर्म के अनुसार दुनिया में जो व्यक्ति इस्लाम धर्म को नहीं मानता अर्थात जो मुस्लिम नहीं है वह काफ़िर है.प्रत्येक सच्चे मुसलमान का कर्तव्य है की, वह दुनिया से अन्य धर्म के अनुयायी को या तो समाप्त कर दे या उन्हें मुस्लिम बना दे.और पूरे विश्व में इस्लाम में परिवर्तित करने में अपना योगदान करे. इस धार्मिक कार्य में यदि कोई अपनी जान गवां देता है तो उसे खुदा जन्नत नसीब कराएगा.इसी धारणा को लेकर युवाओं को आत्मघाती लड़ाका बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है.” इनकी सोच के अनुसार आज इन्सान को अट्ठारहवी सदी के अनुसार ही जीना चाहिए.जैसे मुस्लिम महिलाओं को पढने का कोई अधिकार नहीं है,पुरुषों को दाढ़ी नहीं बनानी चाहिए, इन्सान का व्यव्हार और देश की शासन व्यवस्था मुल्ला मोलवियों द्वारा नियंत्रित होनी चाहिए, जो शरियत के अनुसार उसे जीने के सलाह दें इत्यादि इत्यादि. क्या यह सोच इंसानियत के विरुद्ध नहीं है? क्या इन्सान पुरानी मान्यताओं पुरानी दकियानूसी धारणाओं को अपना कर आधुनिक समाज के साथ चल सकता है?क्या वह समस्त समाज के साथ उन्नति कर सकता है? क्या आतंकवाद से मानव समाज उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकता है? क्या मुस्लिम समाज को वर्तमान जीवन शैली के अनुसार जीने का अधिकार नहीं है? कोई व्यक्ति यदि मुस्लिम समाज में पैदा हुआ है तो वह मुस्लिम धर्माधिकारियों के आदेशो के अनुरूप चलने को बाध्य है क्यों?
मुस्लिम समाज के लिए दुनिया में अपने अस्तित्व के लिए लडाई गंभीर होती जा रही है.उनके लिए समाज में अपनी उन्नति के रास्ते बन्द होते जा रहे हैं. उन्हें पूरे विश्व में शक की नजरों से देखा जाने लगा है उन्हें कोई भी जिम्मेदार पद देने के लिए सबसे पीछे रखा जाने लगा है.परन्तु मुस्लिम समाज के किसी भी आम व्यक्ति की क्या गलती है, जो चंद लोगों की नापाक हरकतों के कारण उसे भुगतना पड़ रहा है? यदि परिवार का कोई युवा आतंकियों के बहकावे में आकर स्वयं आतंकी बन जाता है तो पूरा परिवार किस त्रासदी से गुजरता है यह तो भुक्तभोगी ही जान सकता है.यदि शहर या देश में आतंकी गतिविधियों के कारण दंगे फसाद होते हैं तो खामियाजा प्रत्येक देश या शहर के निवासी को भुगतना पड़ता है. उनके बच्चो का भविष्य खतरे में पड़ता है, रोजगार ख़त्म हो जाते हैं,उद्योग धंधे ठप्प पड़ जाते हैं,खेती बाड़ी नष्ट हो जाती हैं,क्या सभी उत्पादन नष्ट कर इन्सान की आवश्यकताएं तथाकथित धार्मिक मान्यताएं पूर्ण कर देंगी.
दुनिया में बन गयी इस असहज स्थिति से कैसे निपटा जा सकता है? इस समस्या का समाधान भी मुस्लिम समाज ही निकाल सकता है.यदि समाज के प्रबुद्ध,बुद्धि जीवी एवं संवेदन शील वर्ग गंभीरता और ईमानदारी से एक जुट होकर समाधान खोजने के प्रयास करें.
यदि समस्त मुस्लिम समुदाय, और सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही क्यों सभी धर्म,वर्ग या समुदाय में आतंकवादी संगठन उभरते मिलते हैं, तो इसी प्रकार से अपने समाज को अवांछित गतिविधियों से बचाने का संकल्प लें,जियो और जीने दो की धारणा को अपनाये, तो विश्व से आतंकवाद समाप्त करने में तत्परता आ सकती है,दुनिया के सभी धर्मों समुदायों को अपनी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने का अवसर मिल सकता है . और समस्त मानव समाज सुख और शांति के साथ अपना जीवन व्यतीत कर पायेगा.
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