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स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए आवश्यक है मजबूत विपक्ष का होना   

jara sochiye
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2014 के लोकसभा चुनाव के पश्चात् मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का जनाधार लगातार घटता जा रहा है.धीरे धीरे सभी राज्यों की विधान सभाओं में भा.ज.पा.को अप्रत्याशित विजय मिलती जा रही है.इन राज्यों में मुख्य राष्ट्रिय दल कांग्रेस के साथ साथ क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ता जा रहा है.विरोधी पार्टियों में निराशा इस हद तक बढ़ चुकी है की उन्हें निजी स्तर पर चुनाव जीत लेने की सम्भावना समाप्त हो चुकी है और सब विरोधी दल मिल कर तीसरा मोर्चा बनाने के लिए प्रयासरत हो रहे हैं. ताकि भा.ज.पा से मुकाबला कर सकें और आने वाले चुनावों में सफलता प्राप्त कर सकें.

यद्यपि वर्तमान चुनाव प्रणाली  के आधार  पर जीतने वाला प्रत्याशी क्षेत्र के मतदाताओं के कुल बीस से पच्चीस प्रतिशत वोट प्राप्त कर  चुनाव में जीत प्राप्त कर लेता है अर्थात जीतने वाले प्रत्याशी के पक्ष के मुकाबले उसके विरोध में वोट अधिक पड़ते हैं, जो विभिन्न उम्मीदवारों में बंट कर सर्वाधिक वोट पाने वाला चुनाव जीत जाता है. कुछ चुनावी प्रक्रिया ही ऐसी है की चुनाव जीतने के लिए सर्वाधिक वोट पाना होता है न की कुल मतदाताओं के आधे से अधिक का समर्थन. जबकि लोकतंत्र में  बहुमत जनता जिसके पक्ष में हो उसे ही क्षेत्र का  प्रतिनिधित्व करने का अधिकार मिलना चाहिए.अतः यदि सभी विरोधी दल एक साथ आ जाएँ तो विरोध में पड़ने वाले सभी मत तथाकथित तीसरे मोर्चे को मिल जायेंगे और जीत जायेंगे.परन्तु यह शत प्रतिशत सत्य भी नहीं है,सिर्फ सम्भावना हो सकती है.यह तो विडंबना ही है की कोई भी विरोधी दल मोदी जी से अधिक सार्थक  कार्य कर दिखाने की इच्छा व्यक्त नहीं करता या करके दिखाता.यदि आज कोई एक नयी पार्टी या फिर वर्तमान पार्टी यह आश्वासन दे की वह मोदी से भी अधिक कुशलता से विकास करके दिखा सकता/सकती  है, तो भारतीय लोकतंत्र के लिए,और देश के लिए कल्याणकारी हो सकता है.परन्तु अरविन्द केजरीवाल जैसे भ्रमित करने वाले नेता जनता के लिए मुश्किलें पैदा कर देते हैं,और जनता उसके आश्वासनों पर विश्वास कर अपने को ठगा महसूस करती है, और जनता के लिए संभव नही हो पाता की वह किसी उभरते नेता के आश्वासनों पर विश्वास कर सके. जनता ने बहुत धोखे खाएं है नेताओं के मकडजाल के कारण.अब उसके लिए किसी उभरते नेता पर विश्वास कर पाना आसान नहीं होगा और वर्तमान में सभी विरोधी पार्टीयां नकारा,और अविश्वसनीय  साबित हो चुकी हैं.अतः तीसरे मोर्चे की सफलता संदिग्ध ही लगती है.आज का वोटर पहले के मुकाबले अधिक समझदार है, युवा पीढ़ी अधिक पढ़ी लिखी होने के कारण स्वस्थ्य निर्णय ले पाने में सक्षम हैं.अब उन्हें भ्रमजाल में फंसाना संभव नहीं है.मोदी जी का विकल्प बनने के लिए किसी भी नेता को जनता को आश्वस्त करना होगा की वह और उसकी पार्टी मोदी जी से अधिक कर्मठ एवं विकास शील साबित होंगे और उसे अपने स्वार्थ छोड़ कर सकारात्मक राजनीति की शुरुआत करनी होगी और धीरे धीरे आगे बढ़ना होगा. परन्तु इस मार्ग से तुरन्त केंद्र की सत्ता तक पहुँचाना संभव नहीं  होगा. उसे साबित करना होगा की वह जो कहता है, करके दिखाता है और वह सिस्टम से भ्रष्टाचार को ख़त्म करने की इमानदार कोशिश जारी रखेगा.

यदि देश में लोकतंत्र को मजबूत बनाये रखना है तो जितना आवश्यक है सत्ता धारी दल को सदन में पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो ताकि उसे किसी भी कानून को पास करा पाने में परेशानी न हो उतना ही आवश्यक है  सशक्त विपक्ष का होना ,जिससे जनता के सामने असंतोष की स्थिति में विकल्प चुनने का अवसर भी हो. मजबूत विपक्ष होने से ही सत्तारूढ़ दल भी अपने कार्यों को मर्यादा में रहते हुए जनता के हित में कार्य करता रहेगा अन्यथा सत्ताधारी पार्टी कितनी भी परम उद्देश्य के साथ कार्य करने वाली हो कमजोर विपक्ष के रहते  पथभ्रष्ट होने से रोक पाना मुश्किल होता है.

विरोधी पार्टियों के लिए अपने अस्तित्व को बनाये रखना है, तो उन्हें अपने स्वार्थ को छोड़ कर  देश और देश की जनता की हितों के लिए सोचना ही होगा,राजनीति में आने का तात्पर्य समाज सेवा होना चाहिए न की अपनी और अपनों की तिजोरियों भरने का. तत्पश्चात ही उन्हें सत्ता का सुख मिल पायेगा.और देश की जनता को नकारात्मक विचारों वाली सरकारों से मुक्ति मिल पायेगी.देश वास्तविक रूप से विकास की ओर उन्मुख हो सकेगा. विश्व में देश को गौरव प्राप्त हो सकेगा. (SA-217B)

 

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