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जश्ने आजादी या जश्ने बर्बादी(स्वतंत्रता दिवस २०१३)

jara sochiye
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15अगस्त २०१३ को हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी पूरा देश स्वतंत्रता दिवस की वर्ष गांठ का जश्न मना रहा है.अब हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए हमें 66वर्ष हो चुके हैं.परन्तु क्या हम आजादी के इतने लम्बे समय के पश्चात् भी वास्तव में आजाद हो पाए हैं?क्या आज भी देश के प्रत्येक नागरिक के लिए बुनियादी आवश्यकताएं अर्थात रोटी,कपडा और मकान उपलब्ध करा पाए हैं?क्या देश के प्रत्येक परिवार को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा पाए हैं? क्या आज भी देश के गरीब व्यक्ति को गंभीर बीमारियों के कारण असमय मौत के मुहं में जाने से रोक पाए हैं?क्या हमारे देश का भविष्य यानि बचपन को खेलने कूदने की आजादी एवं स्वास्थ्य जीवन जीने के साधन दे पाए है?क्या आजादी के छः दशक से अधिक होने के बाद भी देश में कानून व्यवस्था को दुरुस्त कर पाए हैं,और जनता को निर्भयता का माहौल दे पाए हैं?
यदि हम अपने आजादी के इतने लम्बे समय का विश्लेषण करें और सोचें की हमने आजादी के इतने समय में क्या क्या उपलब्धियां प्राप्त कीं तो देश के वर्तमान हालातों को देख कर मन व्यथित ही होता है.आज देश की जनता महंगाई ,भुखमरी ,बेरोजगारी, भ्रष्टाचार,आतंकवाद,क्षेत्रवाद,धार्मिक उन्माद जैसे हालातों से त्रस्त है.देश की अर्थव्यवस्था निरंतर गिरती जा रही है,देश की मुद्रा अर्थात रूपया न्यूनतम स्तर पर पहुँच चुका है.देश में अपराधों,धोखे बाजों ,बलात्कारियों की बाढ़ सी आ गयी है अर्थात जनता किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं रही। एक तरफ पिद्दी सा देश पाकिस्तान लगातार धमकता रहता है दूसरी तरफ ड्रेकुला अर्थात चीन अपनी विशाल ताकत का प्रदर्शन कर धौंस ज़माने का प्रयास करता रहता है.देश की आन्तरिक स्थिति भी दयनीय बनी हुई है अनेक क्षेत्रों में हिंसा का तांडव चलता रहता है,कभी नक्सलवाद तो कभी उल्फा,कभी तेलंगाना और जाने क्या क्या दिने प्रतिदिन नयी समस्याएं पैदा कर रहे हैं.यही है हमारी आजादी के ६६ वर्षों की उपलब्धियां।यदि कोई स्वतंत्रता सेनानी जिसने देश को आजादी दिलाने के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया था ,आज भारत की दुर्दशा देखे तो उसे कितना कष्ट होगा,क्या उसका बलिदान ऐसे भारत के निर्माण के लिए था?ऐसी परिस्थितियों में क्या हमें आजादी का जश्न मनाना चाहिए?क्या हमें आजादी की खुशिया मनाने का हक़ है?
आखिर कौन जिम्मेदार है आज की दयनीय स्थिति का?निश्चित रूप से देश का नेतृत्व इसके लिए जिम्मेदार माना जायेगा।जिन नेताओं ने देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली और सत्ता का सुख उठाया वे ही देश की दुर्दशा के जिम्मेदार है.जिन्होंने जनता की सेवा नहीं बल्कि अपनी सेवा की अपने स्वार्थ के लिए सारे कार्य किये,जनता को कोरे वायदों से भ्रमित किये रखा और भ्रष्टाचार का सहारा लेकर अपने बैंक बेलेंस बढ़ाते रहे.जन सेवा की कोई भी योजना यह सोच कर नहीं बनायीं गयी की इससे देश की जनता लाभान्वित होगी,देश का विकास होगा,बल्कि अपनी नौकरशाही और अपने विकास को ध्यान में रखते हुए बनायीं गयी.हमारे देश की जनता भी इस दुर्दशा के लिए कम जिम्मेदार नहीं है.हमने आजादी को अपनाया कानून को तोड़ने के लिए,हम सब आजाद हो गए सभी अवैध और भ्रष्ट कार्य करने के लिए,हम स्वतन्त्र हो गए सभी नैतिक कार्यों को तिलांजलि देने के लिए,हम स्वतन्त्र है कोई भी अपराध करने के लिए,हमारा शासन है अतः हम किसी भी अधिकारी को हड़का सकते है उसे बंधक बना सकते है उसे पीट सकते हैं ,और फिर भी हमें मनमानी करने से रोके तो उसे दुनिया से ही उठा सकते हैं.आखिर जनता का शासन है.हम अपने गिरेवान में झाँकने की कोशिश नहीं करते, परन्तु नेताओं को निरंतर गाली देने का अधिकार तो हमारे पास है.कुल मिला कर कहने का तात्पर्य है की हम सदैव अपने अधिकारों की बात तो करते हैं परन्तु देश के प्रति समाज के प्रति अपने कर्तव्यों की ओर कभी ध्यान नहीं देते।जब देश का मालिक (जनता )ही देश के प्रति लापरवाह हो, स्वार्थी हो तो देश का विकास कौन करेगा?
शायद कुछ लोग सोचते होंगे पिछले पचास वर्षों में जीवन स्तर में बहुत बड़ा बदलाव आया है ,बड़े बड़े भवन ,इमारतें,कारखाने बने है.आम आदमी का जीवन स्तर,जीवन शैली में सुधार हुआ है,बात कुछ हद तक सही भी है, परन्तु यह भी सत्य है की आज भी देश की आधी आबादी गरीबी की रेखा से नीचे जीने को मजबूर है.जिसे दो समय की रोटी जुटाना आज भी पहेली बनी हुई है,(यह भी सत्य है की हमारे देश में खाद्यान्न की पैदावार देश की पूरी आबादी का पेट भरने में सक्षम है ,परन्तु यह भी सत्य है की सर्कार के गोदामों में लाखों टनअनाज सड़ जाता है और गरीब भूखा रह जाता है.)उन्हें रहने को छत नसीब नहीं है,बच्चो को शिक्षा पाने के लिए आवश्यक साधन नहीं है,उन्हें स्वस्थ्य रहने के लिए पोष्टिक भोजन,आवश्यक चिकित्सा कराना दूर की कौड़ी बनी हुई है.चंद मुट्ठी भर लोगों के विकसित होने से देश विकसित नहीं हो सकता।देश को विकसित तभी माना जा सकता है जब देश का आखिरी व्यक्ति भी सुविधा संपन्न हो.मूलभूत आवश्यकताओं के लिए त्रस्त न हो.

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