Menu
blogid : 855 postid : 1345341

जीएसटी: अभी भी स्पष्टता का अभाव

jara sochiye
jara sochiye
  • 256 Posts
  • 1360 Comments

1 जुलाई 2017 से पूरे देश में सभी प्रकार के टैक्स हटाकर जीएसटी लागू कर दिया गया. इसके लागू होने से देश के सभी प्रान्तों में वस्तुओं और सेवाओं पर समान दर पर टैक्स लगेगा. अतः ग्राहक को पूरे देश में एक ही रेट पर वस्तुएं एवं सेवाएं उपलब्ध हो सकेंगी. साथ ही व्यापारियों और उद्योगपतियों को पूरे देश में माल के आवागमन में आसानी हो जाएगी और देश में उद्योगधंधों को विकास करने का अवसर मिलेगा.


GST


उद्योगधंधों के विकास से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और देश की जीडीपी दर भी बढ़ेगी अर्थात देश की अर्थव्यवस्था का विकास होगा. परन्तु पर्याप्त जानकारी के अभाव में व्यापारी असमंजस में हैं कि वे कैसे इसे अपने नियमित व्यापारिक जीवन में लायें. आज उनके समक्ष अनेकों प्रकार के प्रश्न उभर कर आ रहे हैं और वे भ्रमित हो रहे हैं कि कैसे बिना कानून को तोड़े अपने व्यापार को पटरी पर ला सकें. विशेषतौर पर छोटे और मझोले स्तर के व्यापारी जो अपने पास अकाउंटेंट नहीं रख सकते और न ही वकील या सीए की सलाह के लिए व्यय भार को उठा सकते हैं. अभी तो वकील और कर निर्धारण अधिकारी भी पुख्ता तौर पर जानकारी नहीं दे पा रहे हैं. वे स्वयं ही नए नियमों को लेकर असमंजस में हैं. अतः व्यापारी को जीएसटी के नए प्रावधानों की सटीक जानकारी कैसे मिले, ताकि वे अपनी जीविका को सुचारू रूप से चला सकें.


व्यापारियों की भ्रांतियां


– क्या व्यापारी के सबसे छोटे वर्ग (अर्थात वार्षिक टर्नओवर 20 लाख से नीचे की श्रेणी में आने वाले व्यापारी) को जीएसटी में पंजीयन कराना आवश्यक है? यदि हाँ तो क्यों? उसे हिसाब-किताब रखना आवश्यक होगा या नहीं, यदि हाँ तो क्या-क्या हिसाब रखना होगा. जीएसटी विभाग कैसे मानेगा कि अमुक व्यापारी निम्नतम श्रेणी में आयेगा?


– 20 लाख की सीमा सिर्फ बिक्री पर आधारित होगी या खरीद-बिक्री दोनों को मिलाकर हुए टर्नओवर को सीमा माना जायेगा?


– सबसे छोटे स्तर के निर्माता का भविष्य कैसे तय होगा. वह अपनी गतिविधि कैसे चलाएगा, उसके लिए उसे जीएसटी में पंजीयन कराना आवश्यक होगा अथवा बिना पंजीयन के उसे अपना कार्य करने की छूट मिलेगी? परन्तु जीएसटी विभाग कैसे तय करेगा की उद्योगपति 20 लाख से नीचे की श्रेणी में आता है? अथवा अधिकारी के निर्णय पर आधारित होगा और व्यापारी को अधिकारियों की पूजा कर अपने पक्ष में निर्णय करवाना पड़ेगा.


– कपड़ा व्यापारियों में रोष है कि सरकार ने कपड़े पर टैक्स क्यों लगा दिया. अब उन्हें भी खरीद बिक्री का हिसाब-किताब रखना पड़ेगा और कर विभाग के चक्कर लगाने होंगे, जिसकी अभी तक कोई आवश्यकता नहीं होती थी? पहले की भांति कपड़े को टैक्स मुक्त क्यों नहीं रखा गया? (पूर्व में कपड़े पर बिक्री कर या वैट नहीं होता था सिर्फ उत्पादक को एक्साइज ड्यूटी देनी होती थी. क्योंकि अब एक्साइज ड्यूटी हटा दी गयी है, अतः कपड़ा जीएसटी के दायरे में आ गया और कपड़ा व्यापारियों की जिम्मेदारी बढ़ गयी) जो कपड़ा व्यापारी किसी प्रकार के वाणिज्य कर से मुक्त थे अब उन्हें भी जीएसटी का भार उठाना होगा.


– क्या उत्पादक के लिए भी कोई न्यूनतम छूट सीमा रखी गयी है, यदि हाँ तो कितने स्तर पर? यदि छूट सीमा नहीं है, तो कुटीर उद्योग का क्या होगा, उनका माल बाजार में कैसे बिकेगा? क्योंकि व्यापारी को माल खरीदने के लिए जीएसटी पंजीकृत उद्योगपति से माल खरीदने पर ही इनपुट क्रेडिट मिलेगा अन्यथा नहीं. अतः वह अपंजीकृत उद्योगपति से माल नहीं खरीदेगा, तो फिर छोटा उत्पादक माल किसे बेचेगा? अब उसे कच्चा माल भी नहीं मिलेगा, क्योंकि खरीदारी करने के लिए भी जीएसटी में पंजीयन आवश्यक है.


– इसी प्रकार छोटा व्यापारी जो न्यूनतम छूट सीमा के अंतर्गत आता है और उसे पंजीयन आवश्यक नहीं है, तो वह व्यापारी से माल कैसे खरीदेगा, क्योंकि थोक व्यापारी की कानूनी मजबूरी है कि वह सिर्फ पंजीकृत व्यापारी को ही माल बेच सकता है. जब छोटा व्यापारी माल ही नहीं खरीद पायेगा, तो वह बेचेगा क्या?


– कुछ कर अधिकारियों का कहना है कि यदि कोई व्यापारी तीन माह लगातार कुल खरीद-बिक्री न्यूनतम सीमा को पार नहीं करता है, तो उसका पंजीयन रद्द कर दिया जायेगा. इसका अर्थ यह भी हुआ कि न्यूनतम सीमा में आने वाले व्यापारी को पंजीयन करने की आवश्यकता नहीं है. जबकि उसके लिए माल खरीदने के दरवाजे भी बंद हो जायेंगे अर्थात उसका व्यापार ख़त्म हो जायेगा.


– वकील और सीए कहते हैं कि अब सभी व्यापारी एवं उद्योगपतियों के लिए बिल बुक कम से कम दो प्रतिलिपि के साथ छपवानी होगी, जो छोटे खुदरा व्यापारी के लिए औचित्यहीन और अनावश्यक प्रतीत होता है. जिसमें कहीं न कहीं भ्रम की स्थिति बनी हुई है.


– अनेक व्यापारियों के पास विद्यमान वस्तुएं विभिन्न कर की दरों के अंतर्गत आती हैं. अब उन्हें प्रत्येक कर आधारित बिल बुक अलग-अलग छपवानी होगी और कर मुक्त वस्तुओं की बिल बुक अलग से रखनी होगी. क्या वह बिना स्टाफ रखे संभव होगा? विशेषतौर पर जो अपने केस को कंपाउंड की श्रेणी में रखना चाहते हैं. अर्थात जो छोटे या मझोले स्तर के व्यापारी या उद्योगपति हैं, उनके लिए कितना कष्टकारी साबित होगा व्यापार कर पाना?


– जो व्यापारी अपने को कंपाउंड की श्रेणी में पंजीयन कराएंगे वे अपना माल प्रदेश से बाहर नहीं बेच सकेंगे और शायद प्रदेश से बाहर से माल भी खरीद नहीं सकेंगे? कुछ भी स्पष्ट नहीं है.


– लगभग सभी व्यापारी चाहते हैं कि उन्हें पुराने स्टॉक को पुराने M.R.P. पर बेचने की छूट दी जाये, ताकि पुराने स्टॉक का निस्तारण बिना किसी व्यवधान के कर सकें और नई खरीदारी कर सकें. जीएसटी कानून में व्यापारी के पुराने स्टॉक के निस्तारण के लिए कुछ स्पष्ट नहीं है.


– क्या सरकार के लिए यह संभव नहीं है कि वह स्थानीय सरल भाषा में व्यापारियों को दिशानिर्देश उपलब्ध करा दे, ताकि कोई भी वकील, कर अधिकारी अथवा सीए उनका शोषण न कर सके और उसे अतिरिक्त खर्चे से मुक्त किया जा सके.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh