यदि महिलाओं की समानता की बातें की जाती हैं,अनेक आन्दोलन चलाये जाते हैं,तो बेटियों एवं महिलाओं को परिवार के बेटे के समान दायित्वों का भार भी समान रूप से दिया जाना चाहिए.अन्यथा भाई बहनों के रिश्तों में खटास आनी स्वाभाविक है,उनमे आपसी द्वेष भाव बढ़ने की पूरी सम्भावना है.यह खटास महिलाओं को अपने अधिकारों की लडाई में असफल कर सकता है.उन्हें पुरुषों के समान सम्मान और समान अधिकार मिलने संभव नहीं हो सकते.
प्रस्तुतहैं कुछ व्याहारिक उदाहरण जिनके कारण समानता के अधिकारों की मांग निरर्थकलगती है. अधिकार के साथ कर्तव्यों के लिए भी आगे आना चाहिए;-
बेटियों को माता पिता का अंतिम संस्कार की इजाजत आज भी हमारा समाज नहीं देता.यहाँ तक यदि मृतक का कोई पुत्र नहीं है, तो भी बेटी को अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाता.धार्मिक मान्यता अड़चन बन जाती है.(यद्यपि कुछ ख़बरें आने लगी हैं की पुत्र के अभाव में बेटी ने पिता का अंतिम संस्कार किया परन्तु इस प्रकार के उदाहरण बहुत कम ही मिलते हैं.)
सरकारी कानूनों के अनुसार माता पिता की जायदाद से बेटे और बेटियों को बराबर का अधिकार मिला हुआ है,परन्तु भरण पोषण,सेवा सुश्रुषा कि जिम्मेदारी सिर्फ बेटे की मानी जाती है.क्या कानून को बेटी और दामाद को भी माता पिता की सेवा का दायित्व नहीं देना चाहिए.यदि नहीं तो बेटी बराबरी की हक़दार कैसे?
आज भी माता,पिता,दादा दादी के पैर छूने का अधिकार सिर्फ बेटे या पोते का ही होता है,परन्तु बेटी और नातिन को क्यों नहीं दिया जाता? यानि की बेटी या नातिन को संतान नहीं माना जाता जो अपने बड़ों का आशीर्वाद ले सकें? यदि हम दकियानूसी और पारंपरिक मान्यताओं की सोच में फंसे रहेंगे तो महिला समानता का अधिकार कैसे प्राप्त कर सकेगी?
भावनात्मक रूप से बेटियों को अपनी मां से अधिक लगाव होता है,यही कारण है जिस घर में बेटियां होती हैं,माँ की आयु कम से कम दस वर्ष बढ़ जाती है उसका स्वास्थ्य अपेक्षाकृत अधिक ठीक रहता है,क्योंकि विवाह होने तक बेटी अपनी माँ के प्रत्येक कार्य में सहयोग करती है.फिर भी बेटी के जन्म लेने पर माँ सर्वाधिक आत्मग्लानी का शिकार होती है.जैसे बेटी को जन्म देकर उसने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो.कम से कम माँ को एक महिला होने के नाते बेटी के रूप में एक महिला का स्वागत करना चाहिए.बेटी के पैदा होने पर उसे समाज के समक्ष गर्व से खड़ा होना चाहिए, उसके लिए आवश्यक होने पर संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए.
महिलाओं को अपने दायित्व को समझते हुए दुनिया में निरंतर हो रहे परिवर्तनों को जानने समझने का प्रयास करना चाहिए.क्या देश दुनिया की जानकारी रखने की जिम्मेदारी सिर्फ पुरुषों की है.यदि महिलाओं जागरूक नहीं रहेगीं तो उनका शोषण होने से कोई नहीं रोक पायेगा(अक्सर महिलाओं को कहता सुना जा सकता है हमें क्या फर्क पड़ता है कौन से राजा का राज है,दुनिया में क्या हो रहा है,क्यों हो रहा है?
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