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राजनीति और जातिवाद(jagran junction forum )

jara sochiye
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देश की आजादी के पश्चात् देश की व्यवस्था एवं नीतियों के निर्माण के लिए संविधान की रचना की गयी ,जिसमे अनेक अन्य व्यवस्थाओं के अतिरिक्त ,सामाजिक समरसता एवं सामाजिक न्याय दिलाने के लिए .हमारे समाज में हजारों वर्षों से दबे कुचले अर्थात पद दलित लोगों को उन्नति के रस्ते पर लाने के लिए ,समाज में सम्मान दिलाने एवं उनकी आर्थिक स्तिथि को सुधारने के उद्देश्य से सरकारी संस्थानों में नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गयी .और अन्य सुविधाएँ प्रदान कर समाज की मुख्य धारा में लाने की व्यवस्था की गयी .इस व्यवस्था को अगले दस वर्षों तक जारी रखने की घोषणा की गयी .क्योंकि समाज का उपेक्षित वर्ग कुछ विशेष जातियों से सम्बद्ध था अतः जाती उद्बोधन आवश्यक था . परन्तु संविधान निर्माताओं की यह मजबूरी नेताओं के लिए वोट बैंक का आधार बन गया .इसी कारण प्रत्येक दस वर्ष के पश्चात् आरक्षण को पुनर्जीवित करते रहे .और जाती आधारित राजनीति का परचम लहराने लगा .

हमारे संविधान में देश को धर्मनिरपेक्ष ,पंथ निरपेक्ष एवं जाती विहीन समाज वाला राष्ट्र घोषित किया गया . परन्तु हमारे नेताओं ने संविधान की मूल भावना का अर्थ का अनर्थ कर दिया .पंथ निरपेक्ष या धर्म निरपेक्ष के स्थान पर प्रत्येक धर्म एवं प्रत्येक जाती को बार बार उद्धृत कर आपसी विद्वेष बढ़ने का कम किया ,जिससे देश में जाति वाद धर्म वाद ,या पंथ वाद को बढ़ावा मिला प्रत्येक व्यक्ति अपनी जाति से सम्बद्ध होता दिखाई दिया प्रत्येक समुदाय ने अपने संगठन बना लिए .जातीय समीकरण चुनाव जीतने के आधार बन गए .उन्नति एवं विकास जैसे मुद्दे पीछे छूट गए .जाति के आधार पर योग्य ,दबंग ,अपराधी प्रवृति के लोग विधायिका एवं संसद तक पहुँच गए और मंत्री भी बनते रहे .विकास के मुद्दे पीछे रह जाने के कारण देश का विकास नेपथ्य में चला गया .नेता लोग विकास के नाम पर खर्च किया जाने वाले धन से अपनी तिजोरियां भरते रहे .

जाति आधारित राजनीति ने जहाँ समाज में वैमनस्यता बधाई ,आपसी टकराव का वातावरण बनाया ,साथ ही विकास का मुद्दा न रहने के कारण क्षेत्र का विकास रुक गया उसकी बुनियादी सुविधाओं ,जैसे पानी ,बिजली ,सड़क आदि का अभाव बढ़ता गया ,रोजगार के अवसर घटते गए ,गरीबी बढती गयी ,परन्तु चुन कर जाने वाले प्रतिनिधियों की जेबें भर्ती गयीं ,विदेशी बैंकों में उनके बैंक बेलेंस बढ़ते गए .इस प्रकार जाति वाद का मुद्दा नेताओं के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है और जनता बार बार भ्रमित हो कर लुटती जा रही है .

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