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सरकारी क्षेत्र में असंगत वेतनमान

jara sochiye
jara sochiye
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“वेतन आयोग के गठन में सदस्य के रूप में कार्यरत सरकारी अधिकारियों को नहीं लिया जाना चाहिए.यदि आवश्यक हो तो सेवानिवृत अधिकारियों को सदस्य नियुक्त किया जा सकता है. आयोग में नियुक्त सरकारी अधिकारी अपने लाभ को देखते हुए सुझाव देते हैं न की देश हित और सामाजिक न्याय को ध्यान में रखकर.”  

सरकारी कर्मचारियों के वेतन नियत करने के लिए प्रत्येक दस वर्ष बाद वेतन आयोग गठित किया जाता है जो सभी सरकारी कर्मचारियों के वर्त्तमान वेतनमान में प्रचलित बाजार मूल्यों के अनुसार आवश्यक बदलाव सरकार को सुझाता है. जिसे अक्सर कर्मचारी संगठनों के दबाव के कारण बिना किसी फेर बदल के सरकार द्वारा मान लिया जाता है. वेतन आयोग के सदस्यों में कुछ  सरकारी कर्मी (अफसर) भी होते हैं, जिनका उद्देश्य स्वयं के साथ अपने सभी संगी साथियों को अधिक से अधिक वेतनमान की सिफारिश करना होता है, ताकि सभी को अधिक से अधिक लाभ मिल सके और सरकारी खजाने में सेंध लगायी जा सके. जनता से वसूले गए टेक्स से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके. पांचवा, छठा और सातवें वेतन आयोग द्वारा दिए गए सुझाव तो यही दर्शाते हैं. सरकार में बैठे नेता जिन्हें वेतन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करना होता है, उन्हें भी अपने हित की चिंता होती है, क्योंकि उन्हें दिन रात इन्ही कर्मचारियों से ही काम लेना होता है और चुनाव जीतने के लिए भी सरकारी कर्मियों का योगदान चाहिए होता है. दूसरी बात है अक्सर नेताओं को अवैध कमाई के लिए भी सरकारी कर्मियों का सहारा लेना पड़ता है अन्यथा उनके लिए विदेशों में बेंक बैलेंस बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है. तीसरी बात वेतन आयोग की सिफारिशे लागू करने में उनका कुछ भी नहीं जाता, जनता से एकत्र किया गया राजस्व कर्मियों को देना होता है. अतः उनके लिए उसे स्वीकार करने में क्या आपत्ति हो सकती है. इस प्रकार सरकारी वेतनमान बाजार मूल्यों के सापेक्ष असंगत रूप से बढ़ा दिए जाते हैं. जिसका प्रभाव आम जनता और देश के विकास कार्यक्रमों पर किस प्रकार पड़ता है उसको आगे की पंक्तियों में विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है.

अत्यधिक सरकारी वेतनमान बेरोजगारी का कारण बनते हैं. यदि वेतनमान कम रखे जाते हैं, तो उतने राजस्व खर्चे से अधिक लोगों को रोजगार दिया जा सकता है.

सरकारी कर्मी मार्किट में प्रचलित मूल्यों से कही अधिक महंगा होने के कारण स्वयं सरकारी विभाग अपने सभी कार्यों को संविदा पर कराना अधिक लाभप्रद मानते हैं. यह एक सबूत है की वेतनमान कहीं अधिक हैं. संविदा पर कार्य करने वाले कर्मियों को ठेकेदार से भुगतान मिलता है, जो बाजार मूल्यों से भी कम ही मिलता है. ठेकेदार समाज में व्याप्त बेरोजगारी को देखते हुए उनकी पगार नियत करता है, अतः उनका भरपूर शोषण होता है. ठेकेदार को अन्य खर्चों के अरिरिक्त  स्वयं भी कुछ कमाना होता है, और सरकारी अधिकारियों से अपना  काम लेने के लिए भी उन्हें कमीशन देना पड़ता है.

एक प्राइमरी के सरकारी अध्यापक को लगभग चालीस हजार वेतन मिलता है और निजी क्षेत्र के स्कूल एक अध्यापक को मात्र सात या आठ हजार ही पगार देते है, कितना बड़ा अंतर है. मजेदार बात यह है की सरकारी अध्यापक की इतना अधिक वेतन लेने के पश्चात् भी बच्चो को पढ़ाने  में कोई रूचि नहीं होती. यही कारण है सरकारी स्कूलों  से पढ़े बच्चे प्रतियोगिताओं में निजी स्कूल से निकले बच्चों  से बहुत पिछडे हुए साबित होते हैं,अर्थात सरकारी स्कूलों के शिक्षा स्तर बहुत ही निम्न होता है. अक्सर देखा गया है प्राइमरी के अध्यापक एक किसी बेरोजगार को आठ दस हजार देकर अपने स्कूल में पढ़ाने के कार्य में लगा देता है और स्वयं घर बैठे तीस हजार प्राप्त करता है अर्थात सरकारी राजस्व की बर्बादी और दुरूपयोग. इससे स्पष्ट है वेतनमान कितने असंगत है. जो कुछ अध्यापक नियमित रूप से शिक्षा पर ध्यान देते हैं और पढ़ाने में रूचि रखते है उन्हें अन्य सरकारी कार्यों में लगा दिया जाता है जैसे चुनाव कार्य,पोलियो या अन्य  कोई सरकारी योजना के अंतर्गत किये जा रहे कार्य. इस प्रकार बच्चों की शिक्षा बाधित होती है और उनके भविष्य को हानि होती है.सरकारी स्कूलों  की शिक्षा गुणवत्ता का सबसे बड़ा   उदाहरण है, स्वयं सरकारी अध्यापक अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना उचित नहीं समझते हैं,अपने बच्चे के भविष्य उज्जवल बनाने के लिए उन्हें निजी स्कूलों में पढ़ाते हैं.यदि प्रत्येक सरकारी अध्यापक के लिए आवश्यक कर दिया जाय कि उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा सरकारी स्कूलों में ही करानी पड़ेगी, तो शायद स्थिति में कुछ बदलाव आये.

वेतनमान निश्चित करने की प्रक्रिया में यदि निम्न बदलाव कर दिए जाएँ तो यह हमारे देश के लिए और समाज के लिए हितकारी होंगे.

  • वेतन आयोग में निहित सदस्यों में कार्यरत सरकारी अधिकारियों को नहीं लिया जाना चाहिए.यदि आवश्यक हो तो सेवानिवृत अधिकारियों को सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है
  • वर्त्तमान वेतनमान में कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों को उपेक्षित भी किया जाता रहा है, जैसे जान जोखिम वाले कार्यों में लगे कर्मचारियों को भी सामान्य कर्मियों के समान वेतनमान निर्धारित किया जाता है, जैसे सेना के नौजवान, खान के अन्दर कार्य करने वाले,बिजली विभाग में कुछ कार्य बेहद जोखिम वाले होते हैं, केमिकल फक्ट्रियों, पेट्रोलियम क्षेत्र से सम्बंधित कारखानों में कार्यरत इत्यादि के कर्मियों को सामान्य वेतनमान के मुकाबले अधिक वेतन निर्धारित किया जाना चाहिए.
  • देश के महत्व पूर्ण पदों पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे अधिकारियों (असाधारण योग्यता वाले अफसर)), मंत्रियों, प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति,एवं सांसद या अन्य जनप्रतिनिधियों इत्यादि के वेतनमान सभी सरकारी कर्मियों से अधिक होने चाहिए. चुनावो में सारा खर्च सरकार के द्वारा उठाया जाना चाहिए, उम्मीदवार द्वारा व्यक्तिगत खर्च पर पाबंदी होनी चाहिए, ताकि किसी उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए अवैध रूप से धन जुटाने की आवश्यकता ही न हो. परन्तु कोई भी व्यक्ति महत्वपूर्ण एवं सम्माननीय पद पर बैठ कर जनता के प्रति संवेदन हीनता, देश हित के विरुद्ध अथवा भ्रष्ट आचरण में लिप्त पाया जाय तो उसे देशद्रोह का अपराधी मान  कर कठोर से कठोर सजा दिलाई जाय.
  • उच्चतम योग्यता वाले सक्षम सरकारी अधिकारी, असाधारण योग्यता वाले कार्यों को अंजाम देने वाले अफसरों को जैसे रिसर्च कार्यों में लिप्त, अंतरिक्ष, सॅटॅलाइट में विशेष योगदान देने वाले वैज्ञानिको को विशेष वेतमान निर्धारित किये जाने चाहिए.ताकि उनका उत्साह बना रहे. और देश का नाम ऊंचा करते रहें. उन्हें अपनी सुविधाएँ जुटाने के लिए विदेशों की ओर न भागना पड़े और अपने देश के लिए सम्मान पूर्वक तथा ख़ुशी से कार्य करते रहें.
  • तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मियों को बाजार मूल्यों के मुकाबले पचास प्रतिशत से अधिक वेतन निर्धारित नहीं किया जाना चाहिए.वे भी उसी बाजार से अपना सामान खरीदते हैं जहाँ से किसी अन्य क्षेत्र में कार्यरत कर्मी. फिर सरकारी कर्मी को चार या पांच गुना वेतन क्यों?
  • सरकार का दायित्व है की वह समाज के प्रत्येक तबके के हितों का ध्यान रखते हुए अपनी नीतियाँ बनाये.यदि सरकारी अधिकारियों, कर्मियों को तर्क संगत रूप से वेतन नियत किये जाएँ तो वर्तमान में वेतन पर किये जा रहे खर्चे से ही समाज के वंचित लोगों को भी लाभ पहुँचाया जा सकता है. साथ ही निजी कार्यों में लगे व्यक्तियों जैसे व्यापारी, वकील, डॉक्टर, उद्यमी इत्यादि के हितों और आवश्यक्ताओं के अनुरूप भरण पोषण भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए. आखिर ये भी देश  के नागरिक हैं और अपने कार्यकारी समय में सरकार के राजस्व में योगदान करते हैं.

पेंशन राशि  की सीमा

पेंशन का मूल उद्देश्य है की सेवा निवृत कर्मियों को असाधारण कठिन आर्थिक परिस्थितियों में भरण पोषण की समस्या न होने  पाए, अतः उन्हें न्यूनतम धनराशि, जिससे  वर्तमान बाजार मूल्यों पर न्यूनतम आवश्यकताएं पूर्ण हो सकें, उपलब्ध कराई जानी चाहिए. पेंशन का अर्थ यह कभी भी नहीं होना चाहिए की जनता के टैक्स से प्राप्त राजस्व से उनकी सभी आवश्यकतायें पूर्ण की जाएँ. इसलिए पेंशन की अधिकतम सीमा भी निर्धारित की जानी चाहिए और अधिकतम सीमा किसी भी हालात में इनकम टेक्स के दाएरे में न आ पाए अर्थात कर योग्य आय(Taxable income) उन्हें पेंशन में नहीं मिलनी चाहिए. इस प्रकार से बची हुई राजस्व का उपयोग गरीब और वंचित वृद्धों के भरण पोषण के लिए किया जा सकता है,संसाधनों का समान वितरण हमारे लोकतंत्र का उद्देश्य भी है.

एक ओर गरीब किसान कर्ज से दब कर आत्महत्या कर रहा है,वृद्ध मजदूर वर्ग एवं निजी कार्यों से सेवा निवृत हुए वरिष्ठ नागरिकों के भरण पोषण की समस्या गंभीर रूप ले रही है दूसरी ओर सरकार वेतन आयोग की सिफारिशे मान कर सरकारी सेवानिवृत कर्मियों को विपुल धनराशी घर बैठे उपलब्ध करा रही है.क्या यह असंगत वितरण नहीं है?

व्यापारी एवं निजी व्यवसाय से अपनी जीविका चलाने वाले भारतीय नागरिकों के लिए भी भारत सरकार को संवेदनशीलता दिखाते हुए सोचना चाहिए, यह वर्ग एक ऐसा वर्ग है जो अपने कार्यकारी समय में सरकारी राजस्व में सर्वाधिक योगदान देता है.परन्तु वह जब विप्पति ग्रस्त होता है या वृद्धावस्था में कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं होता, संतान द्वारा उपेक्षित किया जाता है, उसके भरण पोषण के लिए सरकार की ओर से कोई योगदान नहीं मिलता, और उसे नारकीय जीवन जीने को भी मजबूर होना पड़ता है. ऐसी स्थिति में सरकार का सहयोग अपेक्षित है.बहुत अधिक नहीं तो किसी निजी कारोबारी द्वारा अपने कार्यकाल में कर संग्रह एवं व्यक्तिगत आय पर दिए गए कर द्वारा राजस्व में दिए गए योगदान राशि के ब्याज को ही उसकी पेंशन का आधार माना जा सकता है. इससे सरकार को दो लाभ होंगे प्रत्येक निजी कारोबारी अपने कार्यकारी समय में अधिक अधिक टैक्स देने का प्रयास करेगा ताकि उसका भविष्य सुधरे, दूसरे सरकार का देश के प्रत्येक नागरिक के प्रति कर्तव्य की पूर्ती होगी. सामाजिक सामंजस्य बना पाने में मदद मिलेगी.

यद्यपि 2005 से भर्ती किये गए सरकारी कर्मी अपनी सेवा निवृति के पश्चात् पेंशन पाने के अधिकारी नहीं होंगे. शायद यह कदम भी मजबूरी में सरकार को उठाना पड़ा. उसे आगे चल कर पेंशन भोगियों का भार असहनीय प्रतीत होने लगा था. सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम अपने आप में सिद्ध करता है की भविष्य में असंगत वेतन मान और पेंशन के बढ़ते खर्चे सरकार के कुल राजस्व का बड़ा हिस्सा निगल जायंगे और विकास कार्य ठप्प पड़ जायेंगे.सरकार का यह कदम भी निंदनीय है वृद्धावस्था में भरण पोषण की सुरक्षा तो सरकारी कर्मियों समेत प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए. नियंत्रित पेंशन ही इसका सही विकल्प हो सकता है. (SA-237E)

 

 

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