भावों को शब्द रूप
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पड़ गया है आदर्शो पर घना कुहासा देखिये
देश भर में भ्रष्टाचार का तमाशा देखिये
हो गया नैतिक पतन किस कदर इन्सान का
देखना है तो ज़रा फिल्मों की भाषा देखिये
मर रहा है गरीब भूख के कारण यहाँ
देश में अनाज की बर्बादी का तमाशा देखिये
जो बचा सकती नहीं आबरू अबलाओं की
ऐसी भारत सरकार की भी हताशा देखिये
छोड़ कर स्कूल कर रही मजदूरी है जो
उस युवा पीढ़ी की भूख की पिपासा देखिये
त्रस्त है जनता यहाँ भ्रष्टाचार और महंगाई से
आप कागजों पे सरकार की वीरगाथा देखिये
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