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होता हूँ विवश कभी जो माँ ,बस तुम्ही याद मुझे आती हो

भावों को शब्द रूप
भावों को शब्द रूप
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मेरे आधार में तुम हो ,मेरे आकार में तुम हो
तुम्ही सांसो में हो मेरी ,लहू कि धार में तुम हो
बनी सम्बल हो दुखों में ,मेरी मुस्कान में तुम हो
बचाने को मेरी कस्ती भरी मझधार में तुम हो

तुम करुणा का सागर हो ,मर्यादा कि मूरत हो
तुम देवों की पूज्यनीय,तुम ही सृष्टि की सूरत हो
मैं ऋणी तुम्हारी ममता का तुम इतना प्यार लुटाती हो
होता हूँ विवश कभी जो माँ ,बस तुम्ही याद मुझे आती हो

बाल्यावस्था से अबतक माँ, प्यार तुम्हारा पाया है
खुद को कष्टों से रंजित कर तुमने फ़र्ज़ निभाया है
मेरी खुशियों की खातिर माँ तूने सर्वस्व लुटाया है
अपनी छोटी सी चोटों पर तेरी आँखों में सागर पाया है

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