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चीन की सफल रणनीति !

smriti
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चीन की तुलना केवल लगातार लगातार काम में जुटी रहने वाली चीटियों से हो सकती है …हम देखते और समझते ही रह गए और उसने हमारी घेरेबंदी के काम को पूरा कर लिया!हमें कभी लद्दाख में उलझाया तो कभी अरुणांचल में,और उसने अपने राष्ट्रीय हित में जो बाधाएं भारत की तरफ से आ सकतीं थीं या जिनकी दूर भविष्य तक में कोई संभावना थी उन बाधाओं को बखूबी निपटा लिया!
भारत को लेकर चीन की सबसे बड़ी आशंका ‘हिन्द महासागर’ क्षेत्र था जहाँ से होकर चीन की अधिकाँश ऊर्जा आपूर्ति होती है,और जहाँ भारत का निर्विवाद दबदबा है.इस निर्भरता को उसने अगले २० साल तक तेल और गैस की आपूर्ति के रूस के साथ किये एक समझौते से कम कर लिया…लेकिन वो यहीं नहीं रूका उसने हिन्द महासागर में अंदमान के पास कोको द्वीप पर हमारे लिए मुश्किल तो खड़ी की ही बल्कि उसने पाकिस्तान और ईरान के साथ मिलकर अपने पुराने ‘सिल्क मार्ग’ को भी आज की जरूरत के हिसाब से नया कर लिया…वो चाहे काराकोरम मार्ग का निर्माण हो या पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को लीज पर लेना हो या ईरान के साथ तेजी से ‘सिल्क मार्ग’ पर काम करना हो…चीन ने पिछले १० वर्षों में अपने लिए तय सारे लक्ष्य अब हासिल कर लिए हैं!हम पर और ज्यादा दवाब बनाये रखने की खातिर उसने अपने हिस्से में पड़ने आली ब्रह्म पुत्र नदी को भी बाँध लिया.
अब एक कदम आगे बढ़ कर चीन दक्षिण एशिया सागर से शुरू होने अपने पुराने समुद्री रेशम मार्ग को नए सिरे से संवार रहा है…बर्मा,श्रीलंका,मालदीव और उत्तरी अफ़्रीकी देशों के साथ उसने नए समझौते किये हैं जो समुद्री मार्ग से उसकी भूमध्य सागर तक पहुँच को आसान बनाएंगे.
इसकी तुलना अगर भारत से की जाये तो भारत हाथ आये अवसरों को छोड़ने वाला देश साबित हुआ है.तिब्बत को लेकर हम अपना रुख पहले ही नरम कर चुके हैं..वहीँ पाक अधिकृत जम्मू और काश्मीर में चल रही चीन की गतिविधियों से भी हम बेपरवाह या यूँ कहिये लाचार नजर आते हैं.ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान तक रेल पटरी बिछाने का हमारा लक्ष्य पिछले एक दशक में अपने मुकाम तक नहीं पहुँच पाया है….भारत-म्यांमार-थाईलैंड सड़क मार्ग केवल कागजी है!दक्षिण चीन सागर में हमारी कुछ गतिविधियाँ इधर दर्ज हुईं हैं..लेकिन वियतनाम,फिलीपींस और आसियान के तमाम देशों के आशा भरे आग्रहों का कोई ठोस जवाब देने में भारत पूरी तरह से सफल नहीं रहा है…हमारा विदेश मंत्रालय तभी हरकत में आता है जब अमेरिका किसी नयी योजना के साथ एशिया के इस हिस्से में नजर आता है.
हांलांकि नयी सरकार ने जापान सहित सारे पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से संपर्क बढ़ाने की बात की है जो एक स्वागत योग्य कदम है!लेकिन चीन का क्या रुख होगा ये पिछले दिनों भारत की शिष्टाचार यात्रा पर आये चीन के विदेश मंत्री वैंग यी के उस बयान से साफ़ हो गया जिसमें उन्होंने अरुणांचल के निवासियों को चीन यात्रा पर आने के समय ‘नत्थी वीजा ‘को एक सदाशयता भरा कदम बताया…ये एक चालाक कूटनैतिक हमला था और हम केवल बुदबुदाते ही रह गए !!!कुल मिलाकर कहा जा सकता है’बहुत कठिन है डगर पनघट की’!

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