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नमामि गंगे……

smriti
smriti
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खबर पढ़ी की प्रधानमंत्री के पक्के वादे वाले ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नमामि गंगे’ से ग्रामीण जनता को जोड़ने का अभियान चलेगा!पहले तो हलके में लिया ,सोचा की अलग किस्म की सरकार है,कुछ अलग सोच रही होगी.लेकिन फिर ख्याल आया की प्यासा कुएं के पास जाता है कुयाँ प्यासे के पास नहीं आता,लेकिन ‘सरकार’ का अहंकार इस सीधी साधी बात में भी हावी दिखा,सरकार को लगता है की ‘लोगों’को जोड़ा जाए,लेकिन होना क्या चाहिए?होना यह चाहिए की ‘सरकार’लोगों से जुड़े!
और ये तो विशेष मामला है,शायद गंगा सफाई में लगे वाचाल सर्व -विद्या-विशारदों को धरा पर आ कर सोचना और करना चाहिए ,सरकार और उसके अधिकारी एक छद्म अहंकार और गाम्भीर्य का आवरण ओढ़े रहते हैं,उन्हें ये इल्म होना चाहिये की इस देश के ग्रामीण और वनवासी बड़े-बड़े विशेषज्ञों से ज्यादा पर्यावरण की समझ रखते हैं..इस लिए अपना कहना है की शगुफे बाजी नहीं नमामि गंगे में अभी सतह पर कुछ नहीं दिखा है,कभी कॉर्पोरेट्स को जोड़ने की बात होती है तो कभी ये वाली नयी बात….अगर वास्तव में किसी को ‘नमामि गंगे’प्रोजेक्ट से जुड़ना बाकी है तो वो है’सरकार’और उसकी वास्तविक ‘इच्छाशक्ति’को, आयी बात समझ में!

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