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यूपी के सियासी हालात!

smriti
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आने वाली लोकसभा का क्या परिदृश्य होगा ,क्या राजनैतिक हालात बनेंगे इसका बहुत कुछ दारोमदार उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के विवेक पर निर्भर करेगा.८० लोकसभा सीटों वाला ये राज्य फिलहाल विकास और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण,जातिवाद के बीच में झूल रहा है.मतदान के वक़्त ये तीनो बाते अपना असर छोड़ेंगी इसमें अब कोई शक़ नहीं दिखता है..लिहाजा जो दल विकास,ध्रुवीकरण और जाति को एक साथ साधेगा वही सबसे ज्यादा सीटें पायेगा.
फिलहाल जो बयार बह रही है उसमें भाजपा सबसे आगे है,लेकिन उसका मुख्य प्रतिद्वंदी कौन होगा ये बहुत कुछ मुस्लिम मतदाताओं के विवेक पर निर्भर करेगा,हिंदुओं में भी ब्राह्मण और पिछड़े वर्ग के मतदाता भी बहुत कुछ तय करेंगे,मुस्लिम मतदाताओं की बात की जाये तो ये मानने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए की उनका बहुमत भाजपा के खिलाफ वोट करेगा परंपरा गत रूप से मुस्लिम मतदाता उस उम्मीदवार के पक्ष में ज्यादा वोटिंग करतें है जो भाजपा के मुख्य मुकाबले में होने की सूरत में उसे हराने की क्षमता रखता है.इसी लिए कभी दलित-मुस्लिम कार्ड खेला जाता है तो कभी यादव-मुस्लिम गठजोड़ का सहारा लिया जाता है,लेकिन साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति में ये समीकरण ध्वस्त भी हो जातें हैं.
लेकिन अब मुस्लिम मतदाताओं के मिजाज में थोडा बहुत परिवर्तन देखने को मिल रहा है अब वो पीछे चलने के बजाय अपना अजेंडा आगे रखना चाहतें हैं ऐसा संचार माध्यमों की क्रांति के चलते हुआ है…युवा वर्ग शिक्षा और बेरोजगारी को मुद्दा मानता है तो धार्मिक नेतृत्व अभी भी फिरका परस्त रुख लेकर चल रहा है.हालाँकि वो इसे सेकुलरिज्म का नाम देता है,इस मानसिकता को हवा देने में सपा और कांग्रेस के बीच जबर्दस्त होड़ है,कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने मुजफ्फर नगर के दंगों को आधार बना कर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति अपनी ढाल बनाया है,सहारनपुर के पुराने मुस्लिम नेता राशीद मसूद के तेजतर्रार भतीजे इमरान मसूद उनकी आशाओं के केंद्र में हैं,उनका एक पुराना वीडीओ बहुत सोच समझकर बाहर लाया गया है ताकि बचाव के साथ अपने एजेंडे को पूरा किया जा सके, इसके सहारे से पार्टी को उम्मीद है की वो पश्चिम में सपा के मुकाबले और अजीत सिंह के सहारे से अपनी जमीन बना पायेगी
दूसरी तरफ सपा की आक्रामक तुष्टिकरण की राजनीती है जो भय उत्पन्न करने के साथ ही सुरक्षा का भाव भी पैदा करने की बाजीगरी है,मुस्लिम मतदाता जानतें हैं की परिणाम कोई भी आये,केंद्र में किसी की भी सरकार बने लेकिन प्रदेश में तो मुलायम सिंह ही प्रभावी रहेंगे ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं का बहुमत फिलहाल धार्मिक नेताओं की नाराजगी के बाद भी सपा के पक्ष में है..
बसपा उन क्षेत्रों में जहाँ दलित और मुस्लिम वोटर अच्छी तादाद में हैं अच्छा प्रदर्शन करेगी और भाजपा के मुकाबले असली जंग सपा और बसपा के बीच ही रहने वाली है,कांग्रेस महज चंद सीटों पे कुछ करने की हैसियत में है,शायद दहाई का आंकड़ा छूना उसके लिए अजीत सिंह के साथ के बावजूद भी मुश्किल हो.
इन हालातों में अति पिछड़े और पिछड़े वर्ग की भूमिका प्रभावी हो जायेगी अगर भाजपा का पिछड़ा कार्ड काम कर गया तो सपा और बसपा दोनों के लिए अपने पिछले प्रदर्शन को दोहरा पाना बेहद मुश्किल हो जायेगा.प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता खासी तादाद में हैं उनका बहुमत भाजपा के साथ है लेकिन कुछ चुनिंदा सीटों पे जातीयता हावी हो सकती है जिसका लाभ कोई भी दल उठा सकता है.राजपूत मतदाता जो सपा के साथ थे पिछले विधानसभा चुनावों में वो अब लगभग सपा से छिटक चुकें हैं और उनका साफ़ रुझान भाजपा के पक्ष में है..लेकिन स्थानीय समीकरण और तहसील- थाने-गन्ना मिल की राजनीति भी प्रदेश में हमेशा प्रभावी रही है जिसका थोडा बहुत लाभ सपा के खाते में जा सकता है.
विकास के मुद्दे भी प्रभावी हैं बदहाल सड़कें और दुश्वार जिंदगी धर्म और जाति से ऊपर उठ कर जनता को सोचने पर मजबूर भी करती है,शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चौपट है निजी स्कूल बेलगाम हैं,प्रशासन में जातीयता हावी है,ठेके और पट्टे भी दलीय और जातीय आधार पर दिए जा रहें हैं,भ्रष्टाचार चरम पर है,सरकार की आबकारी नीति भी पूर्ववर्ती सरकार से दो कदम आगे जाकर एक ही ग्रुप के मार्फ़त लागु की जा रही है.जमीन की सरकारी मालियत बेतहाशा बढ़ी है जिससे जमीन की खरीद फरोख्त से होने वाली सरकारी आय प्रभावित हुयी है.उद्योग धंधे कानून व्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करते हैं इस क्षेत्र में व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ईमानदार प्रयास किये हैं लेकिन उनकी टांग उनके वरिष्ठ ही खींचते रहतें हैं.अखिलेश की पर्यटन नीति और पर्यावरण के प्रति सोच आधुनिक है लेकिन उनके दल की परम्परगत राजनीति ने उन्हें ये अवसर नहीं दिया की कुछ काम जो ठीकठाक हुयें हैं उन्हें प्रचारित कर सकें ..ऐसे में मतदाता निराश हुयें हैं उन्हें युवा अखिलेश में उम्मीद दिखी थी लेकिन वो परम्परा से आगे बढ़ने में विफल साबित हुयें हैं.जो चुनावी सर्वे आ रहें हैं वो लगभग ठीक हैं,उनके मुताबिक़ भाजपा ३५ से ४५ ,सपा और बसपा १२ से १८ और कांग्रेस और अजीत सिंह का गठजोड़ ७ से १० सीटों में सिमट सकता है!

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