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जैसे-जैसे अमेरिकी फ़ौज अपने कदम अफगानिस्तान से वापस खींच रही है ५ करोड़ पख्तून तेजी से पख्तूनिस्तान कि मांग के पीछे लामबंद हो रहें हैं,११९ साल पहले अंग्रेजों के एक छल ने पख्तूनों को दो हिस्सों में बाँट दिया था,१८९३ में अफगानिस्तान के शासक आमिर रहमान खान से अंग्रेजी में लिखे एक ऐसे दस्तावेज पर जिसका मतलब आमिर खान समझ भी नहीं सके थे,छल से दस्तखत करवा के ,तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव सर डूरंड ने १६०० मील लम्बी डूरंड लाइन से अफगानिस्तान और आज के पाकिस्तानी पख्तून इलाकों को बाँट दिया था,हालाँकि इस समझौते को दोनों और के पख्तूनों ने कभी स्वीकार नहीं किया ,महान पख्तून नेता बादशाह खान अब्दुल गफ्फार खान ने तभी से पख्तूनिस्तान कि आवाज को बुलंद करना शुरू कर दिया था..उन्हें आजादी के संघर्ष के दौरान महात्मा गांधी और कांग्रेस ने ये भरोसा दिलाया था कि पख्तूनों के इस गैर वाजिब बंटवारे के लिए आंदोलन हर समय आवाज उठता रहेगा ,लेकिन जब भारतीय नेताओं ने भारत और पाकिस्तान का बंटवारा स्वीकार कर लिया,और पख्तूनों से सलाह मशविरा नहीं किया,और पख्तून संघर्ष पर चुप्पी साध ली तब खान अब्दुल गफ्फार खान ने इस पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए भारतीय नेताओं से कहा था कि आप लोगों ने हमें पाकिस्तानी भेड़ियों के हवाले कर दिया..पाकिस्तान कि आजादी के बाद उन्हें १९४८ से ही ज्यादातर नजरबंदी और कैद में रखा गया १९८८ में उनकी मृत्यु भी नजरबंदी के दरम्यान हुयी, दुनिआ नेल्सन मंडेला को तो याद रखती है लेकिन उन्हें भूल चुकी है,लेकिन बदलते वक़्त ने लगता है बादशाह खान कि दिली ख्वाहिश को पूरा करने कि ठान ली है,हालात इसी और इशारा कर रहें हैं,पाकिस्तान धार्मिक उन्माद के जरिये तो कभी जिहाद के नाम पर पख्तूनों का रूस और अफगानिस्तान के खिलाफ उपयोग करता रहा ,कभी उन्हें तालिबानों के हवाले किया गया तो कभी अल-कायदा के. . .लेकिन पाकिस्तान के ३ करोड़ पख्तून अब पाकिस्तानी या यूँ कहे कि पंजाबी हुकूमत से आजाद होने के लिए छटपटा रहे हैं,पाकिस्तान के तमाम इलाके पंजाबी हुकूमत के उपनिवेश बन गए हैं जहाँ के लोगों के साथ,उनकी जमीनों और रवायतों के साथ पंजाबी प्रभुत्व वाली फ़ौज मनचाहा सलूक करती है,वो चाहे बलूच हों या मोहाजिर…या फिर सियासी तौर पे मजबूत सिंधी हों.इनमे पख्तूनों कि बात सबसे अलग है,पख्तून एक आजाद और बहादुर कौम है जो अपने इलाके में और गणतांत्रिक रिवाजों में कतई भी दखलंदाजी नहीं बर्दाश्त करती है…वो इस कदर पक्के हैं कि इस्लाम में आने के बाद भी तमाम तरीके आजमाने के बाद भी अपने कुछ पुराने रिवाज नहीं छोड़ते है ..जिसमे एक खतना न करवाना भी है,खासकर महसूद कबीला,यही वजह है कि जब कोई खुदकुश हमलावर मारा जाता है तो पाकिस्तान उनकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बाद हमले का जिम्मेदार भारतीयों को ठहरा देता है,ये केवल एक बानगी भर है ये बताने के लिए कि पठान अपने इलाके ,पश्तो भाषा,पख्तुनियत और पख्तून राष्ट्र से हद से ज्यादा मोहब्बत करते हैं.रूस के अफगानिस्तान प्रवेश के बाद और उससे पहले भारत-पाकिस्तान युद्धों ने कभी उन्हें उस तरीके से एक नहीं होने दिया जितना कि वो अब हो रहें है,उनमे पाकिस्तान कि पंजाबी फ़ौज ,अमेरिकी दादागिरी और तालिबान के लिए जबर्दस्त आक्रोश है..खासकर पाकिस्तान के लिए जिसने पख्तूनों के नरसंहार कि तरह तरह कि योजनाये बना रखी हैं..तभी पख्तूनों का खून पानी की तरह बह रहा है वो अब इस चालबाजी को समझ गए हैं ,पाकिस्तान कि फ़ौज में ३०%पख्तून भी हैं जब वो देखते हैं कि उनका उपयोग केवल जान देने कि लिए या जान लेने के लिए होता है…और पाकिस्तानी फ़ौज के पंजाबी अफसर पाकिस्तान कि जमीनो पे कब्ज़ा करते जा रहे हैं हैं ,जायदादें खड़ी करते जा रहें हैं और नए जमींदार बन बैठे हैं,…और पख्तूनों के इलाके में पख्तूनों को उन्ही के हाथो ख़त्म करवा रहे हैं तो ऐसा होना स्वाभाविक भी है,इसी लिए पख्तूनिस्तान कि दबी हुयी चिंगारी अब शोला बनने को तैयार दिख रही है ….हालिया दिनों में जिस तरीके से पाकिस्तान के आम चुनावों में पख्तूनों ने मुस्लिम लीग और पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी से दूरी बनाई वो गौरतलब है.उन्होंने पख्तून इमरान खान कि पार्टी को तरजीह देना ज्यादा मुनासिब समझा ,लेकिन इमरान खान उन्हें कब तक मुख्य राजनेतिक धारा में शामिल रख पाएंगे ये बता पाना मुश्किल है..क्योंकि पाकिस्तान का पंजाबी राष्ट्रवाद बाकी पाकिस्तान पर भारी पड़ रहा है.अमेरिका को भी अब पख्तूनिस्तान कि जमीनी हकीकत से इत्तफ़ाक़ रखना पड़ रहा है उसे ये अहसास हो चला है कि अफगानी पठानो और पाकिस्तानी पठानो को अब ज्यादा दिन अलग नहीं रखा जा सकता.पाकिस्तान कि आजादी के बाद से ही पख्तून इलाको में पाकिस्तानी फ़ौज कि तैनाती न के बराबर रही है,पख्तूनों को फ़ौज कि तैनाती पर हमेशा ऐतराज रहा है,वो अपने मसले खुद सुलझाने में यकीन रखते हैं अपने रस्म-रिवाजों के आधार पर,इसी लिए ये इलाके स्वायत्त रखे गए ,लेकिन आतंकवाद से युद्ध के दौरान जिस तरीके से पाकिस्तानी फ़ौज ने पख्तूनों के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया उसने नए सिरे से गैर तालिबानों पख्तूनों को एकजुट किया है और पख्तूनिस्तान कि आवाज बुलंद होती जा रही है …….हो सकता है पाकिस्तान इस आवाज को दबाने के लिए भारत से युद्ध जैसे हालत पैदा कर उग्र-राष्ट्रवाद का सहारा लेकर भारत विरोध के नाम पर अपने देश को एकजुट करने का प्रयास करे …भारत को भी होशियार ख़बरदार रहना चाहिए….लेकिन अगर कोई पख्तूनिस्तान बनता है तो भारत के लिए दोस्त ही होगा!
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