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प्रवासी टिड्डियां (Locusts) दुनियाभर में खेती को नुकसान पहुंचा रही हैं। भारत में टिड्डियों का प्रजनन केंद्र मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात का पाकिस्तान से लगा सीमा क्षेत्र है। टिड्डियों के इतने बड़े प्रकोप से बचने के लिए, यदि हमें इसके जीवन चक्र का सही ज्ञान हो, तो सही समय पर उचित नियंत्रण के उपायों को अपनाकर भारी नुकसान से बचा जा सकता है। टिड्डियों का आतंक किसानों के मन में इस कदर समाया है कि छोटे-बड़े सभी इन टिड्डियों के बारे में जानना चाहते हैं। लोगों की इसी जिज्ञासा को पूरा करने के लिए सयाजी सीड्स प्रबंधन ने टिड्डियों के जीवन काल को यहां रोचक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। आशा है कि ये जानकारियाँ आपको टिड्डियों के बारे में आपकी जिज्ञासा को पूरा करने में मदद करेगी। आगे पढ़ें…
क्या है टिड्डी और टिड्डी दल
टिड्डी एक प्रकार के कीट होती है जिन्हें आमतौर पर अकेले रहना पसंद होता है। लेकिन, मुसीबत में ये एकजुट हो जाती हैं और झुंड बना लेती हैं जिसे टिड्डी दल कहते हैं। पतझड़ का मौसम आने पर और पौधों के सूख जाने पर में ये खाने की तलाश में दूसरी जगह उड़कर चले जाते हैं। टिड्डी दल, फल-फूल व पत्ती से लदे खेत को तब तक नहीं छोड़ते जब तक उसकी सारी हरियाली खत्म नहीं हो जाएं। इसलिए, किसानों व खेती के लिए कट्टर शत्रु हैं।
टिड्डी का आकार और उनका रूंप-रंग
टिड्डी 6 पैरों वाली अकेली कीट हैं। ये 5 सेमी तक लंबी हो सकती है। एक वयस्क टिड्डी के पंख लंबी होते हैं और वे उड़ते हुए लंबी दूरियां तय कर सकती हैं। जब ये अकेले होती है तो हरे-भूरे रंग की दिखाई देती है। इसका यह रंग इन्हें पेड़ों में छिपने के काम आता है। बड़े होने पर टिड्डी चमकीले पीले रंग की हो जाती है। दोनों ही रूपों में इनका पिछला पैर फुदकने के काम आता है। जब ये अविकसित होते हैं तो ये रेंगते हुए पेड़ों के पीछे जाकर अपने आपको छिपा लेते हैं। वहीं एक वयस्क टिड्डी का पिछला पैर उन्हें चारों ओर देखने में सहायक होता है। अपने लंबे और शक्तिशाली पंखों की बदौलत टिड्डियां लंबी दूरियाँ तय कर सकती हैं। हमेशा झुंड में दिखलाई देती हैं।
शरीर से लचीली है टिड्डी
टिड्डी का पूरा शरीर खंडों में विभक्त रहता है। अलग-अलग प्लेटों से लचीले ऊतक जुड़े रहते हैं जिससे ये झुक और मुड़ सकती हैं। एंटीना के बाल गंध और स्वाद का पता लगाते हैं। अपने संयुक्त नेत्र से यह कीट हर दिशा में देख सकता हैं। इनमें पंखों के दो जोड़े होते हैं। ऊपर वाला पंखों का जोड़ा कड़ा होता है जो पीठ के ऊपर मुड़ा होने पर अपने नीचे वाले पंखों के जोड़े की सुरक्षा करता है। पैरों और टांगों में स्वाद सेंसर होता है। पेट के अंत का प्रयोग अंडे देने के लिए होता है।
टिड्डी का जीवन चक्र
आम रूप में कीटों का जीवन 4 चरणों का होता है – अंडा, लार्वा, प्यूपा और वयस्क। पर, टिड्डी की जिंदगी के तीन चरण होते हैं – अंडा, निम्फ़ और वयस्क। जब वे निम्फ की अवस्था में होती है तो वे दिखाई तो वयस्क टिड्डियों की तरह ही पड़ती हैं, पर प्रजनन नहीं कर सकती। हवा में उड़ने और प्रजनन और करने लिए उनका वयस्क होना जरूरी है।
टिड्डी पेटू होती है
देखा जाए तो एक टिड्डी का पूरा जीवन केवल खाने पर ही टिका होता है। बारिश होने से ज़मीन में बीजों का अंकुरण होता है। इससे पौधों का धीरे-धीरे विकास होता है, और अंत में टिड्डियों के लिए चारों तरफ खाना ही खाना इकट्ठा हो जाता है। लेकिन, जब बारिश बंद हो जाती है, तो भोजन की आपूर्ति भी ठप हो जाती है। ऐसी स्थिति में, टिड्डी के पास झुंड में रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता है। अब वे अपना सन्यासी जीवन त्याग कर एक मिलनसार गृहस्थ की तरह व्यवहार करती है जो समाज की संस्कृति का पालन करती है।
खाने ही सबकुछ
मौसम के विपरीत होने पर एकांत पसंद टिड्डी खाने के लिए एक-दूसरे के ऊपर कूदने लगती हैं। खाना नहीं मिलने पर वे एक दूसरे को खाने में भी गुरेज नहीं करते। जोर-आज़माइश की इस प्रक्रिया में उनके पिछले पैर अच्छी तरह से विकसित हो जाते हैं। भूखा पेट उन्हें एकता की शक्ति का आभास कराता है। अब वे एकजुट हो जाती है और खाने की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह की ओर कूच कर जाती हैं।
प्रत्येक टिड्डी अपने शरीर की लंबाई से 10 गुना अधिक छलांग लगाने में सक्षम होती है। निम्फ टिड्डी खाना मिलने पर उसे चबाती है। बाकी लोग उछल-कूद मचाते हैं। इस तरह से भोजन की तलाश करते हुए ये टिड्डियां 1 दिन में 1 मील तक का सफर तय कर जाती हैं। यहां ये बात रोमांच करने वाली है कि उछलने-कूदने की होड़ में इनके पिछले पैरों से जुड़ी मांसपेशियाँ कई गुना अधिक बलशाली हो जाती हैं।
सारा दिन टिड्डियां उड़ती हैं, खाना खाती हैं। शाम के समय और हवा के ठंडे हो जाने पर वे पौधों पर चढ़ जाती हैं। अगले दिन जब सूरज निकलता है तो पहले वे धूप में सनबाथ लेती हैं और फिर से पत्तियों को खाना चालू कर देती हैं।
युवा निम्फ टिड्डी कुछ दिनों बाद वयस्क टिडडों में बदल जाते हैं। युवा वयस्क टिड्डों को फ़ेडलिंग कहते हैं। इस अवस्था में उनके पास पंख होते हैं पर लंबी उड़ानों के लिए उनके पास उतना हौसला नहीं होता। इसकी वजह यह है कि लंबी उड़ानों के लिए लगातार पंख फड़फड़ाने की जरूरत होती है, जिसके लिए उनके पास उतनी ऊर्जा व ताकत नहीं होती। इसलिए, वे शुरुआत में कुछ छोटी उड़ानें ही लेते हैं। अंत में, लगातार कोशिशों से उनकी मांंसपेशियां उड़ाने के लिए पर्याप्त मजबूत हो जाती है। ये टिड्डियां एक प्रकार की खास गंध छोड़ती हैं जिससे एक दूसरे के रास्तों का आसानी से पीछा कर सकती हैं।
चूंकि, उन्हें बिना रुके लंबी दूरी तक उड़ना होता है, तो उनको पर्याप्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि युवा वयस्क ज्यादा हरे पत्ते और अनाज खाते हैं। इसलिए, फेदलिंग टिड्डे, निम्फ टिड्डे की तुलना मे्ं ज्यादा खाना खाते हैं। टिड्डियां समूह में सफर करती है जिसे टिड्डी दल कहते हैं। ये दल हजारों, लाखों या करोड़ों की तादाद में भी हो सकता है।
कितना खाना खाती है एक टिड्डी
प्रत्येक टिड्डी एक दिन में अपने वजन के बराबर पौधे को खाती है। जब यह किसी खेत पर हमला करती है तो पहले वहां आकर कुछ देर पहले ज़मीन पर बैठती है। उनमें से कुछ खाने के लिए उड़ान भरते हैं। इस तरह से वे सभी उड़ान भरते हैं, पत्तियों को खाते हैं और खेतों पर मंडराते हैं। ये घास या हरे पौधे खाती है। एक लाख टिड्डियां अमूमन 500 लोगों के खाने के बराबर भोजन करती हैं। लेकिन, जब इनको खाना नहीं मिलता तो ये खाने की खोज में कई किलोमीटर की दूरी तय करती हैं।
टिड्डियों का जीवन काल और प्रजनन
आम तौर पर एक टिड्डी का जीवन काल 4 से 5 महीनों का ही रहता है। अपने लिए उपयुक्त साथी भी इन्हें अपने इस झुण्ड में से ही मिल जाता है। महिला टिड्डे में एक नुकीली पूंछ होती है जिसके अंत में अंड जमा होते हैं। अंड संग्रह का स्थान होने ये यह बड़ा भी होता है। मनचाहा साथी मिल जाने पर, मादा टिड्डी संभोग क्रिया के बाद अपने लिए एक नरम स्थान की तलाश करके वहां अंडे रखने के लिए एक छेद बनाती है। अंडे देने के बाद बाद वह छेद को अपने विशेष रसायन से ढंक देती है। इस रसायन के अंदर बने अनुकूल वातावरण में नए टिड्डों का जन्म होता है और वे वहां शिकारियों से सुरक्षित भी रहते हैं।
लगभग सारी टिड्डियां झुंड में एक ही समय में प्रजनन करती हैंं, अंडे देती हैं, और उन अंडों से नए टिड्डियों का जन्म होता है। इनमें से जो खुशकिस्मत होते हैं, काबिल होते हैं वे भूखे शिकारियों के शिकार से बच जाते हैं और केंचुली छोड़कर जीवन का पहला सूरज देखते हैं। इसके बाद, वे हर जीव की तरह पेट भरने के लिए भोजन की तलाश में निकल पड़ते हैं।
जीवन फूलों की सेज नहीं
टिड्डी दल का जीवन सदा हरा-भरा नहीं रहता। अच्छे दिन देखने के बाद बुरे दिन भी आते हैं। ठंडा वातावरण, ज्यादा बारिश, जहरीले रसायनों का छिड़काव उनकी आबादी को काफी कम देता है। ऐसा लोग अपनी फ़सलों को टिड्डियों को खाने से रोकने के लिए करते हैं। आबादी कम होने पर टिड्डियां फिर से अपनी आबादी बढ़ाने में लग जाती हैं। भोजन के लिए ये रात में अपनी यात्रा करते हैं।
बारिश का मौसम आने पर बीजों का अंकुऱण शुरु हो जाता है जो जल्दी ही पौधे बन जाते हैं। इससे टिड्डियों की आबादी फिर से फल-फूल जाती है। पर, जब इनके खाने के स्रोत कम होने लगते हैं तो फिर से ये झुंड में आ जाती हैं और खाने की तलाश में दूर के स्थानों के लिए उड़ान भरती हैं।
नापसंद है नीम के पेड़ की पत्तियां खाना
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि टिड्डियां नीम के पेड़ को छोड़कर बाकी सभी पेड़-पौधों की पत्तियों को खा सकती हैं। इसलिए, इनसे फ़सलों को बचाने के लिए नीम के रसायन का छिड़काव किया जाता है। अगर आपको अपने क्षेत्र में टिड्डी दल दिखाई पड़े, तो कृपया उसके देखे जाने की सही जगह, तारीख, समय, टिड्डियों के उड़ने की दिशा, उनके रंग और आकार की सटीक सूचना टिड्डी मंडल विभाग और सयाजी सीड्स को दें ताकि सही समय पर इनको काबू में किया जा सकें।
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।
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