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बंधू रे भजन बिना क्या जीना
(तर्ज : – ओ साथी रे , तेरे बिना भी क्या जीना )
बंधू रे, भजन बिना क्या जीना
बिना भजन के, संध्या हवन के,
जीवन ज्योति जले ना,
बंधू रे …….
जग का फेरा, दो दिन का डेरा, किसका हमेशा रहा ठिकाना
कोई आये, कोई जाये, काल का गाड़ी रुके ना,
बंधू रे ….
हाट-हवेली, चेला-चेली, कुछ दिन के हैं सब साथी
ममता बांधे डोल रहा, समझो जिनको अपने ही मानी
वो ही जला देगे, अग्नि अंदर करेंगे, दया करेंगे तनिक ना,
बंधू रे……
ओ तुम प्यारा, सबका सहारा, दाता का भी जो दाता है,
उसी से प्रीति करके धीरज, आनंद पद गैर तू चाहता है
काम आएगा, सुख पायेगा, उस दर कोई दुखी ना
बंधू रे ……….
Dhiraj kumar, 27.5.1988 / 10.3.2011
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