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नेताजी – जिन्दा या मुर्दा ३८. प्रश्न २७. आखिर नेताजी से सम्बंधित खोसला आयोग एवं शाहनवाज आयोग की जाँच दस्तावेजो को सरकार सार्वजानिक क्यों नहीं करती ?

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सूचना के अधिकार के तहत नेताजी से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किए जाने के मामले में सुनवाई के दौरान गृह मंत्रालय के अधिकारी आयोग द्वारा निर्दिष्ट आवश्यक दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के बजाय गृह सचिव द्वारा लिखित एक गोपनीय नोट लेकर आए, जिसमें सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(क) का राग अलापा गया था। इस नोट को देखकर सूचना आयुक्त ए.एन. तिवारी भड़क गए और उन्होंने टिप्पणी की:

The issue is far too important to be decided in an ad hoc manner at the level of a Home Secretary. I am not prepared to allow an omnibus recourse to section 8 (1) (a)….(यह मामला इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि इस पर गृह सचिव के स्तर पर तदर्थ तरीके से निर्णय नहीं लिया जा सकता। मैं धारा 8(1)(क) का हर जगह सहारा लिए जाने की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं हूं….)

26 मार्च, 2007 को सूचना के अधिकार के तहत नेताजी से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किए जाने के मामले में मिशन नेताजी के शयन्तन दासगुप्ता की अपील पर सुनवाई के दौरान केन्द्रीय सूचना आयोग के सूचना आयुक्त ए.एन. तिवारी ने कहा कि “नेताजी से जुड़े दस्तावेजों पर से गोपनीयता का परदा हटाना होगा।” उन्होंने कहा कि “भारतीयों को अपने राष्ट्रनायक के बारे में सभी सूचना हासिल करने का पूरा अधिकार है।” उन्होंने घोषणा की कि इस मामले में अगली सुनवाई केन्द्रीय सूचना आयोग की पूर्ण पीठ करेगी और गृह मंत्रालय के पास इस मामले में आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखने का यह अंतिम अवसर होगा और मंत्रालय को इस बारे में पर्याप्त स्पष्टीकरण देना होगा कि उन दस्तावेजों को सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा सकता। उन्होंने चेतावनी दी कि “यदि सरकार का स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं हुआ तो आयोग सभी संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किए जाने का आदेश देने के लिए बाध्य होगा।”

प्रत्येक भारतीय को हक़ है कि वे नेता जी सुभाष चन्द्र बोस से जुड़े तथ्यों को जानें।
यह हमारे सरकारों की विफलता है कि घटना के 60 साल बाद भी सच छिपा हुआ है। शायद नेता जी पूर्णरूपेण कांग्रेसी तो थे किन्तु गांधी-नेहरू के चमचे न थे। आखिर नेताजी से सम्बंधित खोसला आयोग एवं शाहनवाज आयोग की जाँच दस्तावेजो को सरकार सार्वजानिक क्यों नहीं करती ?

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