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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – 13. परमात्मा की सृजन बिधि: हम बहुत खोजते है, लेकिन परमात्मा मिलता नहीं !

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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तो उसने कहा – परमात्मा सृजन का प्रेरक तत्त्व है, नाश भी वही करेगा |

अब प्रश्न उठता है कि परमात्मा जगत का सृजन कैसे करता है | यह सवाल विचार की दृष्टि से और साधना की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है | जो लोग विज्ञान को थोडा भी समझते हैं, उन्हें समझ में आ जाएगी |

विज्ञान मानता है कि कुछ ऐसा भी सृजन है, जब करने वाला कुछ भी नहीं करता केवल उसकी उपस्थिति मात्र से सृजन हो जाती है | विज्ञान उसे ‘कैटेलिटिक एजेंट’ अर्थात उत्प्रेरक कहती है | उसके बिना घटना नहीं घटती, उसकी उपस्थिति से ही घटना घट जाती है | वह स्वयं कुछ नहीं करता, जैसे ऑक्सीजन और हाइड्रोजन को मिलाये तो पानी नहीं बनेगा, यद्यपि हम पानी को तोड़े तो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता | यह बड़ी बिचित्र बात है | कही एक मिस्सिंग लिंक है | आखिर पानी तोड़ने पर ऑक्सीजन और हाइड्रोजन मिलता है तो फिर इन्हें मिलाने पर पानी क्यों नहीं बनता | कुछ बात है | हाइड्रोजन और ऑक्सीजन तब तक नहीं मिलते जब तक बिजली उपस्थित न हो | अगर बिजली उपस्थित हो तो दोनों मिल जाते हैं और पानी बन जाता है | लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है की बिजली अपनी उपस्थिति के अतिरिक्त और कुछ नहीं करती | वह पानी में सम्मिलित नहीं होती | अगर वह सम्मिलित होती तो पानी को तोड़ने पर बिजली भी मिलती, लेकिन नहीं मिलती है | अतः उसकी उपस्थिति से ही घटना घट जाती है | जस्ट प्रेजेंस ! उपस्थिति प्रवेश कर जाती है ! बिजली नहीं, बिजली की उपस्थिति ! इसे आप थोडा समझ ले…| परमात्मा की उपस्थिति से जगत निर्मित होता है | परमात्मा ‘कैटेलिटिक एजेंट’ है | इसका उपस्थित होना ही सृजन का सूत्रपात है | यह बहुत गहरी बात है और होना भी यही चाहिए क्योंकि परमात्मा को भी अगर घड़े की तरह जगत का निर्माण करना पड़े तो कुम्हार से बड़ी उसकी हैसियत नहीं होगी | अगर उसे भी कार्य में संलग्न होना पड़े तो इसका मतलब यह है कि कार्य पर उसकी पूरी मल्कियत नहीं है | पूरी मल्कियत का मतलब होता है की इशारा भी न करना पड़े और काम हो जाये | जैसे प्रातःकाल सूर्योदय होता है और पक्षीगण अपने आप चहचहाने लगते है | सूर्य चहचहाने को नहीं कहता, बस उसकी उपस्थिति | अतः कैटेलिटिक एजेंट की सिर्फ उपस्थिति ही काम करती है, यह प्रतिक्रिया में भाग नहीं लेता | अतः प्रतिफल के तोड़ने पर भी हमें उत्प्रेरक नहीं मिलता है; और यही कारण है कि जगत में हम परमात्मा को कितना भी खोजे, वह कभी न मिल पायेगा हमें | इसलिए विज्ञान ठीक कहता है…हम बहुत खोजते है, लेकिन परमात्मा मिलता नहीं और जबतक न मिले तब तक विज्ञान माने भी कैसे ! लेकिन विज्ञान अधर्य नहीं दिखाए तो वह भली भांति जानता है कि ‘कैटेलिटिक एजेंट’ भी होते है और उनकी उपस्थिति मात्र से ही घटनाये घटती है; फिर घटी हुई घटना को तोड़ने से उसको पाया नहीं जा सकता | जिस दिन वैज्ञानिक इस रहस्य को समझ पाएंगे, उसी दिन परमात्मा की झलक उन्हें मिलनी शुरू हो जाएगी |

अब यह प्रसंग को यही रोककर मैं योगतंत्र पड़ चलता हूँ | …..सप्रेम

cont……….. Er. D.K.Shrivastava ९४३१०००४८६ (धीरज कुमार श्रीवास्तव)

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