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भगवान् बुद्ध ने पुरे पचीस वर्षो तक बोधी वृक्ष की पूजा की | लोग इसे नासमझी कहेंगे | कहेंगे कि ये संयोग ही था कि बुद्ध उस वृक्ष के नीचे बैठे थे, वे कही और भी बैठ सकते थें | लेकिन नहीं, बात कुछ और थी; और थी काफी महत्वपूर्ण | हमारे मस्तिष्क में एक होता है पिनिअल ग्लैंड, जिसे योग की भाषा में ‘तीसरा नेत्र’ कहते है | यह मानव मस्तिष्क की अति महत्वपूर्ण ग्रंथि है | मानव शरीर के भीतर जो चैतन्य है उसका आविर्भाव इसी ग्रंथि में उत्पन्न होने वाले एक विशेष प्रकार के रस तत्वों से होता है | आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वह ‘रस तत्व’ जिसके बिना मनुष्य के भीतर चेतना का जन्म नहीं होता, वटवृक्ष में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है | अतः आश्चर्य की बात न होगी कि बुद्ध का उस वृक्ष के नीचे बैठना और बोधी को उपलब्ध होना, इसमें उस वृक्ष का भी सहयोग हो | वृक्ष सिर्फ संयोगिक नहीं था | आश्चर्य है की भगवान् बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति एवं निर्वाण तीनो वृक्ष के नीचे ही हुआ |… तो भारतीय मनीषी आध्यात्मिक तो थे ही, वैज्ञानिक भी थे | इसमें संदेह नहीं किया जा सकता | आपको पता है लोग नशा करने पर बुद्धिहीन हो जाते है, क्यों ? पिनिअल ग्लैंड में रस तत्व पैदा न हो तो बुद्धि एकदम क्षीण हो जाती है | जो नशा करता है उसका प्रभाव उसके चेतना पर नहीं, पीनियल ग्लैंड पर पड़ता है और फलस्वरूप जो रस पैदा होता है, वह पैदा होना बंद हो जाता है…बस बुद्धि सो जाती है |
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