Menu
blogid : 954 postid : 431

योगशास्त्र एवं आध्यात्म – ४१. मानव जाती में रामानुजन से बड़ा और विशिष्ट गणितज्ञ न हुआ |

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
  • 157 Posts
  • 309 Comments

२२ दिसम्बर १८८७, एरोड़े, तमिलनाडु (Erode, Indian Empire, Tamilnadu) | दक्षिण भारत के एक साधारण परिवार में एक ब्यक्ति पैदा हुआ जो आगे चलकर विश्वविख्यात हो गया | उसका नाम था रामानुजन (Srinivasa Lyengar Ramanujan – The great mathematician, Father Shri K. Sriniwasa Lyengar – a clerk in sari shop) | अत्यंत निर्धन ब्राह्मण परिवार के रामानुजन की शिक्षा-दीक्षा भी साधारण उपलब्ध हुई | मैट्रिक भी पास न हो सके | बड़ी मुश्किल से क्लर्क का काम मिला | लेकिन अचानक खबर फैलने लगा कि उनकी गणित में कुशलता अद्भुत है | आज के तारीख में गणितज्ञ कहते है – मानव जाती में रामानुजन से बड़ा और विशिष्ट गणितज्ञ न हुआ न होगा | बड़े बड़े गणितज्ञ हुवे, लेकिन वे शिक्षित थे, वर्षो की तैयारी थी, बड़े बड़े गणितज्ञो का संग मिला था उन्हें | किन्तु रामानुजन के साथ ऐसा कुछ न था | फिर भी अपने समय के विश्व के मूर्धन्य गणितज्ञ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जी. एच. हार्डी अपने को रामानुजन के सामने बच्चा महसूस करते थे | रामानुजन को लोगो ने कहा था प्रोफेसर हार्डी को पत्र लिखने के लिए तो रामानुजन ने ज्योमेट्री में दो सौ थ्योरम ही पत्र की जगह बनाकर भेज दिया था |

यदि आपको कहा जाये कोई गणित करने के लिए तो समय लगेगा | बुद्धि ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकती जिसमे समय न लगे | बुद्धि सोचेगी, समझेगी, हल करेगी; समय लगेगा | लेकिन आश्चर्य कि बात तो यह है कि रामानुजन को समय ही न लगता था | इधर सवाल लिखेंगे उधर रामानुजन उत्तर देना शुरू कर देगा | आप पूरा बोल भी न पायेगे और उत्तर आपको मिल जायेगा | सवाल और जबाब के बीच में समय ही नहीं | बड़ा आश्चर्य था कि जिस सवाल को विश्व के महानतम गणितज्ञ सिर्फ जांचने में छः घंटे लगाते थे, ऐसा सवाल रामानुजन को दिया और उत्तर मिला | सवाल और जबाब के बीच एक क्षण का भी समय न लगा | इससे एक बात तो तय हो गई कि रामानुजन बुद्धि के माध्यम से जबाब नहीं दे रहा था | बुद्धि बहुत बड़ी नहीं है उसके पास | सामान्य जीवन में किसी भी चीझ में बुद्धिमता मालूम नहीं पड़ती थी उनकी, लेकिन गणित के सम्बन्ध में वह अति मानवीय थी | मानव शक्ति सीमा के पार की घटना उनके जीवन में होती थी | ऐसे जल्दी मर गए रामानुजन (Death on 26.4.1920 at Chetput, Madras) | ऐसे विलक्षण प्रतिभा संपन्न लोग अधिक समय तक संसार में नहीं रहते | वह 32 साल के उम्र में मर गए | जब वह बीमार होकर अस्पताल में पड़े थे तो प्रोफ़ेसर हार्डी उन्हें देखने गए | दरवाजे पर हार्डी ने कार खडी की | संयोगवश कार का नंबर रामानुजन को दिखाई पड़ा और उस मरते समय उसने प्रोफ़ेसर हार्डी को उस नंबर की चार विशेषताए बताई | रामानुजन तो मर गए लेकिन जिस गुण को उसने अचानक बता दिया था उसे सिद्ध करने में प्रोफ़ेसर हार्डी को छः महीने लगे तब भी वह तीन ही सिद्ध कर पाए | मरते समय प्रोफ़ेसर हार्डी ने वसीयत में लिखा – मेरे मरने के बाद चौथी की खोज जारी रखी जाये, क्योंकि रामानुजन ने कहा है तो ठीक होगी ही और हार्डी के मरने के २२ साल बाद वह चौथा गुण सिद्ध हो पाया की उसने ठीक कहा था |

रामानुजन में जब भी गणित कि स्थिति घटती थी तो उनकी आँखों की पुतलिया ऊपर चढ़ जाती थी | जिस स्थान पर रामानुजन की आँखे चढ़ जाती थी योगशाश्त्र उसी को ‘तीसरा नेत्र’ कहता है | पश्चिम के गणितज्ञ इस बात को नहीं समझ पाए और शायद समझ भी न पाएंगे इस रहस्य को |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh