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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – ४३. तीसरी आँख की प्रतीति : तिलक आप मस्तिष्क के हर स्थान पर नहीं लगा सकते |

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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इस नेत्र का आँख की पुतलियो से अति घनिष्ठ सम्बन्ध है | आप जब भी गहरी नींद में होते है तो आपकी नींद की गहराई के अनुसार आँख की पुतलियाँ ऊपर चली जाती है | निद्रावस्था में पुतलियो की गति देखकर आप बता सकते है कि स्वप्न किस गति से देखा जा रहा है | वैज्ञानिक परिक्षण से यह सब सिद्ध हो चूका है | इसे वैज्ञानिक RIM (Rapid Eye Movement ) कहते हैं | गहरी सुसुप्ति में हम वही पहुँच जाते है जहाँ समाधी में पहुचते है | अंतर मात्र इतना ही होता है कि सुसुप्ति में हमें ज्ञान नहीं रहता जबकि समाधी में ज्ञान रहता है |

सम्पूर्ण मतलब यह कि हमारे पुतलियो के बीच भ्रूमध्य बिंदु ही तीसरा नेत्र है | इसके इस पार वह है जिसे हम वाह्य आँख से देखते हैं और उस पार वह संसार है जिसे पारलौकिक संसार कहते हैं; जिसके प्रतीक के रूप में भारतीय संस्कृति ने सर्वप्रथम ‘तिलक’ की खोज की | आपको पता होना चाहिए – तिलक आप मस्तिष्क के हर स्थान पर नहीं लगा सकते | यदि ठीक तीसरी आँख पर तिलक लगा दिया जाये, ठीक उसी मात्रा में उसी स्थिति पर तो पुरे शरीर को छोड़कर आपको उसी का स्मरण २४ घंटे रहने लगेगा | यह स्मरण पहला कम तो यह करेगा कि आपका शरीर बोध कम होता जायेगा और तिलक का बोध बढ़ता जायेगा और एक क्षण ऐसा आएगा कि आपको पुरे शरीर में केवल तिलक (अर्थात तीसरे नेत्र की जगह) का ही स्मरण रह जायेगा…और जिस दिन ऐसा हो जाये, उसी दिन आप तीसरी आँख खोलने में समर्थ हो सकते है | तिलक से जुडी जितनी भी साधनाएं है उन सबका एकमात्र लक्ष्य है कि पुरे शरीर को भूल जाओ | आपने इस बात का ख्याल न किया होगा कि आप आँख बंद करके बैठ जाये और कोई व्यक्ति अंगुली ले जाये आपके भ्रूमध्य के तरफ तो बंद आँख से भी आपको भीतर अनुभव होना शुरू हो जायेगा कि कोई आँख की तरफ अंगुली किये हुवे है |

यही तीसरी आँख की प्रतीति है |

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