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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – 12. परमात्मा का परम ऐश्वर्य – हम मरे हुवे ईश्वर कि उपासना कर सकते है किन्तु जीवित ईश्वर को पहचान नहीं सकते

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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लेकिन मै जो कहना चाहता था, वह यह कि परमात्मा का परम ऐश्वर्य कई रूपों में प्रकट होता है | ऐश्वर्य के सभी रूप परमात्मा के हैं और जहाँ भी श्रेष्टतर और श्रेष्टतर दृष्टीगोचर हो वहां परमात्मा स्वयं उपस्थित हो जाता है | चाहे एक संगीतज्ञ अपने संगीत की ऊंचाई को स्पर्श करता हो, चाहे चित्रकार अपनी कला की अंतिम सीमा स्पर्श करता हो, चाहे योगी साधना की ऊंचाई को स्पर्श करता हो या चाहे कोई प्रेमी अपने प्रेम की गहराई को स्पर्श करता हो, चाहे कोई भी दिशा हो…जहाँ भी अभिजात्य है वही परमात्मा अपने सघन रूप में प्रकट होता है | मुझे अमुक चीझ से प्रेम है, चीझ नस्ट हो गया; क्या मुझे भी नष्ट होना चाहिए; नहीं, कदापि नहीं, यही तो अभिजात्य है | प्रेम तो नष्ट नहीं हुआ | प्रेम तो ह्रदय में है | अभी तक तो वह वाह्य था किन्तु अब और गहरे में गया, काफी गहरे में पैठ कर गया | प्रेम कहाँ मरा, वो तो परमेश्वर हो गया | लेकिन हमें परमेश्वर का पहचान नहीं हो पाता | सभी लोगो का कहना है कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है | लेकिन आश्चर्य है, जब भी उस ईश्वर की परम विभूति प्रकट होती है, हम उसे पहचान नहीं पाते | जिन लोगो ने जीसस को शूली पर लटकाया वे भी कहते थे कि कण-कण में भगवान् है | जिन लोगो ने बुद्ध को गालियाँ दी, महावीर के कानो में कीलें ठोक दिए, वे भी कहते थे कि ईश्वर सर्वत्र है | लेकिन किसी ने जीसस, बुद्ध, महावीर को पहचाना नहीं | जीसस में सर्वत्र व्यापी परमात्मा उन्हें नजर नहीं आया |

है न आश्चर्य की बात…| जो लोग मानते हैं – ईश्वर सर्वत्र है, वे भी जब परमात्मा का कोई परम अभिव्यक्ति होती है तो उसे पहचानना तो दूर; उसके विपक्ष में खड़े हो जाते हैं | जहाँ ईश्वर का अस्तित्व अव्यक्त है वहां हम पूजा करने चले जातें है और जहाँ उसका अस्तित्व प्रकट होता है वहा हम उसे शूली पर चढ़ा देते हैं; ….कितना भारी विडम्बना है ! अवश्य इसका कोई गहरा कारण होगा, इसको समझना चाहिए |

जहाँ ईश्वर अव्यक्त है, वहां हम कितना ही कहे कि ईश्वर है, हम ईश्वर से बड़े बने रहतें है | हमारे अहंकार को मूर्ति द्वारा बाधा नहीं पहुँचती | किन्तु जब ईश्वर अपने परम ऐश्वर्य में प्रकट होता है तो हमारे अहंकार पर प्रहार होने लग जाता है | हम जीसस को शूली पर चढ़ाएगें ही…हाँ, फिर चर्च बना सकते है |

कभी मैंने ‘दोस्तोंवसर्का’ की एक कथा पढ़ी थी जिसमे लिखा था, जीसस को अपने मरने के अठारह सौ साल बाद विचार आया कि मै जमीन पर संभवतः बेसमय पहुँच गया था | वह ठीक समय न था | लोग तैयार न थे | मुझे कोई मानने वाला न था, इसलिए मेरी दुर्दशा हुई | शूली पर चढ़ना पड़ा | किन्तु अब ठीक समय है | आधा संसार ईसाइयत के अधिकार में है | हर स्थान पर मेरा चर्च है | मेरी पूजा होती है, मेरे नाम पर मोमबतियां जलाई जाती है | अब लोग मुझे पहचानेगें | समय और वातावरण दोनों अनुकूल है | यह सोचकर जीसस अपने गाँव बैथलम में उतरे और एक पेड़ के निचे खड़े हो गए | मन में सोचा कि अब वे अपनी ओर से नहीं कहेंगे कि मै जीसस हूँ क्योकि पहले एक बार कहा था कि मै जीसस हूँ, ईश्वर का पुत्र हूँ | लेकिन इस बार तो लोग बिना कहे ही पहचान लेंगे | घर घर में मेरी तस्वीर है | ….तो जीसस चुपचाप खड़े थे पेड़ के नीचे | लोगो ने पहचाना अवश्य, लेकिन जरा देखे तो, वे क्या कहते हैं – विल्कुल जीसस जैसे लग रहे हो | खूब स्वांग रचा है तुमने | कुशल अभिनेता हो…| अंत में जीसस को कहना पड़ा, तुम लोग गलत समझ रहे हो , मै कोई अभिनेता नहीं, वही जीसस हूँ जिसकी पूजा कर तुम आ रहे हो | यह सुनकर लोग और हंसने लेंगे, कहने लगे—तुम और जीसस ! भाग जाओ यहाँ से, वर्ना बहुत मार खाओगे, समझे | यह सुनकर जीसस दंग रह गए, कहा…क्या बोलते हो ! ईसाई होकर पहली बार जब मै आया था, उस समय यहूदी थें | कोई ईसाई नहीं था | इसलिए कोई पहचान न सका | लेकिन अब तो तुम सब लोग ईसाई हो | क्यों नहीं पहचान पा रहे हो मुझे ? जीसस का यह कहना था कि लोगो ने जीसस को पकड़ लिया, लगे मरने | १८०० वर्ष पहले भी जीसस मार खाए थे | लेकिन तब पराये लोग थे | मगर अब अपने ही लोग……………..!

जब भी ईश्वर अपने परम ऐश्वर्य में कही भी प्रकट होंगा, उसकी उपस्थिति खतरनाक सिध्य होगी | हमारा छुद्र अहंकार विचलित होगा | हम मरे हुवे ईश्वर कि उपासना कर सकते है किन्तु जीवित ईश्वर को पहचान नहीं सकते, क्योकि यह कठिन है हमारे लिए |

मैंने भी नहीं पहचाना क्योकि वो भी तो परम ऐश्वर्य था | अगर थोडा भी कम रहता तो शायद मै पहचानता | लेकिन उसने जो गहराईया प्राप्त कि थी उसमे झाँकने कि भी सामर्थ्य नहीं थी मुझमे |

cont..Er. D.K. Shrivastava 9431000486

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