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सतईसा (गंड-मूल नक्षत्र) क्या है ?

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी को केंद्र मानकर पुरे ब्रह्माण्ड को १२ राशी में बिभाजित किया गया है | १२ राशी में २७ नक्षत्र होते है | एक नक्षत्र में ४ चरण होते है अर्थात १२ राशी में १०८ चरण हुवे | इस प्रकार एक राशी में ९ चरण हुवे | इसका मतलब यह हुवा कि एक राशी में अगर पहला नक्षत्र (४ चरण) शुरू हुवा तो वह पूरा होकर दूसरा नक्षत्र (४ चरण) भी पूरा होकर तीसरे नक्षत्र के प्रथम चरण पर ख़त्म होगा | दूसरा राशी तीसरे नक्षत्र के दुसरे चरण से शुरू होगा |

गंड: – जहाँ राशी एवं नक्षत्र एक साथ समाप्त हो जाते है |

मूल – जहाँ दूसरे राशि से नक्षत्र का आरम्भ होता है |

अर्थात जिस राशी में नक्षत्र का पूर्णतः अंत हो जाये उसको गंद्मूल नक्षत्र कहते है |

जैसे कि –

– अश्वनी नक्षत्र के चारो चरण मेष राशि में आएगा तथा मेष राशि का स्वामी मंगल एक अग्नि प्रधान गृह है |

– अश्लेशा नक्षत्र के चारो चरण कर्क राशि में समाप्त होता है जो जल तत्त्व राशि है तथा चंद्रमा इसके बाद अपना संचार सिंह राशि में तथा माघ नक्षत्र में करता है जो को अग्नि तत्त्व राशि है अर्थात कर्क से सिंह राशि जो कि अग्नि तत्त्व राशि है, जल से अग्नि की ओर चंद्रमा अग्रसर होता है |

– वृश्चक राशि में ज्येष्ठ के चारो चरण जो धनु राशि तथा मूला नक्षत्र कि ओर चंद्रमा अग्रसर होता है अर्थात अग्नि तत्त्व वृश्चक की ओर से धनु वायु तत्त्व की ओर जाता है।

– रेवती नक्षत्र के चारो चरण जो मीन राशि में ही समाप्त होता है जो जल तत्त्व है फिर चंद्रमा मीन से मेष में अस्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है अर्थात (मीन) जल से (मेष) अग्नि की ओर |

इस प्रकार २७ नक्षत्र में से ६ नक्षत्र ऐसे है जिन्हें गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है, जैसे : अश्विनी, अश्लेशा, माघ, ज्येष्ठ, मूला, रेवती। इनमे से ३ नक्षत्र (अश्विनी, माघ, मूला) के स्वामी केतु है तथा बाकि तीन (अश्लेशा, ज्येष्ठ, रेवती) के स्वामी बुध हैं |

जैसे वर्ष भर में जब एक ऋतू का स्थान दूसरी ऋतू लेती है तब भी उन दो ऋतुओ के बीच का मोड़ स्वास्थय के लिए सही नहीं रहता है वैसे ही यह नक्षत्रो का स्थान परिवर्तन जीवन और स्वास्थय दोनों के लिए हानिकारक है. इसमें कारण यह है कि यह स्थान न राशि का है न नक्षत्र का | यह स्थान एक ऐसा स्थान है जहाँ पर किसी का स्वामित्व नहीं रहता है अर्थात यह एक मोड़ है जहा चंद्रमा, राशि और नक्षत्र का सामंजस्य समाप्त हो जाता है |

सतईसा हम इस लिए कहते है कि एक नक्षत्र का पुनः आगमन २७ दिन बाद होता है अर्थात ऐसे नक्षत्र में जन्मे बालक कि ठीक २७वे दिन इसी नक्षत्र में शान्ति करवाना परम आवश्यक है |

ज्योतिष शास्त्र में मूल नक्षत्र में जन्मे बालक को पिता के लिए कष्टप्रद माना जाता है | ऐसा नहीं है कि सभी गंद्मूल के नक्षत्र अशुभ होता हैं | कुछ शुभ भी होते है जैसे : –

अश्विनी नक्शत्र :
१ चरण : पिता को कष्ट भय.

२ चरण : सुख सम्पति में वृद्धि

३ चरण : राज काज में विजय

४ चरण : राज्य में सम्मान

अश्लेशा नक्षत्र :

१. चरण : शान्ति करवाए तो शुभ फल प्राप्त होता है

२ चरण : धन नाश

३ चरण : माता को कष्ट

४ चरण : पिता के लिए कष्टप्रद

माघ नक्षत्र :

१ चरण: माता के लिए अनिष्ट
२ चरण: पिता को कष्ट.
३ चरण: सुख और समृधि कारक.
४ चरण: धन विद्या और प्रगति .

ज्येष्ठ नक्षत्र :

१ चरण : बड़े भाई को कष्ट.
२ चरण : छोटे भाई को कष्ट.
३ चरण : माता को कष्ट .
४ चरण: खुद के शरीर को कष्ट.

मूल नक्षत्र :

१ चरण : पिता को कष्ट, भय ।
२ चरण : माता को कष्ट ।
३ चरण : धन लाभ।
४ चरण : लाभ लेकिन यतन से

रेवती नक्षत्र:

१ चरण : राज्य एवं सम्मान ।
२ चरण : वैभव में वृद्धि ।
३ चरण : व्यापार में लाभ ।
४ चरण ; विविध प्रकार के कष्ट ।

डी.के. श्रीवास्तव २३.४.२०११.

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