समाजवादी पार्टी के प्रर्दशन, लखनऊ में प्रर्दशनकारियों पर डीआइजी के पराक्रम तथा मुख्य मंत्री माया वती के और सख्ती किये जाने के एलान ने उत्तर प्रदेश की दशा-दिशा को लेकर कुछ विचारणीय सवाल खडे कर दिये हैं। ये सवाल हैं – क्या राज्य की मौजूदा बहुजन समाजवादी पार्टी की सरकार जन अपेक्षाओं पर खरी उतर पा रही है और क्या वह इस के लिए वाकई गंभीर व प्रतिबद्ध है ? प्रदेश को चलाने- हांकने वाले क्या लोक तांत्रिक और मानवीय मूल्यों- मान्यताओं की थोडी भी परवाह करते हैं ? और ,क्या सत्ता में आने को आतुर मुलायम सिंह यादव और उनकी पार्टी के समाजवादियों ने अतीत में हुई गल्तियों से सबक लेते हुए अपनी रीति-नीति में कुछ सुधार करने को सोचा है ? उत्तर प्रदेश सबसे बडा राज्य है और यह देश की राजनीतिक गति को निर्णायक रूप से प्रभावित करता है , ये सवाल इस लिए भी महत्वपूर्ण हैं। समाजवादी पार्टी ने मायावती सरकार की कथित जन विरोधी नीतियों और विफलताओं के विरोध में तीन दिनी आंदोलन किया । यह कल समाप्त हुआ। भले ही इस आयोजन के राजनीतिक निहितार्थ हैं, लेकिन लोक तांत्रिक ब्यवस्था में सबको मर्यादित ढंग से विरोध प्रर्दशन का अधिकार है। कल जिस तरह राजधानी लखनऊ में डीआइजी ने प्रर्दशनकारियों के साथ बर्ताव किया वह पुलिस ही नहीं राज्य सरकार की भी प्रशानिक अक्षमता और उसके अमानवीय चेहरे को दर्शाता है। निहत्थे प्रर्दशनकारियों पर निर्ममता से सांघातिक चोटें पहुंचाना , सिर के बाल पकड कर घसीटते हुए ले जाना और मुंह -छाती को लात-जूते से कुचलना तानाशाही देशों की शासन व्यवस्था और अंग्रेजों के जमाने की पुलिस की याद दिलाता है। सरे आम मानवाधिकरों का निर्लज्ज हनन। कोई समझदार और संवेदनशील राजनीतिक नेतृत्व किसी उच्च पुलिस अधिकारी के ऐसे बर्ताव को बर्दाश्त नहीं कर सकता । लेकिन , मुख्य मंत्री माया वती ने प्रर्दशन कारियों पर और सख्ती किये जाने की चेतावनी देकर एक प्रकार से डीआइजी डीके ठाकुरों जैसों की पीठ ठोकी है। यह सत्ता-शक्ति के निरंकुश दुरुपयोग का सूचक है। मुख्य मंत्री शायद भूल रही हैं कि सत्ता शीर्ष पर पहुंचने से ही कोई जन नेता नहीं हो जाता। संवेदनशील और जनोन्मुखी प्रशासन ही सर्व स्वीकार्य बडा नेता बनाता है। मुख्य मंत्री के बयान और डीआइजी के पराक्रम के कुछ चित्रों के आलोक में सुधी जनता जर्नादन को ही विचार करना चाहिए कि उत्तर प्रदेश कहां जा रहा है। साथ ही सपा नेतृत्व को विचार करने की आवश्यकता है कि माया सरकार के खिलाफ उसका आह्वान पार्टी के लोगों से बाहर क्यों नहीं निकल पाया ? उससे जन सामान्य क्यों नहीं जुडा ? क्यों वह पार्टी का ही कार्यक्रम हो कर रह गया ? यह मायावती सरकार की जन स्वीकार्यता है या फिर सपा नेतृत्व की विश्वासहीनता ?
लखनऊ के डीआइजी डीके ठाकुर ने कुछ ऐसे निपटा प्रर्दशनकारियों से
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