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बुरी नज़र से मैं खुद लड जाऊँगी

मेरी आवाज़
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कल सपने में आई अचानक , मेरे सीता माता
मैने कर प्रणाम कहा माँ,कहाँ हैं भाग्य विधाता ?
क्यों व्यभिचारी दुनिया में, तुम तन्हा घूम रही हो ?
सच कहुँ माँ- नारी हो , तुम भी यहाँ सेफ़ नहीं हो ।
नंगे पैर वनो में भटकी , घास औ पत्ते खाए
ताकि तेरा पति वनों में तन्हा न रह जाए
रानी से वनवासी बनकर , उफ़ तक भी न की थी
हर पल साथ निभाने की इक कसम जो तूने ली थी
पत्नी धर्म निभाने में जीवन स्वाहा कर डाला
सोने की लंका में जपी थी , राम-नाम की माला
स्वर्ण मृग को पाने की माँ , जो इच्छा न करती
जीवन भर विरह पीडा में , यों न तुम तडपती
इक रेखा को लांघ के माँ , कितने दुखों को झेला
जीवन में फ़िर से न आई कभी खुशी की बेला
इक रावण के कारण तूने अग्नि परीक्षा दी थी
जीवन भर उस दंश के कारण ज़हर प्याली पी थी
वो सतयुग था , इसीलिए रावण तुम्हें छू न पाया
पर अब तो , हर घर में फ़ैली ,है कलयुग की छाया
देख अकेली नारी , वहशी नज़रें ललचाती हैं
बेकसूर होने पर भी , निन्दनीय ही कहलाती हैं
मारपीट , अपशब्द , ताडना नारी सब सहती है
रोती है मन ही मन में , आँखों से चुप रहती है
नाम तेरे की माला जपते , कहते तुमको माता
पर नारी को देखके इनका ,धर्म भ्रष्ट हो जाता
धर्म गुरु खुद को कहलाते , कहते स्व को ज्ञानी
बडे-बडों से भरवाते हैं , अपने आगे पानी
किन्तु हवस के भूखे , अंदर से दिल के काले हैं
तेरे नाम के संबल में , कितने ही भ्रम डाले हैं ।
माँ , बहन न बेटी इनका किसी से कुछ न नाता ।
लूट ले सरे-बाज़ार जो इनके मन को है भा जाता ।
बेटी सम बाला की इज्जत लूट के न लज्जाते ,
खेद है ऐसे लोग ही अब यहाँ धर्म-गुरु कहलाते ।
मेरी विनय है माँ रही न , अब यह धरती पावन ,
कदम-कदम पे घूम रहे हैं , जाने कितने रावण ।
सहा जो तुमने , अब फ़िर से वो पडे न तुमको सहना
शीश नवा कर अरज़ करुँ माँ , कभी तन्हा न रहना ।
बोली माँ सीता मुसकाकर , बेटी तुम भोली हो ,
देखके ये हालात क्यों इतना मन से तुम डोली हो ?
बुरी निगाहें वहशी की हैं चाहे चारों ओर
दिखता भले है पथ में अपने अंधकार घनघोर ।
पर न भूलो नारी ही तो शक्ति कहलाती है ।
पर-सुख हेतु नारी ही भाग्य से लड जाती है ।
शक्ति होकर भी नारी क्यों इतना डर जाती है
तन्हा बाहर जाने से भी क्यों वह घबराती है ?
गया ज़माना जब नारी चुपचाप ही सब सहती थी ।
पर-इच्छा का पालन ही वह स्व-भाग्य कहती थी ।
उठो , स्व को पहचानो , मैं भी हूँ तुम्हारे संग में ।
छोटे से इस जीवन को ,भरलो खुशियों के रंग में
डरी रहोगी जितना मन से , लोग डराते जाएँगे
साहस दिखलाओगी तो , कुछ भी बिगाड न पाएँगे
अपनी रक्षा स्व को करनी होगी , इतना जानो ।
शक्ति हो तुम , बस अपनी शक्ति को तुम पहचानो ।
क्षमा चाहती हूँ माँ , मैं ये सब कुछ भूल गई थी ।
देख के चारों ओर मेरे हृदय में शूल उठी थी ।
पर अब ये न होगा माँ , मैं कभी न घबराऊँगी ।
वादा है , हर बुरी नज़र से मैं खुद लड जाऊँगी ।
अपनी रक्षा का बीडा , हमें स्वयं उठाना होगा ।
नारी शक्ति है दुनिया को यह दिखलाना होगा ।
नारी शक्ति है दुनिया को यह दिखलाना होगा ।

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