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मैं गणेश , सबसे विशेष
जो समझो , वो मेरा वेष
मैं कण-कण में डाल-डाल में
आता हूं कुछ दिन साल में
मिलता मुझको स्नेह अपार
कितना करें सब मुझसे प्यार
हर्षित हो जाता है मन
खुश करता हूं मैं हर जन
इस प्यार में मैं झुक जाता हूं
हर मन में मैं बस जाता हूं
पर मेरा भी दुखता मन
होता जब मेरा विसर्जन
एक तो लम्बा फ़िर वियोग
साल बाद होगा संयोग
ऊपर से फ़ैले प्रदूषण
जिस पर पलता सबका जीवन
गंदला हो जाता वह जल
जिस पर रहे हैं जंतु पल
मुझ पर जो सबनें रंग डाले
हैं वो सब कैमिकल वाले
मैं न कुछ समझा सकता हूं
कैसे सम्मुख आ सकता हूं
देख के श्रद्धा और प्यार
मैं भी करता हूं विचार
कैसे मैं सबको समझाऊं
रंगों के नुकसान बताऊं
मैं देव , फ़िर भी असहाय
कोई तो आ सबको समझाय
करो मुझे जी भर कर प्यार
पर थोडा सा करो विचार
कितना जल गंदा करते हो
जिस के बल पर सब पलते हो
रंग जहरीले जल में जाएं
कितने जल जन्तु मर जाएं
फ़ैल जाए जल में महामारी
जिससे फ़लती है बीमारी
बिन समझे क्यों करते पाप
दोषी क्यों खुद बनते आप
स्व खुशी पर का नुकसान
ये न मेरा है अरमान
बिन रंगों के मुझे सजाओ
या फ़िर धातु से बनवाओ
जो रंगों से मुझे सजाओ
तो फ़िर घर पर ही बैठाओ
रहुंगा फ़िर मैं हरदम पास
जो सब मेरा करो विश्वास
वातावरण जो होगा स्वच्छ
मिलेगा तुम सबको भी यश
करो न कुदरत से खिलवाड
जो दोगे तुम इसे बिगाड
तो फ़िर बिगडेगा जन जीवन
कैसे हर्षित होगा मन ?
कुदरत से जो करते प्यार
उसे मैं देता खुशी अपार
समझो कुछ मेरा भी वेदन
साफ़ रखो कुदरत का धन
तो मैं खुशी से आऊंगा
हर मन में बस जाऊंगा ।
गणेशोत्सव की सबको बधाई……सीमा सचदेव
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