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just तुकबन्दी ( A Poem )

मेरी आवाज़
मेरी आवाज़
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जिसकी चाहत मे हमने गुजारा जमाना
जमाने ने हमको बताया दीवाना
दीवानो की महफिल मे गाए तराने
तरानो पे बजते थे साज सुहाने
सुहाना था मौसम सुहाने नजारे
नजारे क्यो लगते थे जाने प्यारे
प्यारा था साथी प्यारी सी बाते
बाते थी लम्बी छोटी थी राते
रातो मे यादो ने हमको सताया
सताने मे हमको बडा मजा आया
आया जो सावन तो आई बहार
बहार क्या थी ? वो तो रही दिन चार
चार दिन क्या बीते तो पडने लगा सूखा
सूखे मे सूखने लगा था जो भूखा
भूखे न होए भजन सब जाने
जाने तो जाने पर कोई न माने
माने जो कोई तो कैसी हो उलझन
उलझन न होती ,तो होती न सुलझन
सुलझन जो हुई तो न्या रूप आया
आया जो सम्मुख तो सबको भरमाया
भरम हमने पाले मन मे हजार
हजार बार उस पर किए विचार
विचारो से कभी कोई मिली जो राहत
राहत वही फिर से बनने लगी चाहत ||

क्या आपको कुछ समझ मे आया | आया तो कृपया
मुझे भी समझाइएगा……सीमा सचदेव

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