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ऊँचा -लम्बा कद, साँवला रंग , छरहरा बदन, चुस्त-फुरत ,चले तो लगता है भागती है जल्दी-जल्दी से बर्तन घिसते हाथ , साथ में कभी कभी मीठी आवाज़ में गुनगुनाना( जो मैं कभी समझ नहीं पाती), साड़ी में लिपटी दुबली-पतली काया ,हाथ में मोबाइल, स्वयं को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझती |
जी नहीं ! यह कोई और नहीं ,यह है शारदा बाई (मेरी काम वाली) जो अक्सर देरी से ही आती है और एक महीने में चार – पाँच छुट्टियां आराम से मार लेती है |चतुर इतनी है कि जहाँ पर ध्यान नहीं दिया , वही पर काम में गड़बड़ी कर जाती है |उसकी इस आदत से मैं अक्सर परेशान रहती ही हूँ |मैं ही नहीं वो भी मुझसे परेशान रहती है ,जब उसको मेरे सवालों का सामना करना पड़ता है |दोनों ही एक दूसरे से परेशान है ,पर खुश भी है वो शायद इस लिए कि हम दोनों एक दूसरे की कमजोरी जानती है जब मुझे गुस्सा आता है तो शारदा बोलती ही नहीं ,बस मैं जो कहूँ ,चुपचाप कर देती है ,गुस्सा करके मुझे स्वयं में ग्लानि होती है|
न तो शारदा अपने में सुधार कर सकती है और न ही मैं |अगर मैं यह कहूँ कि एक दूसरे को सहना हमारी आदत बन चुकी है ,या फिर मजबूरी है तो गलत नहीं होगा | काम करवाना मेरी मजबूरी है और करना उसकी | मजे की बात यह कि मुझे उसकी भाषा भी समझ नहीं आती वो तेलुगु है और मैं पंजाबी यह भी एक कितनी बड़ी त्रासदी है कि एक ही देश हमारा घर है ,लेकिन एक दूसरे से अपनी बात नहीं कह सकते पर धन्यवाद है हमारी हिन्दी मैया का कि हम भले ही देश के किसी कोने में क्यों न चले जाएँ ,अपनी बात समझा ही लेते हैं |
खैर ! बात शारदा की हो रही थी ,जो सुबह मेरे घर लगभग साढ़े सात बजे पहुँच जाती है लगभग सात बजे घर से चलकर सबसे पहले मेरे ही घर आती है और साढ़े बारह बजे तक छ: सात घरों का काम निपटा कर अपने बच्चों को स्कूल से लेती हुई जाती है
पिछले कुछ दिनों से मैंने उसके हाथ में मोबाइल गायब पाया तो एक दिन मुझसे रहा न गया और पूछ ही लिया
वो मैडम ! मेरे हसबेण्ड का मोबाइल चोरी हो गया तो मैंने अपना उसे दे दिया |
बात छोटी सी ही थी लेकिन मैं छोटी-छोटी बातें कुछ ज्यादा सोच लेती हूँ वैसे भी इस पर कोई बस थोड़े ही होता है कौन सी सोच कब,कहाँ ,कैसे आ जाए ? हमें खुद पता नहीं होता और मैं सोच रही थी , अगर यही मोबाइल शारदा का गुम हुआ होता तो क्या उसके पतिदेव ने अपना मोबाइल शारदा को दिया होता ? इसका तो सीधा सा जवाब था :- नहीं अगर वो ऐसा कर सकता तो शारदा से लेता ही नहीं खैर !इसका सीधा सा जवाब मेरे अपने पास था तो ज्यादा सोचा नहीं इतनी बड़ी बात भी नहीं थी जिस पर सोचा जाए |
लेकिन अब मैं अपने -आप को लिखने से नहीं रोक पाई जब आज शारदा मेरे घर सुबह न पहुँची तो मुझे फिर से उस पर गुस्सा आ रहा था दो घण्टे इन्तज़ार किया और फिर उसके घर फोन |फोन शारदा के पतिदेव ने उठाया मैंने पूछा तो पता चला कि वो तो सुबह सात बजे ही घर से निकली थी मैंने चिन्तित स्वर में कहा:-तो अब तक वो पहुँची क्यों नहीं…….?
पता नहीं मैडम ……पहुँच जाएगी…..
शायद उसके मन में कोई चिन्ता की रेखा ही न फूटी थी , या फिर मुझे ही कुछ ज्यादा चिन्ता होती है |
कोई आधे घण्टे बाद शारदा मेरे घर पहुँची तो सर पर पट्टी बाँधे हुए और थोड़ी बेहोशी सी होती हुई |
अरे! यह क्या हुआ तुम्हें ?
गिर गई मैडम
कैसे…..?
रास्ते में पैर फिसला और सर नीचे पड़े पत्थर पर लगा लोग उठा कर अस्पताल ले गए और पाँच-छ्: टाँके लगे है दिखने से ही लग रहा था :-घाव गहरा है मैंने उसे बिठाया ,हल्दी का दूध और खाना दिया मैंने शारदा से काम नहीं करवाया और उसके पतिदेव को फोन करने लगी तो शारदा ने मुझे मना कर दिया ,बोली:-
बेवजह उनको टैन्शन होगी , मैं ठीक हूँ ,अपने – आप चली जाऊँगी और थोड़ी देर बाद शारदा चली गई |
आज शारदा का मैंने अलग ही रूप देखा था जिस पति को अपनी पत्नी के इतनी देर तक भी न पहुँचने पर कोई चिन्ता न हुई थी ,उसी की पत्नी अपनी तकलीफ की परवाह नहीं करके पति की चिन्ता के बारे में सोच रही थी | आज मैंने एक सच्ची अर्धांगिनी का वास्तविक रूप देखा था और यही सोच कर मैंने शारदा को उसके घर फोन करने की बात नहीं बताई ताकि उसका अपने पति के प्रति विश्वास ,निष्ठा और प्रेम-भाव बना रहे |
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