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चुनाव अभियान………..

मेरी आवाज़
मेरी आवाज़
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जैसे ही
चुनाव आयोग ने
चुनाव आचार सन्हिता का बिगुल बजाया

तो
नेता जी के शैतानी दिमाग़ ने
अपना अलग रास्ता बनाया

और
नेता जी को समझाया
अब छोडो मेरा साथ ,मेरा कहना
और कुछ दिन केवल
दिल के अधीन ही रहना

नेता जी
जो कभी-कभी
कविता लिखने का शौंक फरमाते थे

और
कभी-कभी अपने दिमाग़ के कारण
समीक्षक भी कहलाते थे

वही दिमाग
अब नेता जी को समझाता है

अरे !
चुनाव अभियान में
समीक्षक नहीँ
कवि ही काम आता है

कवि हो
तो उसका फायदा क्यो नहीँ उठाते
कुछ ऐसे नारे क्यों नहीँ बनाते

जिसमे हो
कुछ झूठे वादे,कसमे और लारे

जिसमे
फँस जाएँ भोले-भाले लोग बेचारे

बस
कुछ दिन मे तो
चुनाव खतम हो जायेगी

और
तेरी-मेरी फिर से
मुलाकात हो जाएगी

फिर
हम दोनो मिलकर करेंगे राज
और करेंगे दिल के मरीजों का इलाज

नेता जी
घबराये और बोले
तेरे बिना मै क्या कर पाऊँगा?
यूँ ही दिल के हाथो मर जाऊँगा

अरे!
मेरे होते तू क्यों घबराता है?
नेता का दिल भी तो
उसका दिमाग़ ही चलाता है

बस
फरक सिर्फ इतना है
कि दिल को थोड़े दिन्
रखना दिमाग से आगे

और
देखना लोग आएँगे
तुम्हारे पीछे भागे-भागे

बस
उनको दिल कि बातों से
बस में करना

और
दिमाग से नामान्कन भरना

होगा
तो वही जो तुम चाहोगे

पहले भी
लोगो को मूर्ख बनाया
आगे भी बनायोगे

जीतोगे
और तुम्हे सम्मान भी मिल जायेगा
लोगों की मूर्खता का
प्रमाण मिल जायेगा

__________________________
__________________________
__________________________

लेकिन
इस बार नेता जी के
दिमाग़ ने धोखा खाया
लोगो ने अपना दिमाग चलाया

और
नेता जी को
बाहर का रास्ता दिखाया

नेता जी
जो स्वयम को समझते थे
समाज का आईना

अब
स्वयम को
समाज के आईने मे पाया

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