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मेरी है जमीं , मेरा आसमाँ – contest

मेरी आवाज़
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‘हिन्दी बाजार की भाषा है’ – यह कथन सत्य है और यही सत्यता तो हिन्दी को जमीं के निम्न धरातल से उठा आसमान के उच्च शिखर तक पहुंचाती है | हिन्दी बाज़ार की भाषा है , बाजारू भाषा नहीं | हम क्यों भूल जाते हैं की हम सब के लगभग ८० प्रतिशत कार्य बाज़ार से ही संपन्न होते हैं | फिर ऐसे भीड़ भरे बाज़ार में जो भाषा हमारे समझने -समझाने के काम आए , वही तो महान है | सोचिए अगर हिन्दी बाज़ार की भाषा न हो तो हम हिन्दुस्तानियों का जीवन कितना दुर्लभ हो जाए | दक्षिण भारत में रहते हुए मैंने इस बात को बहुत बारीकी से अनुभव किया है | जब हमें बाज़ार में सब्जी या फल तक खरीदते हुए कई बार सांकेतिक भाषा का सहारा लेना पड़ता है |धन्य है हमारी हिन्दी और भाग्यशाली हैं हम भारतीय कि हम भारत के किसी भी कोने में क्यों न हों , अपनी बात समझा ही लेते हैं और कोई और भाषा भले ही कोई समझे या न समझे , हिन्दी अवश्य समझ जाते हैं | वह प्रभाव भले ही हिन्दी फिल्मों या गानों का हो , कुछ भी हो हिन्दी अपनी सरलता , स्वाभाविकता तथा रोचकता के कारण अपनी पहुँच आज भारत के हर घर में बना चुकी है | भारत से निकल आजकल तो विदेशों में भी हिन्दी भाषा तेज़ी से अपने पाँव पसार रही है | न जाने हम अपनी भाषा को छोटा क्यों समझने लगते हैं जबकि आजकल तो अंतरराष्ट्रीय पाठ्यक्रम में भी हिन्दी को आधुनिक भाषा के रूप में अहम् स्थान दिया गया है | हिन्दी केवल भाषा नहीं है बल्कि मन की गहराई में समाया वह भाव है जिसे हमारी हिन्दी अपने शब्दों का संबल दे अमर कर देती है | हिन्दी में छिपे हमारे वो संस्कार हैं , जो हमें इंसानियत का गुण , जीने का गुर तथा मानवता से प्यार करना सिखाते हैं | जब हमारी भाषा की पहुँच इतनी आसानी से हर जन तक है तो उसे बाज़ार की भाषा कहते हुए हमें शर्म नहीं गर्व का अनुभव होना चाहिए | मुझे गर्व है कि जो भाषा हर मन के उद्वेगों को कंधे सा सहारा दे जीवन में ऊंचा उठा देती है , मैं उसी से जुडी हूँ |

अब दूसरा सवाल कि – ‘हिंदी गरीबों, अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गई है ‘ – हमें इस बात से भी इनकार नहीं है | हम तो कहते हैं कि वास्तविक भाषा ही वही है जो हर जन द्वारा आसानी से समझी और बोली जाए | वह भाषा ही क्या जिसमें हम अपने भावों को समझ और समझा ही न सकें | भाव कभी भी औपचारिकता में खुलकर सामने नहीं आते और परिणाम यह होता है कि हमारी मानों की दूरियां बढ़ती जाती हैं | हिन्दी में वह शक्ति है कि किसी भारतीय चाहे वह पढ़ा-लिखा है या अनपढ़ , गरीब है या अमीर सबको अपने आँचल की छाया प्रदान कर माँ सी ममता सा निहाल कर देती है | आज भले ही विदेशी भाषा का प्रचार हो रहा है और लोग विदेशी भाषा बोलने/ पढ़ने में गर्व महसूस करते है किन्तु सत्य यही है कि उन भाषाओं को सीखने में अथक प्रयास करना पड़ता है , उसके बाद भी हर किसी से उसी भाषा में बात नहीं कर सकते | हमारी हिन्दी महान है , विशाल है , जो हम स्वाभाविक रूप से सीखते जाते हैं और अपने समाज में हर किसी के साथ संपर्क साध सकते हैं – फिर चाहे वह गरीब हो , अमीर हो , पढ़ा-लिखा हो या फिर अनपढ़ – किसी के साथ भी कोई दुविधा नहीं | हम यह भूल जाते हैं कि हमें भाषा की आवश्यकता होती क्यों है ? – निश्चित ही भावों की अभिव्यक्ति के लिए और भाव केवल अपनों के सामने ही व्यक्त किए जाते हैं -दूसरों के सामने नहीं | क्या हमारे अपने अगर आर्थिक तौर पर संपन्न नहीं हैं या पढ़े-लिखे नहीं हैं तो क्या हम उनके सामने अपने भाव व्यक्त नहीं करेंगे या फिर उन्हें अपने भाव व्यक्त करने का अधिकार नहीं है -सिर्फ इसलिए कि वे किसी कारणवश पढ़-लिख नहीं सके या फिर धनाढय नहीं हैं | हमें तो खुश होना चाहिए कि-
हिन्दी बिना भेद-भाव सबको अपने गले लगाती है
तभी तो माँ कहलाती है |
हिन्दी माँ है और माँ अपने बच्चों में कभी भेद-भाव नहीं करती | बच्चे भले ही अहंकार-वश अपनी माँ को त्याग दें परन्तु माँ तो माँ है – अपना आशीर्वाद हर बच्चे पर एक जैसा ही लुटाती है | भारतीय भले ही आर्थिक रूप से गरीब हों लेकिन यहाँ के गरीबों की भाषा संपन्न है , विश्व-विख्यात है , वैज्ञानिक है और दिखावे की नहीं दिल की भाषा है |
भाषा वो है , जो अपनों के दिल की गहराई में घुस जाए
वो नहीं , जो अपनों को दूर ले जाए |
अंत में कहना चाहूंगी कि हिन्दी हर जन की हर जगह की भाषा है , इसलिए महान है और हिन्दी तो –

हिन्दी बिंदी है भारत मां के भाल की
हिन्दी भाषा भी है कमाल की ।
हिन्दी वाणी है जन-जन की
हिन्दी आवाज़ है हर मन की ।
हिन्दी हिन्द की पहचान है
हिन्दी आम नहीं , कोई दैवी वरदान है ।
हिन्दी सहज़ सरल स्वाभाविक है ,
हम हिन्दी नौका के नाविक हैं ।
हिन्दी कबीर सूर तुलसी की वाणी है
हिन्दी सीता , राधा , झांसी की रानी है ।
हिन्दी दुर्गा , लक्षमी भारती है
हिन्दी साहित्य की पावन आरती है ।
हिन्दी वेद वाणी की जाई है
हिन्दी भावों की गहराई है ।
हिन्दी वह योगमाया है ,
जिसनें अपना परचम साहित्याकाश में फ़हराया है ।
हिन्दी शक्ति है , हिन्दी भक्ति है ।
हिन्दी भावनाओं की तरिप्ती है ।
हिन्दी पूजा है , हिन्दी वंदन है ,
हिन्दी का ह्रदय से अभिनंदन है ।
हिन्दी हिन्द की जान है ,
हिन्दी मेरी पहचान है ।
आओ हिन्दी अपनाएं ,
भारत को समरिध बनाएं ।

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