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चाहती हूँ……

kavita
kavita
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चाहती हूँ
इत्मिनान से देखूं ,
बालिका वधु और सरस्वतीचंद
तभी आ जाते है ये ,
और बदल देते हैं चैनल ,
देखते हैं ,आई .पी. एल ..
चाहती हूँ ,
एक फुर्सत वाला दिन
नरम नरम धूप,
भाप उड़ाती चाय ,
रूमानी सी किताब
कभी मयस्सर भी हुए जो ये पल
तो वक्त से पहले
आ जाती है बाई
और शुरू कर देती है खटर पटर .
चाहती हूँ ,
सुकून भरी तन्हाई
टेप पे अंजुम रहेबर की आवाज़
;इक रेल जा रही थी ,तुम याद आ गये
तभी उधम मचाती आती है बेटी .
बदल देती है केसेट ,
घर में भर जाता है ,आवाज़ का धुवां
(इट्स टाइम टू डिस्को )
आखिर जो मिलना ही नहीं
वो चाहती क्यों हूँ ?;:,

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