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जो हाथ रचाए महल दो महले………(मजदूर दिवस )

kavita
kavita
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जो हाथ रचाए महल दो महले
क्यूँ उनके सर छत नहीं
क्यूँ उनके सपने बेरंग
काले ,धूसर और मटमैले .
सतरगे सपने बुने जो ,
बने हमारा खुश रंग लिबास
फटे पुराने उनके कपड़े
टुटा फुटा है आवास
उनके रंगीन धागों से
भरी हमारी अलमारी
क्यूँ खाली उनकी जेबें
खाली क्यूँ थैले
जो हाथ रचाए महल दो महले
अपने घर में स्टोर भरे
उनकी बखरी खाली क्यूँ
आराम से हम बैठे घर में
धूप में वो दिन भर जले
जो हाथ रचाए महल दो महले

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