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क्या अपने अधिकारों की मांग करना ,निर्बलता का परिचायक है ?jagran junction forum

kavita
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अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना कमजोरी की निशानी है ?यदि अधिकारों की मांग दुर्बलता का परिचायक है तो जिससे
मांग की जा रही है उसे क्या माना जाये ज़ालिम ,निर्दयी ?जब सारा देश एकजुट होकर आज़ादी के लिए लड़ा और आज़ादी प्राप्त
भी किया तो क्या सारा देश निर्बल था .
घर में पति -पत्नी आपस में मिलकर परिवार की गाड़ी चलाते हैं .एक दुसरे के प्रति प्रेम ,सम्मान ,सहयोग की भावना
रखते हैं तो वह परिवार सुखमय होता है .जिद परिवार में पति -पत्नी में से कोई एक उपेक्षित हो दबा -कुचला हो
तो उस परिवार में कभी खुशियाँ नहीं आती वहाँ तो असंतोष ,कलह ,विषाद रहता है .
ठीक इसी प्रकार समाज भी स्त्री -पुरुष से मिलकर बना है यदि इसमें नारी की उपेक्षा की जाएगी उसके
प्रति सम्मान ,प्रेम नहीं रखा जायेगा तो समाज तो उस समाज देश का वही हाल होगा जो हमारे समाज का है .
आज ही मध्य प्रदेश में एक छोटी बालिका के साथ दुष्कर्म कर जघन्य हत्या क्र दी गयी क्या बालिकाओं
के प्रति न्याय ,सुरक्षा की मांग करना ,महिलाओं को अबला साबित करता है और उन दरिंदों को क्या साबित करता
है बला .हमारे यहाँ एक मुहावरा कहा जाता है “बेटी अच्छी नहीं उसकी किस्मत अच्छी होनी चाहिए “‘जिसका
यही अर्थ है बेटी को योग्य वर मिले परिवार अच्छा हो उसके साथ कहीं भी घर के अन्दर और कुछ बुरा न
घटित हो .भ्रूण हत्या ,दहेज प्रथा ,बलात्कार ये हमारे समाज का कोढ़ है जो स्त्री की दशा को बताता है .
……….अक्सर सुनने में आता है की ”नारी ही नारी की दुश्मन है ”.तो क्या पुरुष पुरुष के मित्र होते हैं
क्या एक पुरुष दुसरे पुरुषों के साथ लूटपाट ,हत्या ,गाली-गलौज ,मारपीट नहीं करता क्या सभी पुरुष आपस
में मिलकर रहते है ?तो फिर नारी पे ही ये मुहावरा लागु क्यों होता है शायद इसका कारण ये है की समाज
नारी को या तो देवी के रूप में देखता है या भोग्या के रूप में इन्सान तो मानता ही नहीं है .
अगर ये कहा जा रहा है की;; पुरुष की मर्दानगी महिलाओं को छेड़ने में नहीं बल्कि उसकी रक्षा करने
में है ”तो ये प्रशन उभरता है की महिलाओं की रक्षा किस से करना है भेड़ियों ,शेर ,गीध ,बाघ से ..
महिलाओं की रक्षा पुरुषों से ही करनी है तो पुरुष उनके साथ ऐसा व्यवहार ही क्यों करें की रक्षा की नौबत
आये .और अगर घर में बहु जलाई जा रही है तो क्या केवल सास ,नन्द ही मिलकर जलाती हैं उसमें
पति ,देवर .ससुर की कोई भूमिका नहीं होती क्या वे अपने घर की नारियों से डर कर उनका साथ देते हैं .
इसे प्रकार किसी महिला का गर्भपात करवाना है की गर्भस्त शिशु कन्या है तो क्या इसमें केवल ससुराल
और मायके पक्ष की महिलाओं की भूमिका होती है पुरुषों की कोई भूमिका नहीं .
यदि आज समाज में लोग {जिसमें स्त्री पुरुष दोनों शामिल है }नारी की सुरक्षा ,अधिकार ,सम्मान
की मांग कर रहे हैं तो इसे उनकी जाग्रति मन्ना होगा न की निर्बलता .
बहुत से लोगों द्वारा ये सवाल भी उठता है की नारी अधिकार की बात करना उन्हें पुरुषों के अधीन
करना है जब नारी नर समाज के दो पहिये हैं और मानवता का भी यही तकाजा है प्रत्येक इन्सान दुसरे
इन्सान के बराबर है तो हम चाहें नारी हो या पुरुष बराबर हैं तो कोई मनुष्य किसी दुसरे के अधीन
कैसे हो सकता है .
अब यदि लोग सोच रहें हैं की नारी को समान अधिकार देना चाहिए तो इसमें गलत क्या है ,ये तो एक शुभ
संकेत है .
बहुत से लोगो का कहना है की महिलाएं समानता नहीं सम्मान की चाह रखती हैं ,पैगम्बर हजरत मोहम्मद
साहब का कहना था की “‘तुम दूसरों से वही व्यवहार करो जो तुम अपने लिए पसंद करते हो ”.
ज़ाहिर है हर इन्सान चाहता है की उसका साथ अच्छा व्यवहार हो तो अगर हम सबके साथ सुन्दर
व्यवहार करेंगे तो तो इस प्रशन का औचित्य ही क्या रह जाता है .
राष्ट्र की प्रथम इकाई परिवार है .पति -पत्नी एक दुसरे का सम्मान ,मान रखें और अपने बेटी -बेटा
के पालन -पोषण में भेदभाव न करे उनके मस्तिष्क में बचपन से ही परिवार के सदस्यों ,रिश्तेदारों ,
पड़ोसियों ,कक्षा के सहपाठियों ,शिक्षकों के प्रति आदर ,सम्मान ,प्रेम ,समानता के बिज बोयें
तो आने वाले समय में ये मुद्दे ही गायब हो जायेंगे .
………………………नहीं चाहती बना देवी ,दिन रात करो मेरा गुणगान
……………………..फकत चाहती हूँ इतना ,समझो अपने जैसा ही इन्सान ..

……………………..मैं भी हूँ तुम जैसी हाड़ मांस की इन्सान
…………………….क्यों मुझे समझते हो भोग का तुम सामान .

………………………..स्त्री पुरुष दोनों पे है स्वस्थ समाज की ज़िम्मेदारी
………………………..लेकिन पहले परिवार से शुरू करें नर -नारी .

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