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आत्मानुभूति की सीढि़यां

शाश्वत सत्य
शाश्वत सत्य
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ज्ञान योग का अधिकारी बनने के लिए मनुष्य को पहले शम और दम पर नियंत्रण सीखना चाहिए। इंद्रियों को उनके केंद्र में स्थित करना और उन्हें बहिर्मुखन होने देने का नाम है शम और दम। क्या है इंद्रिय शब्द का अर्थ? दरअसल, हमारी और आपकी आंखें दर्शनेन्द्रिय नहीं हैं। ये केवल देखने का साधन मात्र हैं। यदि आपके पास दर्शनेन्द्रिय मौजूद नहीं है, तो बाहरी आंखें होने पर भी आपको दिखाई नहीं देगा। दूसरी ओर, बाहरी आंखें और दर्शनेन्द्रिय होने के बावजूद यदि आपका मन कार्य में नहीं लग रहा है, तो ऐसी दशा में भी आपको कुछ नहीं दिखाई देगा। इसलिए किसी वस्तु के ज्ञान के लिए तीन चीजें आवश्यक हैं :
साधनभूतबहिरिन्द्रय,जैसे-आंख, कान, नाक आदि
दर्शनक्षमअंतरिन्द्रय
मन
यदि किसी व्यक्ति के पास इन तीनों में से एक भी विद्यमान नहीं है, तो उसे वस्तु का ज्ञान नहीं हो पाएगा। इस प्रकार, मन की क्रिया बाह्य और अंतर इन दो साधनों द्वारा होती है। जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु को देखता है, तो उसका मन बहिर्मुखहोकर उस वस्तु की ओर झुक जाता है। दूसरी ओर, जब वह आंखें बंद कर सोचने लगता है, तो मन फिर बाहर की ओर नहीं जाता। वह भीतर-ही-भीतर काम करता रहता है। दोनों ही स्थितियों में इंद्रियों की क्रिया जारी रहती है। दूसरी ओर, जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को देखता है और फिर उससे बात करता है, तो उसकी इंद्रियां और उनके बाहरी साधन दोनों ही काम करते रहते हैं। जब वह अपनी आंखें बंद कर सोचने लगता है, तो केवल उसकी इंद्रियां ही काम करती हैं, उनके बाहरी साधन नहीं। इंद्रियों की क्रिया के बिना मनुष्य विचार ही नहीं कर पाएगा। कोई भी व्यक्ति यह अनुभव कर सकता है कि बिना किसी अवलंब के सहारे विचार नहीं किया जा सकता है। नेत्रहीन मनुष्य भी जब विचार करता है, तो किसी प्रकार की आकृति की सहायता लेता है। अक्सर आंख और कान-ये दोनों इंद्रियां बहुत कार्यशील होती हैं। यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि इंद्रिय शब्द से मतलब है-हमारे मस्तिष्क में रहने वाला ज्ञानकेंद्र।आंख और कान देखने और सुनने के साधन मात्र हैं। उनकी इंद्रियां भीतर ही रहती हैं। यदि किसी कारण से ये इंद्रियां नष्ट हो जाएं, तो आंख और कान रहने पर भी न तो हमें कुछ दिखाई देगा और न ही कुछ सुनाई देगा। इसलिए मन को काबू में करने से पहले इन इंद्रियों को काबू में लाना चाहिए। मन को भीतर-बाहर भटकने से रोकना और इंद्रियों को अपने केंद्रों में लगाए रखने का नाम ही शम और दम है। मन को बहिर्मुखहोने से रोकना शम कहलाता है और इंद्रियों के बाहरी साधनों के निग्रह का नाम है दम।
इसके बाद आती है उपरति। भोग्य विषयों का चिंतन न करने को उपरति कहते हैं। हमने क्या देखा या क्या सुना? हम क्या देखने-सुनने वाले हैं? कौन सी वस्तु हमने खाई या खा रहे हैं अथवा खाएंगे? इस तरह के चिंतन में ही हमारा बहुत समय व्यय हो जाता है। जो कुछ हम देखते-सुनते रहते हैं, उसके बारे में सोचने में हमारे समय का अधिकांश भाग व्यतीत हो जाता है। यदि आप वेदांती बनना चाहते हैं, तो आपको यह आदत छोड देनी चाहिए।
[अमेरिका में दिए गए भाषण का अंश]
[स्वामी विवेकानंद]

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