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भोपाल कांड 2010

शाश्वत सत्य
शाश्वत सत्य
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भोपाल कांड को लेकर आजकल इतनी बमचख मची हुयी है कि पच्चीस तीस आयोग बना कर तमाम रिटायर्ड अफसरों, जजों आदि को तो केवल इसमें खपाया जा सकता है कि किसके कहने पर कौन गाडी लाया, कौन बुरका लाया, कौन सामान ढोया, कौन सुरक्षित प्लेन मे पहंुचाया? ये सब गहन जांच के विषय हैं पर एक बात तो पक्की है कि यदि भोपाल कांड 2010 में हुआ होता तो सीन कुछ इस टाईप का होता..।अव्वल तो वो फैक्ट्री चल ही नहीं रही होती। नाना प्रकार के यूनियन बाज नेता तोड़-फोड़ धरना-प्रर्दशन तालाबन्दी हड़ताल कामरोको टाइप के कार्यक्रम करके फैक्ट्री का बाजा बजा चुके होते। पांच गुना तनख्वाह, हफ्ते मे बस एक दिन काम, नेताओं को साल में एक बार इकट्ठे हाजिरी भरने की आजादी, फैक्ट्री के कीमती उपकरण चुरा कर बेचने जैसे जन्म सिद्ध अधिकार टाइप की उल्टी सीधी डिमाण्ड और लगातार हड़ताल से फैक्ट्री कब का बन्द हो गयी होती और कोई गैस-वैस लीक ही नहीं होती। चलिये, मान लें इन सत्कर्मो के बावजूद भी फैक्ट्री चलती रहती तो भी आधी रात को जिस वक्त गैस लीक हुयी थी आजकल उस वकत 99.99 प्रतिशत आम जनता (वीवीआईपी को छोड़ कर) तो बिजली के इन्तजार में सड़कों छतों पर टहलती रहती। बिजली के इन्तजार में चौकन्नी व सजग जनता को तुरन्त गैस लीक होने का पता लगता और वह सरपट सुरक्षित स्थानों की ओर पलायित हो जाती और आजादी के बाद पहली बार बिजली विभाग जिन्दाबाद के गगनभेदी नारे लगते। फि र भी अगर गैस लीक ही हो जाती तो किसी का भी कुछ नहीं बिगड़ता क्योंकि आजकल सालिड प्रदूषण व एनजीओबाजी की वजह से पब्लिक उससे कई गुना ज्यादा जहरीली गैस सांस के साथ पीने की आदी हो चुकी है। बेचारी गैस भी टेंशन मे आ जाती। चलिये, मान लें लोग मर भी जाते तो भी एण्डरसन तो नहीं ही भाग पाता। अभय दान के लिए पट्ठा जैसे ही अपने आकाओं को मोबाइल मिलाता मोबाइल पर नाट रिचेबुल, काल फेल्ड, उपभोक्ता इस वक्त सुरा सुंदरियों के साथ व्यस्त है टाइप भांति-भांति प्रकार की आवाजें आती रहतीं, तबतक एण्डरसन पक्का धरा जाता। फिर भी उसका किसी तरह उसका अपने आकाओं से सम्पर्क हो भी जाता और आला अधिकारी उसे गाड़ी में बिठा कर देश से भगाने की फिराक मे एयरपोर्ट जाने के लिये निकलते भी तो पठ्ठा विकट जाम मे फंस जाता। उधर क्रासिंग बन्द है. इधर एक ट्रक खराब हो गयी है और ट्रक वाला ट्रक को तिरछा खड़ा कर के मालिक से मिलने सिल्लीगुड़ी चला गया है, जब कभी आयेगा तभी ट्रक हटेगी, उधर के लोगों ने अतिक्रमण कर के रोड ब्लाक कर दिया है, दूसरी तरफ दुर्दान्त सांड़ व तमाम गदहे बैठे हैं। भीषण चिल्ल पों में एण्डरसन बेट्टा की गाड़ी फंस जाती और वो धरा ही जाता। फिर भी अगर किसी तरह पठ्ठा जाम से निकल कर प्लेन तक पहुंच भी जाता तो प्लेन के उड़ान भरते वक्त रनवे पर प्लेन का टायर नित्य की भांति अवश्य फटता और प्लेन कई पल्टियां खाकर उसी फैक्ट्री के गेट पर पहुंच जाता और उग्र जनता के वह हाथों में आ जाता। फिर भी अगर पट्ठा गिरफ्तार हो भी जाता तो क्याहोता, कोर्ट कचहरी.. तारीख पे तारीख . एण्डरसन अन्दर इन्द्रसेन उर्फ इन्दर भाई के नाम से जेल के भीतर ही अपना साम्राज्य चलाता या चुनाव लड़ के माननीय बन जाता और कोई कुछ न कर पाता।

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