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भारतवर्ष में विवाह और नाना प्रकार के चुनाव यही दो ऐसे कार्यक्रम हैं जो पूरे साल परमानेण्टली चलते रहते है। बेसिकली दोनो मामले कुछ कुछ एक टाइप के ही होते है। दोनों की जमकर तैयारियां होती हैं। दोनों में ढ़ेर सारे खलिहरों (खाली ,वेले या फिर जिन्हें कोई काम नहीं होता) के खाने पीने का भरपूर इन्तजाम हो जाता है। दोनों मामलों में कुछ घूरों के भी दिन फिर जाते हैं। दोनों में पर्दे के पीछे जमकर मोलभाव लेनदेन आदि होते हैं। हिंसा की पर्याप्त संभावना दोनों कार्यक्रमों में होती है एक जगह टिकट वितरण या पोलिंग के टाइम तो दूसरी तरफ द्वारपूजा, डांसरों के साथ मनभावन नृत्य या भोजन को लेकर। भारी मात्रा में असन्तुष्ट दोनो तरफ होते हैं एक तरफ जिनके टिकट कट जाते है वे तो दूसरी तरफ उचित मान सम्मान न मिलने के कारण मौसा फूफा जीजा या पर्याप्त मात्रा मे भोजन न मिलने से बराती टाइप के असंतुष्ट। साडि़यां पायल नगद व दारू दोनो तरफ प्रचुर मात्रा में बंटती हैं। एक तरफ हारने के बाद प्रत्याशी रोते हैं तो दूसरी तरफ विवाह के उपरान्त पति पत्नी जीवन भर रोते दिखाई देते हैं, इस सम्बंध मे स्वामी कपटानन्द महाराज जी ने ठीक ही कहा है। जो हंसे उनके घर बसे। पर ये तो देखिये उसके बाद कितने हंसे? सामान्यत: विवाह तीन प्रकार के होते हैं। एक लव मैरेज जिसमें बंदा अपनी गर्लफे्रण्ड से विवाह करता है दूसरा अरेंज मैरेज जिसमे बन्दा दूसरों की गर्लफ्रेण्ड से विवाह करता है और तीसरा रियल्टी शो टाइप विवाह। ताजा खबर है कि अजमल कसाब के विवाह की इच्छा जताने के बाद चैनल वाले कसाब का स्वंयवर कराने की तैयारी में हैं। विवाहों में बैण्ड का परम महत्व है परन्तु तमाम विद्वान वर्षो से इस शोध मे लगे हुये हैं कि बैण्ड तक तो ठीक है पर सनातन काल से ये जो एक बन्दा भोंपे लगी ट्राली पर चढ़ के बहुत ही घटिया आवाज में आय हाय ये कुडि़यां शहरदियां गाते हुये सारे गानों की रेड़ मारता रहता हैं उसका रहस्य क्या है। वैसे बैंण्ड वालों की बड़ी सांसत होती हैं. अबे ई वाला नाहीं ऊ वाला बजा (अबे ये वाला नहीं वो वाला बजाओ ) की आवाजों के साथ कई बार बेचारों को मार भी खानी पड़ती है प्राय: तमाम महिला इम्प्रेसक बैण्ड वालों की टोपी झाल आदि लेकर खुद ही बजाने लगते हैं, द्वारपूजा के घण्टो बाद तक जबरदस्ती बैण्ड बजवाये जाते हैं और बैण्ड वाले खाने की पोजीशन लेते हुये बेमन से बजाते है और मन ही मन कोसते रहते हैं कि सब त गइलें इ कब जाई? लगता हम्मन के जान ले के ही जाई (सभी तो चले गए ये कब जाएगा? लगता है हम लोगों की जान लेकर ही जाएगा), वैसे तमाम बैण्ड विशेषज्ञों का कहना है कि पूरी बैण्ड पार्टी में एक्सपर्ट तो 2-4 ही होते है बाकी दिहाड़ी के मजदूर होते हैं जो ड्रेस पहन कर बाजों में फूंकते रहते हैं इसलिये हर चार लाइनों के बाद गाने खराब हो जाते हैं। इसके अलावा ऐतिहासिक नागिन डांस व महिलाओं के चित्ताकर्षक नृत्य के बिना बारातें घटिया मानी जाती है। सुस्त प्रशासन की सख्त रोक के बावजूद भोर तक जमकर लाउडस्पीकरों का प्रयोग, धुआंधार जबाबी फायरिंग व डायनामाइट मार्का बम बजाये जाते हैं। इस दिन दूल्हे का बड़ा भौकाल होता है दूल्हा कितना भी चिरकुट व सायकिल खीचू टाइप का क्यों न हो उस दिन पट्ठा अकड़ कर किराये की कार मे बैठा होता है। दुल्हन भी भले सौ मीटर चैम्पियन व पूरी हृष्ट पुष्ट क्यों न हो पर जयमाल के समय एकदम धीरे धीरे सधे कदमों से सहारा लेकर ही आती है। उसके बाद आता है भोजन पर का नम्बर, पब्लिक किसी के शुरूआत करने का बेसब्री से इन्तजार करती है फिर तो ऐसे टूटती है जैसे जीवन में फिर कभी खाना नहीं मिलेगा, तमाम अद्भुत टाइप के दृश्य दिखाई देते हैं. आदमी खींच के मुर्गा खा रहा है नीचे कुत्ते इन्तजार कर रहे है पता ही नही लगता कि आदमी कौन है और कुत्ता कौन है वैसे उच्च कोटि के मैरेज हाउसों ने प्लेटों की तत्काल सफाई के लिये बकायदा कुत्तों की भर्तियां भी की हुयीं हैं। आइसक्रीम व पानी काउंटर सबसे अशांत क्षेत्र माने जाते है। बैरे वैसे तो दिखाई नहीं देते पर जैसे ही बन्दा खाना शुरू करता है पठ्ठे एक प्लेट में पानी फूल नैपकिन लेकर बक्शीस के लिए घेर लेते हैं
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