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पैतालिस बनाम तैतीस परसेंट

शाश्वत सत्य
शाश्वत सत्य
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अद्भुत दृश्य था। सुहाने मौसम में पंक्षी चहचहा रहे थे, हवाओं में संगीत घुला हुआ था। मोर नाच रहे थे। मिठाईयां बट रही थीं। बजते नगाड़ों के बीच अबीर गुलाल उड़ाये जा रहे थे पर उसी के बगल वाली एक पार्टी में मातम छाया हुआ था। लाखों चेहरे मुंह लटकाये बैठे थे कुछ बन्दे चद्दर वद्दर ओढ़े ये दर्द भरा अफसाना, सुन ले बेदर्द जमाना टाइप के गीत सुन रहे थे। भई ये विरोधाभासी सीन कुछ समझ में नही आ रहा? एक बंदे ने किसी से पूछा। असल में हाईकोर्ट ने स्नातक में 45 प्रतिशत तक के नंबर वालों को भी बीएड में दाखिले का आदेश दे दिया है उसी पर ये पार्टी नाच गा रही है। और ये मुह लटकाये लोग? ये वो लोग है जो पैंतालिस परसेंट नंबर नही पा सके हैं, पर बीएड करने के ऊंचे ऊंचे सपने देख रहे थे। तभी गगन भेदी नारे लगने लगे.. आधी रोटी खायेंगे, बीएड डिग्री लायेंगे,.. तैंतीस तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है.. तभी बैण्ड वाले मशहूर नागिन धुन बजाने लगे जिस पर एक सीनियर व जूनियर भूमि पर लोट लोट कर नागिन सपेरा नृत्य करने लगे। लगता हैं आप लोग बहुत प्रसन्न हैं? किसी ने पूछा। प्रसन्न ही नही हैं, बहुते प्रसन्न हैं। असल में हम लोग बाप-बेटा हैं, अब दोनों लोग बीएड कर लेंगे, जीवन सफल हो गया हम लोगों का। बाबा कपटानन्द सही कहे थे कि बाप बेटा का भाग्य ईकट्ठे खुलेगा । धन्य है भारतभूमि अभी यहां न्याय जिन्दा है। वहीं एक फाइव स्टार होटल के बाहर ढेर सारी बड़ी-बड़ी गाडि़यां खड़ी थीं, अन्दर मोटी-मोटी सोने की चेन पहने तमाम असलहेधारी बार बालाओ के साथ नृत्य कर रहे थे। विदेशी दारू पानी की तरह बह रही थी। क्या आप लोग भी पैंतालिस परसेंट वाले हैं जिनको एडमीशन मिल रहा है? जोरदार हंसते हैं, .हम लोग एक भी परसेंट वाले नहीं हैं। हम लोग तो कालेज चलवाते हैं। हिन्दुस्तान में पढ़ने के लिये अरसेंट परसेंट चाहिये, कालेज खोलने के लिये नहीं । बस अंटी में माल भरपूर होना चाहिये। जान लीजिये, भाई साहब एडमीसनों पर रोक लगने से सांस अटकी थी। असल में दो कमरे के टीन शेड में पैसा खिलाकर बी.एड, एम.एड, इन्जीनियरिंग, मेडिकल, बी.फार्मा, एम.फार्मा, बी.जे, एम.जे, एम.बी.ए, एम.सी.ए. टाइप हजारो कालेजों की मान्यता ले लिये हैं। कई ठो तो हमको खुदे याद नही है। अब 45 प्रतिशत वालों का आर्डर हुआ है तो भरभरा के एडमीशन होगा। तब जा के पूंजी खाली होगी। यही सब स्टूडेन्टवे तो खर्चा निकालते हैं। इन सबों को बस डिग्री से मतलब होता है। एक बार एडमीशन के टाइम आयेंगे फिर सीधे डिग्री लेने। पइसा चाहे जितना खींच लीजिये। उधर पैंतालिस प्रतिशत वाले एक अध्यापक विद्यालय में पढ़ा रहे थे.. चलो पहाड़ा लिखो.. आठ के आठ, आठ तियां चौबीस, आठ छके अड़तालिस, आठ दहाम अस्सी। गुरू जी, ई पहाड़ा कुछ हजम नही हुआ ? हमको लग रहा है कुछ छूट रहा है। कुशाग्र बुद्धि का एक बालक भविष्य नाथ तिवारी उठ कर बोला। चुप., बइठ., तुमको हजार बार कहा हूं कि हमारी क्लास मे बिल्कुल चुपचाप बइठा करो। पीछे वाले बच्चों को बोलने दिया करो.। हम लोग पैतालिस परसेंट वाले हैं पैतालिसे परसेंट पहाड़ा याद है, वही लिखा दिये।

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