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यह कैसी है दिल्ली रे भाई…..

शाश्वत सत्य
शाश्वत सत्य
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यह कैसी है दिल्ली रे भाई,
हमको तो कुछ समझ न आई,
पहाड़गंज में पहाड़ नहीं,
न दरियागंज में दरिया,
चांदनी चौक में कहाँ चांदनी,
धुला कुआँ में कहाँ हैं कुआँ,
देखा मजनू का टीला,
न टीला मिला न मजनू,
पुरानी दिल्ली में नई सड़क है,
नई दिल्ली में पुराना किला,
बिना गेट के दरवाजे को नाम दिया अजमेरी गेट,
कश्मीरी गेट में कश्मीर नहीं,
न सेठ गली में देखा सेठ,
न शांतिपथ पर शांति देखी,
सूट पहने भिखमंगा देखा,
गाड़ी चलाते बीवी देखी,
लाचार बैठा मियां देखा,
सच पूछो भैया यह दिल्ली,
हमको तो कुछ समझ न आई,
यह कैसी है दिल्ली रे भाई,
हमको तो कुछ समझ न आई.
पीने को यहाँ पानी नहीं,
आँख नाक में पानी भरा,
सड़कों का जंजाल भरा है,
पर चलने को रह नहीं,
बसों का भंडार भरा है,
पर पायदान पर जगह नहीं,
गिरकर न जाने मरते कितने,
पर उनको परवाह नहीं,
यहाँ रावण कभी मरते नहीं,
पर रोज रावण जलते हैं,
दिल्ली को देखकर उड़े हमारे होश,
यह कैसी है दिल्ली रे भाई,
हमको तो कुछ समझ न आई.

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