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सत्यमेव जयते.. कुछ और सत्य -२

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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amir

चिकित्सीय पेशा क्यों बाकि पेशो जैसा क्यों नहीं है? लगभग हर अन्य पेशो में ये सिखाया जाता है की किस तरह से जनता से पैसा बनाया जाये या लाभ अर्जित किया जाये जैसे होटल व्ययसाय, इन्स्योरेन्स, बैंक, फिल्म, मनोरंजन इत्यादि यांनी लगभग हर पेशा इसी बात पर केन्द्रित होता है की कैसे कम या ज्यादा मुनाफा बनाया जाये !! पर मेडिकल की इतनी लम्बी शिक्षा में यही सिखाया जाता है की किस तरह से रोगी को जाने, कैसे रोग को पहचाने और कैसे रोग को मिटायें !!

चिकित्सा विज्ञानं सामान बेचने का उपक्रम नहीं होता, चिकित्सा क्षेत्र सेवा होकर भी अन्य सेवाओ से पूरे तौर पर भिन्न है. चिकित्सक सामान्य जनता को कैसा भी दीखता हो वो सामान लाकर बेचने वाला, किसी कंपनी का साबुन-तेल बेचने या कोई बना बनाया चलताऊ काम नहीं करने वाला नहीं होता, जैसे टीवी, फ्रिज इत्यादि का बना बनाया मूल खाका कई सालो तक वैसा ही होता है और उसे भी मशीने बनाती हैं पर भिन्न मानव शरीरो में भिन्न बीमारियाँ विभिन्न रूप लेकर आती है हर रोगी एकदम निराला होता है I हर डाक्टर वर्षो के अर्जित किये अपने ज्ञान स्तर पर भी हर बार एक नया शोध करता है, उसे रोज पढना होता है, हर रोज नयी जानकारी, यानि ऐसी जानकारी जो नयी उपचार पद्धति बताती हो वो नहीं जो पैसा कमाने के नए हथकंडे के रूप में बाकि पेशेवर इस्तेमाल करते हैं! चिकित्सा शिक्षा और सेवा सतत चलने वाली वाली शोध और अध्ययन की प्रक्रिया है जिसका उपादान है रोगी को मिलने वाली चिकित्सा सेवा..इसे इसी रूप में लिया जाना चाहिए.

डाक्टर कोई फिल्म का नौटंकी कलाकार नहीं है जिसे एक हजार से अधिक लोग(संवाद लेखक से लेकर कोरिओग्रफर तक) नायक के रूप में दिखाने के लिए परदे के पीछे काम करते हैं I
डाक्टरी पेशे का जोखिम सेना, पुलिस, दमकल इत्यादि से बहुत कम नहीं होता, बावजूद इसके मैं इन बेहद महत्वपूर्ण और विशिष्ट सेवाओं का श्रेय कम नहीं करना चाहता !
चिकित्सक कोई लाभ प्राप्ति के लिए यह पेशा नहीं अपना सकता ऐसा करना हो तो उसके पास कई सुलभ, आरामदेह, अचुनौतीपूर्ण और धन के लिहाज से कहीं लाभप्रद पेशे और भी हैं I
ये बताना जरूरी है की डाक्टरों का भारतीय प्रशासनिक सेवा में उत्तीर्णता का प्रतिशत लगभग १००% है, इसके सिवा डाक्टर किसी और क्षेत्र में नहीं जाते I
इतना होने के बाद अगर डाक्टरों को अपनी पब्लिसिटी करनी पड़े तो सब व्यर्थ है, पर ये आज की विडम्बना है की जनता बस उसे जानती है जिस के चमकीले विज्ञापन धंधेबाजो के पैसे के बल से हर रोज दिखाए जाते हैं I इसीलिए इस देश के नायक हैं करीना, कैटरिना, सचिन इत्यादि जो हर तरह का ज्ञान बाँटते फिरते हैं इसलिए वोही इस देश के भगवान हैं II
ये ऐसा देश है जहाँ पर एक भ्रष्ट फर्जी डाक्टर “मुन्ना भाई” लोगो का चहेता नायक है, कोई असली डाक्टर नहीं!!

यह देश अलंकारिक, खोखला और क्षुद्र आडम्बर पूर्ण हो चूका है इसलिए वास्तविकता से लोगो को खास लगाव नहीं है I
इसलिए इस देश में खोखले चरित्र नायक हैं जिनमे कोई दोष नहीं पाया जाता पर अत्यधिक चुनौती के बावजूद अपना सौ प्रतिशत से अधिक देने के बाद भी किसी डाक्टर को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है!!!
पर ये सब किसी नौटंकी कलाकार से आशा करना ही पत्थर पे सर फोड़ना है जो खुद झूठ (बनावटी चलचित्र की अनैतिक दुनिया) की कमाई खाता है और इतना सब कुछ समझ पाना तो उसकी मष्तिस्क की क्षमता से बाहर है…

पर एक डाक्टर के लिए उसकी अध्यापन की आदर्श दुनिया से बाहर की दुनिया अलग ही साबित होती है I इसके अलावा, उसके भी एक परिवार हो सकता है और उसे भी अपने परिवार और आश्रितों का निर्वाह करना होता है इसलिए उसे असली दुनिया में आकर समझौते (रोगी के अहित में नहीं..) करने होते हैं, दुनियादारी का शिकार भी होना होता है!
पर, ये तथ्य है की वो जो गलत तरीके से ढेरो पैसा लगाकर इस में आते हैं वोही आगे भी गलत काम करते हैं! पर, इन गलत तरीके से आने वाले डाक्टरों को यानि मुन्नाभाई और प्राइवेट कोलेजो के पेशेवरो को कोई “असली” सच्चा डॉक्टर(यानि सरकारी संसथान से प्रशिक्षित योग्यता से आया हुआ डाक्टर ) तो लेकर नहीं आता ! नाही, धड़ल्ले से गलत काम कर रहे फर्जी झोलाछापो को संरक्षण देता है I सीटे बेचकर गलत लोगो को इस चुनौतीपूर्ण पेशे में लाने का काम डाक्टरों का नहीं होता पर इसका नुकसान उन सामान्य सही डाक्टरों को ही उठाना पड़ती है जो यह समाजसेवी काम मर्यादा और अत्यंत अनुशासन में कर रहे हैं!

दूसरा सबसे बड़ा नुकसान चिकित्सीय क्षेत्र को हो रहा है आरक्षण के नाजायज तरीके से लगातार थोपने से! इससे कौशल और क्षमता में काफी बुरे चिकित्सीय पेशेवर समाज में आ जाते हैं, एक कमजोर और कमतर व्यक्ति ही गलतियाँ और भरष्टाचार करता है

और इसके पीछे भी वोही ढीठ और भ्रष्ट राजनेता हैं जिनका मेरिट या बौद्धिक योग्यता से कोई सरोकार नहीं है!! स्वाथ्य उन कुछ चुनिन्दा क्षेत्रो में है जहाँ क्षुद्र राजनीती नहीं मात्र योग्यता मानदंड होना चाहिए पर ये राजनितिक नेता हैं जो बस अपने स्वार्थ के लिए देश का हित कूड़े पर रखते हैं!
पर ये नेता और माफिया पीछे बैठकर लगातार अपराध खुद करते हैं और डाक्टरी पेशे को बदनाम करते हैं!
आज भी (एम्स परीक्षा पेपर आउट के खुलासे के बाद) मेडिकल छात्रो का नाम बताकर ही मीडिया और पुलिस उन माफियाओं, नेताओ, पुलिस और नौकरशाही के आला खिलाडियों का नाम बताने की जगह मुंह छुपा कर बैठ गए है!! आखिर इसमें कोई डाक्टर सब कुछ जानने के बाद भी क्या कर सकता है?
पूरे देश में भ्रष्टाचार चरम पर है और इस का निराकरण किसी अकेले व्यक्ति के बूते की तो बात नहीं हो सकती खासकर जिसमे पूरा महकमा पूरा तंत्र और पूरी राजनीती फन उठाकर शामिल हो? और जब जनता आँख मूँद कर पक्षपाती मीडिया और अपराधी अधिकारियो पर विश्वास कर किसी डॉक्टर पर अविश्वास करेगी तो और बड़ा नुकसान होगा!!

मीडिया(खासकर प्रिंट और अंग्रेजी) किस तरह का चरित्र है हम जान ही चुके हैं वो जिसके लिए वेश्याएं देवियाँ हैं, वो जिनके लिए मनोरंजन करने वाले फिल्म, फैशन, कलाकार इत्यादि सबसे बड़े नायक हैं जिनके द्वारा फैलाये जा रहे बड़े बड़े अपराध भी जिस मीडिया के लिए कुछ नहीं हैं वो डाक्टरों या मेडिकल क्षेत्र की मामूली विसंगतियों को भी बड़ा अप्रराध दिखाता है!
पुलिस, सेना और राजनीतिग्य के विपरीत एक डाक्टर के पास कोई वैधानिक या शक्तिसंपन्न अधिकार नहीं होता, इसलिए उसके अधिकारिक दायित्व तो नहीं होते पर हां, नैतिक दायित्व होते हैं और जितना मैं देखता हु अधिकतर चिकित्सक पेशेवरो को अपने इस दायित्व और अपनी प्रतिष्ठा का पूरा भान है और अधिकतर असली डाक्टर उन आदर्शो और सख्त नैतिक आदर्शो का अनुपालन बिना किसी निगरानी की जरूरत के लगातार करते हैं I

पर चिकित्सा क्षेत्र में कुछ विसंगतियां अवश्य हैं जिनपर बात करना आवश्यक हो गया है (और जिसे हम लगातार उठाते रहते हैं!*)! इस क्षेत्र में जो भी जैसे भी जैसे भी आया हो अगर गलत करता है तो पूरे पेशे की सालो की तपस्या बने बनाये श्रेय और सम्मान पर चोट करता है!!

पर, जिस विसंगति के लिए डाक्टर कुछ नहीं कर सकता हर उस व्यवस्था के दोष को बस डाक्टर के मत्थे मढना तो सरासर अन्याय है!

क्या अकेला एक डाक्टर पूरे देश की गरीबी दूर कर सकता है? क्या एक डाक्टर सामाजिक, आर्थिक, भौतिक सारी विसंगतियों को दूर कर सकता है? क्या एक डाक्टर खाली हाथ बिना किसी सुविधा, सरकारी सहायता के किसी पिछड़े गाँव की हर बीमारी दूर कर सकता है? जिस गाँव में पानी नहीं, बिजली नहीं, जांच की कोई मशीन जहाँ चल नहीं सकती, जहाँ कोई पैरा मेडिकल स्टाफ नहीं, जहाँ दवाई तक नहीं देने के लिए वहां कोई डाक्टर कैसे काम कर पायेगा? क्या हमने डाक्टर को हाथ हिला कर जादू करने वाला ओझा, तांत्रिक समझ रखा है?

चिकित्सा सेवा नौटंकी, मौज, नाच गाने का मनोरंजन व्ययसाय नहीं हैI यहाँ किसी कमर मटकाने, टसुए बहाने के लिए १०० टेक नहीं मिलते, यहाँ कोई गाना छत्तीस महीने में तैयार नहीं होता, यहाँ कहानी के पात्र ग्राहक की मांग के हिसाब से हर नयी फिल्म में नहीं बदले जाते. किसी इन्सान की जान बचाने के लिए हर डाक्टर के पास बस एक ही मौका होता है.. टीवी, रेडिओ की तरह ख़राब हो जाने पर पुर्जा बदलकर एक आदमी को फिर से चलता नहीं किया जा सकता.
जब कोई वस्तु या सेवा लगभग फ्री में मिलने लगे या बिना परेशानी के मिलने लगे वो भी मारने-पीटने -धमकाने की छूट के साथ… जब चिकित्सा सेवा आपको सौ पचास में मिलने लगे जबकि हर और तुच्छ चीज महंगी हो, तब उसकी कीमत कम हो जाती है और उसे बेहद सस्ती चीज समझा जाना लगता है!
मैं हर देशवासी को बताना कहता हु और ये किसी भी विशेषज्ञ या विदेश में रहने वाले व्यक्ति से सुनिश्चित किया जा सकता है की भारत वर्ष में सबसे सस्ता इलाज मिलता है और वो भी डाक्टरों के हित की कीमत पर, यहाँ का डाक्टर सबसे अधिक उदार है और सबसे कम सहायत प्राप्त!!

पर सुलभ वस्तु का मोल नहीं रहता इसीलिए किसी शाहरुख़, मल्लिका का औटोग्राफ लेने या “पांच सितारा नंगा नाच” देखने के लिए आप लाखो रुपये ख़ुशी ख़ुशी और अपनी जान भी खर्च कर देंगे पर अपनी जान के लिए कोई कीमत देना आपको गवारा लगता है! आपको लगता है की कोई डाक्टर आपको मूर्ख बना रहा है या वो आपको ‘नुकसान पहुन्च्याने के लिए बैठा हुआ है’ !!!
इसीलिए शायद, जब एक मरीज हस्पताल में इलाज के लिए आता है तो बेचारा गरीब बन जाता है और जब ठीक होकर जाने की बारी आती है तो वो इलाके का भारी गुंडा बन जाता है (ये कई एक डाक्टरों की आपबीती है जो शहरो-गावों में स्वस्थापित केन्द्रों में सेवा देते हैं!)! बिना किसी सरकारी सहायता के करोडो लगाकर निजी हस्पताल बनाने वाले डाक्टर को गरीबो की मदद करने के बाद भी क्या कोई विशेष छूट डाक्टर को मिलती है? क्या सरकार का काम भी कोई अकेला डाक्टर ही करेगा?
डेढ़ अरब की जनसँख्या में कुल जमा कुछ लाख डाक्टर वो भी अक्षम मुन्ना भाईयों के होने के बावजूद अपनी पूरी जान लगाने के बाद भी क्या सर्वशक्तिमान, सब कुछ करने योग्य सरकार की नाकामी को ढँक पायेगा, क्या उसकी गैरजिम्मेदारी समेट पायेगा?

डाक्टर से इतनी मांगे रखने वाले लोगो को इस सरकार से पूछना चाहिए की क्या डाक्टर को कोई विशेष भत्ता मिलता है? क्या किसी डाक्टर को अन्य किसी सरकारी विभाग में काम कराने के लिए कोई वरीयता मिलती है? क्या उसे दुकानों पर, मॉल में, रेल-बस स्टेशन पर, हवाई यात्रा में, सिनेमा हाल में, सड़क पर या अन्य किसी प्रतिष्ठान पर कोई छूट मिलती है? छूट तो नहीं पर हाँ, किसी मरीज न बचा पाने पर लापरवाही का इल्जाम और उसपर मारपीट यहाँ तक की हत्या, पैसे कम करने के लिए धमकी, बड़े बड़ो(नेता, माफिया) के फोन.. पुलिस वाला तो मुफ्त की वसूली और मुफ्त का माल खाने के बाद भी इज्जत पाता है और डाक्टर को अपनी इज्जत बचाते रहने के लिए अपनी ही आय, प्रतिष्ठा और जान से भी हाथ धोना पड़ता है!
और तो और, लोग तो डाक्टर का ही सैकड़ो सालो में स्थापित किया हुआ (रेड क्रॉस का)निशान चोरी कर घूमा करते हैं इस पर कोई कारर्वाई नहीं होती… और, बाकि चीजे छोड़ दीजिये हम लोग तो मरीज लाने वाली एक अम्बुलेंस तक को रास्ता नहीं छोड़ते ..

सरकार से पूछिए क्यों सारे नए मेडिकल कोलेज प्राइवेट क्षेत्र में बनाये गए हैं? मालूम कीजिये कौन कौन से अधिकारी-नेता एमसीआई जैसे संगठनो की आड़ में करोडपति बन रहे हैं? पूछिए, क्यों उन्ही कुछ चुनिन्दा सरकारी संस्थानों में सीटे बेतहाशा बढाई जा रही हैं और वो भी बिना कोई अन्य सुविधाएँ, सहायतया बढ़ाये? क्यों स्थापित मान्यताप्राप्त चिकित्सा संस्थानों की बदहाल हालत तो सुधारी नहीं जा रही पर नए नए प्राइवेट कोलेज को लाइसेंस बाटें जा रहे हैं? क्यों, हर सरकारी हस्पताल में डाक्टर, अन्य कर्मचारी, मशीन और धनराशी की कमी है? पूछिए सरकार से क्यों हर सरकारी चिकित्सा संसथान फैकल्टी की कमी से त्रस्त हैं? क्यों उनमे उम्मीदवार उपलब्ध होने के बावजूद भी अधिसंख्य कोलेजो में कोई मेडिकल शिक्षक और प्रशिक्षक नहीं हैं? क्यों गाँव में डाक्टरों की इच्छा और जरूरत होने के बावजूद उनकी तैनाती नहीं होती?
अगर सरकारी सहायता और दूर्द्रिष्टिपूर्ण संयोजन से चिकित्सको को नियुत किया जाये तो शायद कई एक विसंगतियां दूर हो जाएँ.. !

क्यों सरकारी संस्थानों को विश्व स्तरीय तो दूर साधारण सरकारी अनुदान भी नहीं मिलता जबकि प्राइवेट और विदेशी संस्थानों को यहाँ जगह देने के लिए (जिनसे कमीशन मिलता है) अतिउत्साह दिखाया जाता है? क्यों सारे चिकत्सा संसथान किसी राजनैतिक राजधानी में हैं? क्यों दिल्ली शहर में डेढ़ सौ हस्पताल, चिकित्सा संसथान, एम्स इत्यादि हैं और ५० करोड़ के मध्य भारत क्षेत्र में कोई ५० कोलेज, छोटे हस्पताल और एक भी एम्स नहीं हैं? ये सब कुव्यवस्था क्या कोई डाक्टर सुधारेगा जब कोई डाक्टर उच्च अधिकारिक या प्रशासकीय पदों पर नहीं है?
क्यों स्वस्थ्य सेवा के उच्चतम पदों पर नौकरशाह बैठे हुए हैं? क्यों सत्तर सालो में कुछ न कर पाने के बावजूद वो सभी अपने पदों पर बने हुए हैं? क्या किसी कमजोर डाक्टर में इतना बूता है की जो व्यवस्था सुधार वो करना चाहता है वो इस तरह की भ्रष्ट, बेपरवाह मशीनरी से लोहा लेकर जिन्दा रह पायेगा? सब कुछ जानने के बाद भी सेवा में सुधार कर पायेगा?

कुछ अपवादों के सिवा, चिकित्सा सेवा अभी भी उस महान पुरातन परंपरा और अपने उच्च आदर्शो पर अटल है जिसमे अपने बारे में कोई प्रचार नहीं क्या जाता… अपने लिए कोई टीवी, फिल्म प्रोग्राम नहीं बनाया जाता, अपना ढिंढोरा नहीं पीता जाता.. पर सारी दुनिया को तो पूरा अधिकार है अस्त्ररहीनो पर हमला करने का..
आज बाजारू लोग झूठ पर मुलम्मा चढ़ाये, गोबर पर चाशनी लपेट कर खुद ही अपने नाम की जोर जोर से चिल्लाकर बोली लगाये पड़े हैं, बस वोही दिख रहे हैं उनके पास यन्त्र हैं, हथियार भी, भीड़ भी धन भी और अनैतिकता और बेईमानी का जोर भी … वो हमला कर रहे हैं उसपर जिसने आदर्शो, नैतिकताओं, वर्जनाओं, सभ्यता से, प्रसार-प्रचार एवं शोशेबाजी से दूरी रख अपना काम बेहद संजीदगी से करता रहा है… जो सभ्य, नम्र और शिष्ट बने रहने के लिए संस्कारित भी है और मजबूर भी !!
घूँघरू बजाने वाले जो एक तलवार उठा भी नहीं सकते वो युद्ध क्षेत्र में खून बहाने वालो के युद्ध कौशल की कमियां निकाल रहे हैं I

क्रमशः…..

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